Sunday , 1 June 2025
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सफर का सफरनामा : दून-टू-मोरी, अतिथि देवो भव:

दिन दो दिसंबर। समय दिन में करीब डेढ़ बजे। सफर दून-टू-मोरी। वाहन बड़े भाई दिनेश रावत का। मौका अनुरूपा ‘अनुश्री’ के पहले रवांल्टी कविता संग्रह ‘तऊं घाट’ के लोकार्पण का। जब भी अपनी दूधबोली रवांल्टी से जुड़ा कोई आयोजन होता हैं, मैं खुद को रोक नहीं पाता हूं। बैग दो-तीन दिन पहले ही पैक हो जाता है। दफ्तर में तिकड़मबाजी करके चल पड़ता हूं।

तीन दिसंबर को मोरी के राजकीय इंटर कॉलेज में अनुरूपा ‘अनुश्री’ के कविता संग्रह का लोकार्पण हुआ। कार्यक्रम की जानकारी पहले ही मिल गई थी। जब भी ऐसा कोई आयोजन होता है। सबसे पहले उत्तराखंड गौरव महावीर रवांल्टा, दिनेश रावत और शशी मोहन रवांल्टा को फोन लगाता हूं। चूंकि मैं देहरादून, दिनेश रावत जी हरिद्वार और शशि मोहन रवांल्टा दिल्ली में हैं।

 

पहाड़ का रास्ता दून से होकर जाता है तो पहले यह तय होता है कि हम तीनों आयोजन में कैसे पहुंचेंगे। अक्सर हम या तो दिनेश रावत जी के साथ सवार हो जाते हैं, वो चाहे किसी भी परिस्थिति में हों, हमेशा तैयार रहते हैं। कभी व्यवस्था नहीं बनी तो हम अपनी स्कूटी पर सवार होकर निकल पड़ते हैं।

दो दिसंबर को दिनश रावत भाई जी, भाभी जी और बच्चों के साथ हरिद्वार से दूहरादून पहुंचे। करीब एक-डेढ़ बजे मोथरोवाला बाईपास के पास से उनके वाहन में सवार हुआ। शशी भी सुबह ही करीब सात बजे देहरादून पहुंचे थे। उनकी प्रतिबद्धता का आप अंदाजा लगा सकते हैं कि दो दिनों से बिना सोए वो समय पर शिमला बाईपास चौराहे पर पहुंच गए।

गाड़ी में जगह कम थी, सवारी और सामान ज्यादा। बहरहाल हम निकल पड़े। मैंने देहरादून में पहले ही एक गोली दबा ली थी। जुडो से पहले तक गोली ने पूरा काम किया। वहां हमने एक ढाबे पर छोले-चावल और गोभी की पकौड़ी ठूंस ली। फिर क्या था…अपने आप पर किसी तरह पूरा काबू रखा। लेकिन, जमुना पुल से कुछ किलोमीटर आगे पहुंचे थे कि कार की अगली सीट पर बैठी भाभी जी (ललीता रावत) ने गाड़ी रोकने के लिए कहा।

दिनेश भाई ने गाड़ी रोकी…जैसे ही मैं बाहर निकला पेट से गुड़-गुड़ की आवाज़ और निगले हुए को उगलने के संकेत पेट ने दिमाग तक पहुंचाया। फिर क्या था…उआ…उआ…जो निगला था, सब उगल दिया। सिर थोड़ा हल्का हुआ। वहीं, हमने कुछ देर गीत-संगीत के साथ नृत्य की प्रस्तुति दी। हमारा नृत्य देव, दैंत्य, गंदर्भ और गाड़ियों से आते-जाते लोगों ने देखा।

गाड़ी में सवार होकर वहां से नौगांव पहुंचे। शशि मोहन रवांल्टा के घर में पहले से ही छोटी बहन सीमा रावत और साले साहब (सोनू) ने आलू और पनीर के पकौड़े तैयार किए हुए थे। चाय की बारी आई तो हमने अपनी पसंदीदा चाय काली चाह मांगी। सीमा ने शानदार चाय पिलाई। सारा जख्म उतर गया। कुछ देर रुकने के बाद हम मोरी के लिए चल पड़े।

करीब आठ बजे हम मोरी से कुछ दूर पहले दिनेश रावत भाई जी की सुसुराल में पहुंचे। वहां पहुंचते ही चाय का आनंद लिया। जब तक खाना बना…आधा-अधूरा छोड़ा मैने भी सुना दिया। इतना पता था कि ना सुर लगेंगे ना ताल…पर कॉफिंडेंस पूरा था। शशी ने भी कह दिया कि गजब है। मुझे पता था कि गजब नहीं है, लेकिन मैंने मान लिया कि हां! गजब था। गरम पानी से हाथ-पैर धोने के बाद रसोई में पहुंचे।

शशी तब तक चूल्हे की शूटिंग में जुट गए थे। इंस्टाग्राम पर एक-दो स्टोरी भी चिपका चुके थे। जब भी हम साथ होते हैं, मौज हो जाती है। सफ़र यादगार बन जाता है। इधर, सोशल मीडिया में हमारे साथियों को कुछ दिक्कतें भी होने लगती हैं। खाना खाने के बाद हम पहुंच गए बैनोल गांव। जहां क्षेत्र के आराध्य देव कौंल महाराज पहुंचे हुए थे। कौंल महाराज के दर्शन किए। आग जली हुई थी…मतलब औंड दिया हुआ था। भरपूर आनंद लिया। देवता के बाजगियों से संध्या को होने वाली आरती गायी तो हमने उसे रिकॉर्ड कर लिया।

प्रसाद में बना हल्वा खाया और फिर वापस ठिकाने पर यानी दिनेश भाई की ससुराल लौट आए। सुसराल में माता जी ने शानदार मेहनाबाजी की…परंपरानुसार हमारा अतिथि सत्कार किया गया। पिठाईं लगाई गई। यही परंपराएं और अतिथि देवो भवः की संस्कृति हमारी पहचान हैं। अब अगली सुबह का इंतजार था….।

जारी…!

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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