- प्रदीप रावत (रवांल्टा)
“4×6” की दुकान और “शराफत”। ऐसी दुकान जो केवल दुकान नहीं है। मिलने-मिलाने का एक ऐसा अड्डा है, जिस अड्डे पर आने वाला हर बंदा हंसता और मुस्कराता हुआ वापस लौटता है। “4×6” से आपने अंदाजा तो लगा ही लिया होगा कि ये दुकान का माप है। हां शराफत आप पर जरूर आफत बन रही होगी। ऐसा होना लाजिमी भी है। “शराफत”। ये शब्द जितना आसान और मीठा लगता है। इसके मायने उतने ही गंभीर हैं। सज्जनता…शराफत को हिंदी में बोलते हैं। कुछ ऐसी ही शराफत उस “4×6” की दुकान में बसती है। उस दुकान की हर बात खास है। हर अंदाज अलग है…और दुकान के भीतर रहने वाले “शराफत” की बात भी सबसे जुदा है। जब भी कोटद्वार जाना होता ही या फिर जिक्र होता है…उनकी “4×6” दुकान पर कोई ना कोई मिल ही जाता है…। जब बातों सिलसिला चलता है…चलता ही रहता है…। ऐसा सिलसिला जो आपको टाइम मशीन में लाकर जाता है…। बातों-बातों में मुझे भी “4×6” की दुकान का ख्याल आया और आता रहता है…बात ताड़ क्या आती है…। हर आई और खास ही गयी…। अब पहेलियां छोड़कर सीधे कोटद्वार चलते हैं। पहुंचने के वैसे तो दूसरे भी रास्ते हैं। पर मुख्य रास्ता वही है। जहां “4×6” की दुकान और शराफत से वास्ता पड़ता है। नाम है कोटद्वार का नजीबाबाद चौराहा…। जैसा कि मैंने दुकान का माप बताया है। दुकान बिल्कुल वैसी ही नजर आती है।
पहले वहां पीसीओ और चिंगारी का दफ्तर होता था…। पीसीओ का जमाना लद गया…तो ये दुकान भी बदलती गई। दुकान में केवल सामान ही बदला है…। माप आज भी “4×6” ही है। चिंगारी अखबार भी अब जवां हो चला है। आज भी इसी दुकान में आता है और पढ़ा जाता है। चिंगारी अब रंगीन भी हो गया…। लेकिन, दुकान वाले शराफत भाई आज भी नहीं बदले। उनका रंग भी पहले ही तरह चोखा और ढंग भी पक्का है। “शराफत अली”…। नाम ही परिचय है। उत्तराखंड में इनके सिखाए कई पत्रकार आज बड़े मुकाम पर हैं…। “शराफत मियां”…सबके “शराफत भाई”। वो जब समाचार लिखवाते हैं…तो स्कूल में इमला लिखने के दिनों की याद ताजा हो जाती है। समाचार उनके लिए इमला लिखवाने जैसा ही है। अपने अनुभव से वे चुटकियों में अपने मन में ही रिपोर्ट तैयार कर लेते हैं।
उनके अनुभव के किस्से सुनने का अलग ही आनंद है। वो अपने हर अनुभव को इस तरह बयां करते हैं कि सुनने वाला सुनता ही रह जाता है। बीच-बीच में कुछ बातें ऐसी बोल देते हैं कि सुनने वाले ठहाके लगाए बगैर नहीं रह सकते। मंदिर हो या मस्जिद…हर जगह पूरी शिद्दत से शामिल रहते हैं। उनके लिए इंसानियत का धर्म किसी भी मजहब से बड़ा है। “मस्जिद में नमाज अता करते हैं, तो मंदिर में भगवान के आगे भी नतमस्त होते हैं। शराफत भाई…पत्रकार, पुलिस, नेता, अभिनेता सबके अजीज हैं। हर कोई तो हर किसी का खास नहीं हो सकता, लेकिन उनका हर कोई खास है।”