देश में इन दिनों भले मणिपुर जल रहा हो। दो टुकड़ों बंटने की कगार पर हो, लेकिन देशभर में चर्चा केवल और केवल धर्मांतरण की हो रही है। टीवी चैनलों से लेकर आम लोगों तक सभी केवल धर्मांतरण की चर्चा कर रहे हैं। ना तो सरकार को देश के एक राज्य के तबाह होने की चिंता है और ना देश के लोगों को हिन्दू-मुस्लमान से अलग कुछ और नजर आता है।
धर्मांतरण को लेकर रोज नई खबरें छप रही हैं। देश में पहली बार धार्मंतरण नहीं हो रहा है। इससे पहले भी होता रहा है। खासकर ब्रिटिश सरकार में धर्मांतरण का खेल बड़े स्तर पर हो हुआ था। इसी धर्मांतरण के खेल ने सुल्तान सिंह को डाकू बना दिया। नाम पड़ा…सुल्ताना डाकू…। वो धर्मांतरण से इतना ज्यादा दुखी हुआ कि वो बन गया बीहड़ का डाकू। ऐसा खूंखार डाकू जिसके नाम से भी पुलिस थरथराती थी। इस डाकू ने सिर्फ धर्मांतरण को रोकने के लिए घर-बार का त्याग कर दिया और बीहड़ को चुना। उसने हाथ में बंदूक उठा ली और फिर आगे बढ़ता ही चला गया।
ये कहानी है डाकू सुल्ताना की जिसका असली नाम सुल्तान सिंह था। साल 1901 में सुल्तान सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में हुआ। तब देश में अंग्रेजों का शासन था। बचपन से ही वो भेदभाव देखता आया। जब सुल्ताना की उम्र 17 साल हुई तो एक वारदात ने उसका जीवन हमेशा के लिए बदल के रख दिया। उसके गांव में अंग्रेज हिंदुओं को ईसाई धर्म में कन्वर्ट कर रहे थे और वो भी कोई लालच या पैसा देकर नहीं बल्कि मारपीट कर लोगों का धर्मांतरण (त्मसपहपवद ब्वदअमतेपवद) हो रहा था। लोगों को बंदूक की नोक पर धर्म बदलने के लिए मजबूर किया जा रहा था। बस ये वो दिन था जब सुल्तान सिंह ने अंग्रेजों से बदला लेने की ठान ली।
17 साल का लड़का ये तो तय कर चुका था कि वो अंग्रेजों के धर्मांतरण को रोकेगा, लेकिन कैसे? सुल्तान इसके बाद वापस अपने घर नहीं लौटा। उसने जंगलों में ही अपनी राह चुनी। वो नजीबाबाद के जंगलों में रहने लगा और अंग्रेजों के खिलाफ एक गैंग तैयार किया। धीरे-धीरे कई लड़के उसके साथ जुड़ने लगे। ये लोग गांव के उन अमीर लोगों को निशाना बनाते थे जो अंग्रेजों का साथ देते थे। ये ऐसे घरों में डकैती करने लगे और डकैती किए हुए पैसों को गरीबों में बांटने लगे।
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धीरे-धीरे सुल्तान सिंह का गैंग मजबूत होने लगा था और अब ये अंग्रजों के लिए मुसीबत बनने लगा था। अंग्रेज सुल्तान सिंह को सुल्ताना कहने लगे और सुल्तान सिंह डाकू सुल्ताना के नाम से मशहूर हो गया। सुल्ताना का डकैती का अंदाज भी बड़ा निराला था। वो जिसके घर में भी डाका डालता था वहां पहले एक खत भिजवाता था। उस खत में डकैती का दिन और टाइम पहले से ही तय होता था। तय टाइम पर ही सुल्ताना का गैंग उस घर में डकैती करता था।अंग्रेजों की पुलिस चाहते हुए उसे नहीं रोक पाती थी।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड तब एक ही हुआ करता था। वहां के जंगलों में सिर्फ डाकू सुल्ताना का ही राज चलता था। अगर किसी ने अंग्रेजों से डाकू सुल्ताना के खिलाफ मदद मांगी तो उसकी मौत तय थी और इसलिए ज्यादातर लोग ऐसा करने से बचते थे। आमतौर पर डाकू सुल्ताना किसी की हत्या नहीं करता था। गरीब लोगों की मदद करने की वजह से उसे लोग अपना सहारा मानने लगे थे। उसकी छवि गरीबों के बीच राबिनहुड की बन चुकी थी। वो एक-एक कर अंग्रेजों और उनके सहयोगियों को निशाना बना रहा था। अंग्रेजी हुकूमत के लिए डाकू सुल्ताना मुसीबत बनता जा रहा था।
वो जंगलों में छुपा रहता था इसलिए अंग्रेजी फौज के लिए उसे पकड़ना आसान नहीं था। कहते हैं कितनी बार उसे पकड़ने की कोशिश की गई, लेकिन हर बार अंग्रेजी अधिकारी नाकाम ही हुए। यहां तक की जंगल को जानने वाले जिम कॉर्बेट की मदद भी डाकू सुल्ताना को पकड़ने के लिए ली गई। एडवर्ड जिम कॉर्बेट नैनीताल में जन्मे ब्रिटिश भारतीय थे। उन्होंने उत्तराखंड के जंगलों के लिए काफी ज्यादा काम किया और उन्हीं के नाम पर जिम कॉर्बेट उद्यान का नाम पड़ा। खैर एडवर्ड कॉर्बेट को पूरे जंगल का अच्छा आइडिया था और इसलिए ब्रिटिश सेना ने डाकू सुल्ताना को पकड़ने के लिए उनकी मदद ली, लेकिन इसके बावजूद डाकू सुल्ताना को गिरफ्तार नहीं कर पाए।
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अंग्रेजी हुकूमत किसी भी कीमत पर इसे पकड़ना चाहती थी। उस समय के एक यंग ऑफिसर फ्रेडी को अब ये काम सौंपा गया। 300 जवानों और 50 घुड़सवारों की एक टीम तैयार की गई जो जंगल में डाकू सुल्ताना को गिरफ्तार करेगी। फ्रेडी का एकमात्र लक्ष्य था सुल्ताना को गिरफ्तार करना, लेकिन कई कोशिशों के बावजूद डाकू फ्रेडी की पकड़ में नहीं आ रहा था। यहां तक की एक बार तो डाकू सुल्ताना से फ्रेडी का आमना सामना हुआ और डाकू सुल्ताना ने फ्रेडी की जान बख्श दी। इसके बाद तो वो ऑफिसर फ्रेडी सुल्ताना का कायल हो गया। हालांकि फ्रेडी ने अपना काम जारी रखा।
डाकू सुल्ताना के गैंग के ही कुछ लोगों ने डाकू सुल्ताना के साथ विश्वासघात किया और उसके जंगल में छुपे होने की सूचना पुलिस तक पहुंचा दी। आखिरकार 23 जून 1923 को इस डाकू को गिरफ्तार कर लिया गया। डाकू सुल्ताना और चार साथियों को 7 जुलाई 1924 फांसी दी गई, जबकि गैंग के 40 अन्य लोगों को कालापानी की सजा हुई। जिस ऑफिसर फ्रेडी ने सुल्ताना को गिरफ्तार किया था उसने प्रशासन से सुल्ताना को फांसी न देने की मांग की थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
फांसी की पहली रात फ्रेडी डाकू सुल्ताना से मिलने गया था। डाकू सुल्ताना ने फ्रेडी से कहा कि उसका एक बेटा है, वो चाहता था कि उसका बेटा एक इज्जतदार इंसान की जिंदगी जिए। कहते हैं बाद में फ्रेडी ने उस बच्चे को गोद ले लिया और उसे एक IPS ऑफिसर बनाया। डाकू सुल्ताना की पत्नी पुतली ने भी पति की मौत के बाद बीहड़ को चुना और डाकू बन गई।