Tuesday , 3 December 2024
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उत्तराखंड: जीवन संघर्ष का नाम था शैलेश मटियानी, पढ़ें ये खास संस्मरण

  • देवेन मेवाड़ी जी का संस्मरण 

आज 14 अक्टूबर शैलेश मटियानी जी का जन्म दिन है। कभी जब मैं भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा इंस्टिट्यूट), नई दिल्ली में शोध कार्य कर रहा था तो वे एक दिन अपना बड़ा-सा टीन का बक्सा लेकर मेरे किराए के कमरे में आकर बोले थे,”देबेन, इस बार दो-चार दिन तुम्हारे पास रुकूंगा।”(वे मुझे छोटा भाई मानते थे और देवेन नहीं देबेन कहते थे)।

दिन भर शहर की खाक छानने के बाद थके-मांदे लौटते तो फर्श पर दरी में बिस्तर बिछा कर आराम से लेट जाते और दिन भर की घटनाओं के किस्से सुनाते। उनको याद करते हुए उन्हीं में से ये दो किस्से।

एक दिन शाम को लौटे तो हाथ में खरौंच थी। पूछा तो कहने लगे, “मामूली चोट है। थोड़ा बंद चोट लग गई।”

“क्यों क्या हुआ?” मैंने पूछा।

“अरे कुछ नहीं। रिक्शा पलट गया था। लेकिन, रिक्शे वाले की कोई गलती नहीं थी। सामने से गाड़ी आ गई। अंसारी रोड वैसे ही संकरी है, ऊपर से गाड़ी, रिक्शा, टैम्पो की भीड़। रिक्शे वाला बचाता रहा, लेकिन एक जगह गड्ढा था। रिक्शा पलट गया। उसकी वास्तव में कोई गलती नहीं थी। लेकिन, राजेंद्र यादव अड़ गए। कहने लगे- रिक्शे वाले की गलती थी। मैंने कहा, बिना देखे कैसे कह सकते हो कि रिक्शेवाले की गलती थी?”

मैंने पूछा, “क्या राजेन्द्र यादव भी आपके साथ थे?”

बोले, “नहीं। मैं उनसे मिलने गया था, उनके आॅफिस में।”

“तो उन्हें क्या पता?”

“वही तो। लेकिन, वे नहीं माने। यही कहते रहे कि रिक्शेवाले की गलती थी। जब मैंने कहा, “कैसे?” तो राजेंद्र यादव ने उत्तर दिया, “उसने इस भारी-भरकम ट्रक की सवारी को अपने रिक्शे में बैठाया ही क्यों? उसी की गलती थी!” कह कर मटियानी जी हंसने लगे।

रिक्शेवाले की बात करते-करते उन्हें कुछ याद आ गया। कहने लगे, “मैंने इलाहाबाद में भी रिक्शे देखे, लेकिन सबसे अधिक रिक्शे बनारस में देखे। वहां रिक्शेवाले बड़ी सफाई से हर चीज से बचाते हुए रिक्शा निकाल ले जाते हैं। वहां तो सड़कों और गलियों में रिक्शा भी, तांगा भी, कार, स्कूटर, गाय, सांड़, आदमी, बैलगाड़ी और साइकिलें सभी एक साथ चलते रहते हैं। कोई बोरियां लाद कर ले जा रहा है, तो कोई सब्जियां, कोई सामान के बंधे हुए पैकेट, आगे-आगे फुंकारता सांड़, उसके पीछे रिक्शे में बैठी सवारियां, आड़े-तिरछे चलते घंटी टुनटुनाते साइकिल वाले…”

“एक बार बहुत ही मार्मिक दृश्य देखा मैंने,” उन्होंने कहा, “उसे कभी भूल नहीं सकता।”

“कैसा दृश्य?” मैंने पूछा।

“जिंदगी और मौत साथ-साथ। बहुत दुख हुआ उसे देख कर। रिक्शे, तांगों और गाड़ियों की उस भारी भीड़ में एक आदमी पीछे साइकिल के कैरियर पर कफन में रस्सी से कस कर बांध कर लपेटा हुआ एक शव ले जा रहा था। उससे पहले वह आदमी ज़िंदा रहा होगा। शायद मेहनत-मजूरी करता होगा। प्राण पखेरू उड़े तो इतने बड़े शहर की, हजारों की भीड़ में बस एक वही साइकिल वाला संगी-साथी रह गया, घाट तक पहुंचाने के लिए। सड़क पर भीड़ चली जा रही थी। किसी का किसी से कोई मतलब नहीं।

मरने के बाद साइकिल पर लदा आदमी…..बहुत दुखदायी दृश्य था। पता नहीं घाट पर जाकर उस संगी-साथी ने उसका दाह संस्कार कराया होगा या कौन जाने पैसों के अभाव में शव गंगा में प्रवाहित कर दिया हो। साइकिल के कैरियर पर खत्म हो गई थी। उस आदमी की जीवन यात्रा। उस घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया था और कई दिनों तक मन बहुत अशांत रहा। याद आने पर मन अब भी हिल जाता है। संघर्ष के प्रतीक, उस अप्रतिम कथाकार की स्मृति को सादर नमन।

(फेसबुक से साभार)

प्रसिद्ध साहित्यकार महावीर रवांल्टा ने अमर कथाशिल्पी शैलेश मटियानी को याद किया। फेसबुक पर लिखी पोस्ट उनके साथ अपनी स्मृति को साझा किया। उन्होंने लिखा उत्तराखंड शोध संस्थान के रजत जयंती समारोह (14 अक्टूबर2000) के अवसर पर हल्द्वानी में मुझे पहली बार शैलेश मटियानी से मिलने का सौभाग्य मिला था।अपने उस प्रिय कथाकार से हुई उस भेंट को मैं सारी उम्र नहीं भूल सकता।आज उनके जन्मदिन पर उन्हे शत्-शत् नमन।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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