पौड़ी : उत्तराखंड की साहित्यिक और जनपक्षीय धारा को समर्पित प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है। इस वर्ष का उमेश डोभाल स्मृति सम्मान 2024 चर्चित साहित्यकार महावीर रवांल्टा को प्रदान किया जाएगा। इसी कड़ी में गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ स्मृति जनकवि सम्मान अल्मोड़ा के युवा जनकवि हर्ष काफर को उनकी जनपक्षीय कविताओं के लिए दिया जाएगा।
29-30 मार्च को सिरोली में होगा पुरस्कार समारोह
हर साल की तरह इस बार भी यह सम्मान समारोह दिवंगत पत्रकार उमेश डोभाल के पैतृक गांव सिरोली (पौड़ी) में 29 व 30 मार्च को आयोजित किया जाएगा। उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट द्वारा दिए जाने वाले इन पुरस्कारों का मकसद जन सरोकारों से जुड़े साहित्य, पत्रकारिता और संस्कृति कर्म को सम्मानित करना है।
पुरस्कार विजेताओं की सूची
1. उमेश डोभाल स्मृति सम्मान 2024
महावीर रवांल्टा (साहित्यकार)
साहित्य के क्षेत्र में उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों, लोकभाषा एवं जनसरोकारों को समर्पित लेखनी के लिए यह सम्मान प्रदान किया जाएगा। रवांल्टी भाषा और साहित्य के संरक्षण में उनका योगदान अतुलनीय है।
2. गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ स्मृति जनकवि सम्मान
हर्ष काफर (कवि, अल्मोड़ा)
जनपक्षीय और जनसंघर्षों को आवाज़ देने वाली उनकी कविताओं ने व्यापक पहचान बनाई है।
3. राजेंद्र रावत ‘राजू’ स्मृति जनसरोकार सम्मान
समीर शुक्ला (मसूरी)
संस्कृति संवर्धन और लोककला संरक्षण में उनके योगदान के लिए।
4. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पुरस्कार
किशन जोशी
5. सोशल मीडिया पुरस्कार
प्रेम पंचोली
साहित्य का एक समर्पित हस्ताक्षर
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के सरनौल गांव में जन्मे महावीर रवांल्टा साहित्य की विभिन्न विधाओं में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने 39 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें उपन्यास, कहानी संग्रह, लघुकथा, नाटक, लोककथा और कविता संग्रह शामिल हैं।
उनकी रचनाएँ सामाजिक चेतना और लोकसंस्कृति को प्रतिबिंबित करती हैं। उन्होंने रवांल्टी भाषा को पहचान दिलाने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। रंगमंच में भी उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया है, उनकी कई कहानियों का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) और अन्य संस्थानों द्वारा किया गया है।
महावीर रवांल्टा को कई सम्मान मिल चुके हैं, जिनमें उत्तराखंड भाषा संस्थान का ‘गोविंद चातक पुरस्कार’ भी शामिल है। उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट हर साल उन लोगों को सम्मानित करता है, जो समाज के हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज़ को बुलंद करते हैं। यह आयोजन सिर्फ सम्मान नहीं, बल्कि जनपक्षधरता के प्रति प्रतिबद्धता का उत्सव भी है।
साहित्य, नाटक एवं रंगमंच में महावीर रवांल्टा का योगदान
महावीर रवांल्टा साहित्य की अनेक विधाओं में अपनी खास पहचान बना चुके हैं। उन्होंने उपन्यास, कहानी, कविता, लोक साहित्य, व्यंग्य, लघुकथा, आलेख, समीक्षा, साक्षात्कार जैसी विधाओं में उल्लेखनीय लेखन किया है।
रंगमंच एवं नाट्य साहित्य में भी उनका योगदान अद्वितीय है। उन्होंने कई नाटक एवं बाल एकांकी लिखे, जिनमें प्रमुख हैं:
‘सफेद घोड़े का सवार’
‘खुले आकाश का सपना’
‘मौरसदार लड़ता है’
‘तीन पौराणिक नाटक’
‘गोलू पढ़ेगा’
‘ननकू नहीं रहा’
‘पोखू का घमंड’
अभिनय और निर्देशन में भी उनकी गहरी पकड़ रही है। उन्होंने 1980 के दशक में गांव की रामलीला एवं पौराणिक नाटकों से अभिनय की शुरुआत की और के. पी. सक्सेना के प्रसिद्ध प्रहसन ‘लालटेन की वापसी’ को रवांई क्षेत्र में ‘हिस्यूं छोलकु’ नाम से मंचित किया।
इसके अलावा उन्होंने ‘सत्यवादी हरिश्चंद्र’, ‘अहिल्या उद्धार’, ‘श्रवण कुमार’, ‘मौत का कारण’, ‘अधूरा आदमी’, ‘साजिश’, ‘जीतू बगड्वाल’ जैसे नाटकों के माध्यम से गांवों में नाट्य शिविरों की नींव रखी।
उत्तराखंड के नाट्य मंचन में सक्रिय भूमिका
महावीर रवांल्टा ने उत्तरकाशी में रवांई-जौनपुर विकास युवा मंच के माध्यम से तिलाड़ी कांड पर आधारित नाटक ‘मुनारबंदी’ और ‘बालपर्व’ का मंचन किया।
उत्तरकाशी के राजकीय पॉलीटेक्निक में ‘दो कलाकार’ और ‘समानांतर रेखाएँ’ जैसे नाटकों का निर्देशन किया। बुलंदशहर में ‘ननकू नहीं रहा’ नाटक का सफल मंचन किया।
उन्होंने उत्तरकाशी की प्रसिद्ध ‘कला दर्पण’ नाट्य संस्था की स्थापना में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और ‘काला मुँह’, ‘बांसुरी बजती रही’, ‘अंधेर नगरी’, ‘हैमलेट’, ‘शूटिंग जारी है’ जैसे नाटकों से जुड़े रहे।
उत्तरकाशी के नाट्य इतिहास में वीरेंद्र गुप्ता द्वारा निर्देशित पहले पूर्णकालिक हास्य नाटक ‘संजोग’ में महावीर रवांल्टा ने नायक की यादगार भूमिका निभाई थी। वे डॉ. सुवर्ण रावत द्वारा निर्देशित ‘बीस सौ बीस’, ‘मुखजात्रा’ और ‘चिपको’ नाटकों से भी जुड़े रहे।
रवांई की लोकगाथाओं को मंच तक पहुँचाने की कोशिश
महावीर रवांल्टा हमेशा से रवांई क्षेत्र की लोकगाथाओं को मंच पर लाने के प्रयास में जुटे रहे हैं। उनकी आगामी नाट्यकृति ‘धुएँ के बादल’, जो एक लोकगाथा पर आधारित है, जल्द ही पाठकों के समक्ष आएगी।
साहित्य और रंगमंच के क्षेत्र में विशेष योगदान
महावीर रवांल्टा की लेखनी सिर्फ साहित्य तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने नाट्यशास्त्र, निर्देशन और अभिनय में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनके नाटक सामाजिक मुद्दों, लोक संस्कृति और ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित होते हैं, जो समाज को नई दिशा देने का कार्य करते हैं।