Thursday , 21 November 2024
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“4×6” की दुकान और “शराफत”

  • प्रदीप रावत (रवांल्टा)

“4×6” की दुकान और “शराफत”। ऐसी दुकान जो केवल दुकान नहीं है। मिलने-मिलाने का एक ऐसा अड्डा है, जिस अड्डे पर आने वाला हर बंदा हंसता और मुस्कराता हुआ वापस लौटता है। “4×6” से आपने अंदाजा तो लगा ही लिया होगा कि ये दुकान का माप है। हां शराफत आप पर जरूर आफत बन रही होगी। ऐसा होना लाजिमी भी है। “शराफत”। ये शब्द जितना आसान और मीठा लगता है। इसके मायने उतने ही गंभीर हैं। सज्जनता…शराफत को हिंदी में बोलते हैं। कुछ ऐसी ही शराफत उस “4×6” की दुकान में बसती है। उस दुकान की हर बात खास है। हर अंदाज अलग है…और दुकान के भीतर रहने वाले “शराफत” की बात भी सबसे जुदा है। जब भी कोटद्वार जाना होता ही या फिर जिक्र होता है…उनकी “4×6” दुकान पर कोई ना कोई मिल ही जाता है…। जब बातों सिलसिला चलता है…चलता ही रहता है…। ऐसा सिलसिला जो आपको टाइम मशीन में लाकर जाता है…। बातों-बातों में मुझे भी “4×6” की दुकान का ख्याल आया और आता रहता है…बात ताड़ क्या आती है…। हर आई और खास ही गयी…। अब पहेलियां छोड़कर सीधे कोटद्वार चलते हैं। पहुंचने के वैसे तो दूसरे भी रास्ते हैं। पर मुख्य रास्ता वही है। जहां “4×6” की दुकान और शराफत से वास्ता पड़ता है। नाम है कोटद्वार का नजीबाबाद चौराहा…। जैसा कि मैंने दुकान का माप बताया है। दुकान बिल्कुल वैसी ही नजर आती है।

पहले वहां पीसीओ और चिंगारी का दफ्तर होता था…। पीसीओ का जमाना लद गया…तो ये दुकान भी बदलती गई। दुकान में केवल सामान ही बदला है…। माप आज भी “4×6” ही है। चिंगारी अखबार भी अब जवां हो चला है। आज भी इसी दुकान में आता है और पढ़ा जाता है। चिंगारी अब रंगीन भी हो गया…। लेकिन, दुकान वाले शराफत भाई आज भी नहीं बदले। उनका रंग भी पहले ही तरह चोखा और ढंग भी पक्का है। “शराफत अली”…। नाम ही परिचय है। उत्तराखंड में इनके सिखाए कई पत्रकार आज बड़े मुकाम पर हैं…। “शराफत मियां”…सबके “शराफत भाई”। वो जब समाचार लिखवाते हैं…तो स्कूल में इमला लिखने के दिनों की याद ताजा हो जाती है। समाचार उनके लिए इमला लिखवाने जैसा ही है। अपने अनुभव से वे चुटकियों में अपने मन में ही रिपोर्ट तैयार कर लेते हैं।

उनके अनुभव के किस्से सुनने का अलग ही आनंद है। वो अपने हर अनुभव को इस तरह बयां करते हैं कि सुनने वाला सुनता ही रह जाता है। बीच-बीच में कुछ बातें ऐसी बोल देते हैं कि सुनने वाले ठहाके लगाए बगैर नहीं रह सकते। मंदिर हो या मस्जिद…हर जगह पूरी शिद्दत से शामिल रहते हैं। उनके लिए इंसानियत का धर्म किसी भी मजहब से बड़ा है। “मस्जिद में नमाज अता करते हैं, तो मंदिर में भगवान के आगे भी नतमस्त होते हैं। शराफत भाई…पत्रकार, पुलिस, नेता, अभिनेता सबके अजीज हैं। हर कोई तो हर किसी का खास नहीं हो सकता, लेकिन उनका हर कोई खास है।”

पुलिस से और पुलिस वालों से उनकी दोस्ती कुछ ख़ास है…। “शराफत भाई” के प्रदेश के हर थाने और कोतवाली में नए और पुराने कोई ना कोई परिचित पुलिस कर्मी मिल ही जाएगा। मजे की बात ये है कि उनका नाम हर किसी की जुबां रहता था। नाम सुनते ही लोग अंदाजा लगा लेते हैं कि अपने “चिंगारी” वाले…ही शराफत भाई होंगे। अब तक जितने भी पुलिसवालों से मिल होंगे, उन सबके नाम याद हैं। 90 के दशक और उसके बाद के जो भी दारोगा से इंस्पेक्टर बने, इंस्पेक्टर से सीओ और एसपी से डीआईजी या डीजीपी बने…लगभग सबकी वर्तमान तैनाती की भी उनको पूरी जानकारी रहती है।
आज भी जब कोई पुराना पुलिस अधिकारी एविडेंस में लिए पौड़ी और कोटद्वार कोर्ट में आता है…”4×6″ की नजीबाबाद चैराहे की दुकान पर “शराफत भाई” से जरूर मिलकर जाता है। शराफत भाई लोगों की खूब मदद करते हैं, पर कभी किसी से मदद के बदले मदद की उम्मीद नहीं पालते। ये उनकी खासियत है। वो कहते ही हैं कि सबकी मदद करनी चाहिए…। आप किसी की मदद करोगे, तो सामने वाला खुद ही आपकी मदद को दौड़ा चला आएगा। बहरहाल “4×6” की दुकान के किस्से और कहानियां बहुत हैं। मैंने बहुत सारी अंतरंग बातें और शराफत भाई के किस्से और कुछ आदतों को जानबूझकर छुपा दिया…। इसलिए नहीं कि वो किसी को बतानी नहीं है। इसलिए कि उनके बारे में थोड़ा और रोचकता से रू-ब-रूू होने का ख्वाब पाल लिया है…। उस ख्वाब को यूं ही जाया तो नहीं जाने दे सकते हैं…है…ना।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.
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