Saturday , 5 July 2025
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इसे कहते हैं गुड पुलिसिंग, एक ही दिन के दो अनुभव…

  • मेरी बात

जब भी आप सरकारी दफ्तर में जाते हैं…अक्सर वहां दो तरह के लोग होते हैं। पहला वो जो आपको काम करने के कई तरीके बता देंगे, लेकिन खुद काम नहीं करेंगे। दूसरे वो लोग होते हैं, जो सबसे पहले यह तय करते हैं कि काम करना है। उनकी सोच काम करने की होती है। जब भी हम काम करते हैं, उसका परिणाम जरूर कुछ ना कुछ आता है। इसलिए जब भी ऐसा हो, तय कीजिए कि आप कुछ करेंगे…भटकाएंगे नहीं।

कल मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ। मैं डीडी न्यूज (दूरदर्शन समाचार) की अपनी ड्यूटी पर था। किसी नंबर से फोन आया। दूसरी तरफ मेरी पत्नी थीं। उन्होंने सबसे पहले कहा कि फोन खो गया। बहरहाल मैंने एक बजे का बुलेटिन निपटाया और फोन खोजने निकल गया। सबसे पहले बाइपास चौकी में गया। क्योंकि वह रस्ते में ही पड़ती है। वहां मुझे ऊपर बताया गया पहला वाला तरीका बताया गया कि अप्लीकेशन दे दो दिखावा देंगे। जबकि, जो फोन खोया था, वो लगातार चालू था।

वहां, मौजूद दरोगा चाहते तो तत्काल फोन की लोकेशन को साइबर पुलिस स्टेशन या फिर जो भी पुलिस के संसाधन हैं, उसकी लोकेशन का पता लगाकर फोन ढूंढ सकते थे। लेकिन, अप्लीकेशन कुछ देर बाद भी दी जा सकती थी। मैंने उनसे यह भी कहा कि आईएमईआई नंबर से कुछ तो पता चल ही जाएगा। इस पर उनका कहना था कि उससे केवल टावर की लोकेशन पता लगती है ।

खुद से प्रयास करने का बाद भी कुछ पता नहीं चला तो वापस दूरदर्शन अपने दफ्तर चला आया। मोबाइल लॉक नहीं था, मुझे उसके मिसयूज़ की चिंता सत्ता रही था। कुछ पल सोचने के बाद मैंन तत्काल जोगीवाला चौकी में चौकी प्रभारी सतबीर भंडारी जी को फोन लगाया, क्योंकि मैं दूरदर्शन दफ्तर में था और जोगीवाला वहां से पास ही है। फोन काॅल उठते ही सामने से सीधे जवाब आया…काम बताइए। मैंने पूरी घटना बताई। बिना समय गवांए सतबीर भंडारी जी ने फोन नंबर और आईएमईआई नंबर मांगा। मैंने तुरंत भेज दिया।

कुछ देर बाद मैं चौकी पहुंचा और अप्लीकेशन दी, तब तक चौकी प्रभारी सतबीर भंडारी ने मोबाइल की लोकेशन का पता लगा लिया था, जो उन्हीं की चौकी क्षेत्र में थी। जबकि, फोन वहां से काफी दूर मोथरोवाला में खोया था। शाम होते-होते फोन मिल भी गया। ये कोई पहला मामला नहीं है। पत्रकारार होने कारण थाने-चौकी जाना लगा रहता है। सतबीर के पास जब भी कोई मामला आता है, वो लोगों को बेहद गंभीरता से सुनते और समझाते हैं।

ये इसलिए बता रहा हूं, क्योंकि यह काम करने और उसे और लंबा खींचने के बीच का अंतर बताता है। अगर मैं पहले वाले विकल्प पर काम करता तो, शायद मोबाइल नहीं मिल पाता। लेकिन, दूसरे वाले विकल्प ने मोबाइल वापस दिलवा दिया। ये संदेश उन लोगों के लिए भी है, जो लोगों को अक्सर लंबी प्रक्रिया बताकर उलझा देते हैं। ध्यान रहना चाहिए कि कोई भी आपके पास परेशान होने नहीं आता है। बल्कि, अपनी परेशानी के समाधान के लिए आता है।

  • प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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