KOTDWAR : पहाड़ के गांधी स्वर्गी इंद्रमणि बडोनी जी की पुण्यतिथि पर उत्तराखंड विकास पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। पार्टी अध्यक्ष मुजीब नैथानी ने कहा कि राज्य शहीदों के सपनों का उत्तराखंड अभी भी नहीं बना है, जब तक राजधानी गैरसैंण नहीं जाती तब तक राज्य शहीदों के सपनों का पूरा होना बे मायने हैं। दिसम्बर 1924 को टिहरी के ओखड़ी गांव में जन्मे बडोनी मूलतः एक संस्कृति कर्मी थे। 1956 में राजपथ पर गणतंत्र दिवस के मौके पर इन्द्रमणि बडोनी ने हिंदाव के लोक कलाकार शिवजनी ढुंग, गिराज ढुंग के नेतृत्व में केदार नृत्य का ऐसा समा बंधा की तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी उनके साथ थिरक उठे थे।
सुरेशानंद बडोनी के पुत्र इन्द्रमणि बडोनी की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए वह नैनीताल और देहरादून रहे। इसके बाद नौकरी के लिए बंबई गये जहाँ से वह स्वास्थ्य कारणों से वापस अपने गांव लौट आये. 1961 में वो गाँव के प्रधान बने। इसके बाद जखोली विकास खंड के प्रमुख बने। बाद में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान सभा में तीन बार देव प्रयाग विधानसभा सीट से जीतकर प्रतिनिधित्व किया। 1977 का चुनाव उन्होंने निर्दलीय लड़ा और जीता भी।
उत्तर प्रदेश में बनारसी दास गुप्त के मुख्यमंत्रित्व काल में वे पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष रहे। बडोनी ने 1989 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा। यह चुनाव बडोनी दस हजार वोटो से हार गये, कहते हैं कि पर्चा भरते समय बडोनी की जेब में मात्र एक रुपया था जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी ब्रह्मदत्त ने लाखों रुपया खर्च किया।
1988 में उत्तराखंड क्रांतिदल के बैनर तले बडोनी ने 105 दिन की पदयात्रा की. यह पदपात्रा पिथौरागढ़ के तवाघाट से देहरादून तक चली। उन्होंने गांव के घर-घर जाकर लोगों को अलग राज्य के फायदे बताये। 1992 में उन्होंने बागेश्वर में मकर संक्रांति के दिन उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण घोषित कर दी।