Friday , 22 November 2024
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उत्तराखंड : एक फैसला और CM धामी की जीत पक्की!

देहरादून : प्रदेश में चुनावी आचार संहिता लगने से पहले सूबे की धामी सरकार एक ऐसा मास्टर स्ट्रोक फैसला ले सकती है जो आने वाले चुनावों में बीजेपी की जीत का रास्ता पुख्ता करने का माद्दा रखता है।

ये मास्टर स्ट्रोक है पीडब्लूडी इंजीनियरों से जुड़े नियमितिकरण/तदर्थीकरण से जुड़ा फैसला। धामी सरकार का ये मास्टर स्ट्रोक अगर सही जगह चोट कर गया तो सीएम धामी की युवा हितैषी छवि को दमदार मजबूती तो मिलेगी ही, साथ ही विपक्ष से लगातार मिल रही चुनौती का प्रेशर भी काफी कम हो जाएगा।

राजनीतिक और भावनात्मक मास्टर स्ट्रोक!

दरअसल, लोक निर्माण विभाग के 304 इंजीनियर्स करीब दो महीने से अपने नियमितिकरण/तदर्थीकरण की मांग पर अनिश्तिकालीन धरने पर बैठे हैं। इन युवा इंजीनिर्यस में वो युवक युवतियां शामिल हैं जिन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद बाहर जाने की जगह उत्तराखंड में रहकर प्रदेश के विकास में योगदान देने का निर्णय लिया।

सोशल मीडिया से लेकर प्रदेश के आम जनमानस को इन युवा इंजीनियर्स की पीड़ा ने काफी प्रभावित किया। इन युवाओं का कहना है कि इनका पलायन न करके सरकारों पर भरोसा करना क्या गलत फैसला था? अगर धामी सरकार इन्हें नियमित या तदर्थ रूप में समाहित करने का फैसला ले लेती है तो प्रदेश के युवाओं में बेहद सकारात्मक संदेश जाएगा।

युवा सीएम का युवाओं के लिए गया ये फैसला राष्ट्रीय स्तर पर भी सीएम धामी की मजबूत छवि स्थापित करेगा। साथ इन युवा इंजीनियरों के 304 परिवारों का भरोसा और समर्थन पुष्कर सिंह धामी को मिलना तय है।

समय कम है, ऐसे में सीएम धामी क्या फैसला लेंगे?

सरकार भी जानती है कि नियमितिकरण का फैसला बड़ा फैसला है। इसमें कई तरह के विभागीय परामर्श और पूर्ववर्ती नियमों का हवाला लेकर ही आगे बढ़ना होता है। सरकार के सकारात्मक रुख के बावजूद ये मामला लंबा वक्त ले सकता है जिसका चुनावी खामियाजा शायद पूरी बीजेपी को उठाना पड़े। ऐसे में सीएम धामी नियमितिकरण की जगह तदर्थीकरण का फैसला ले सकते हैं।

ऐसा करके कम विभागीय कार्रवाई में जल्द से जल्द इंजीनियर्स की मांग पूरी हो सकती है। सीएम यह भी फैसला ले सकते हैं कि तदर्थीकरण होने तक विभागीय संविदा इंजीनियर्स को नौकरी से न निकाला जाए। दरअसल इस पूरे विवाद की जड़ में हर साल होने वाले रिन्युअल का मामला ही है। युवा इंजीनियरों को हर साल ये डर सताता रहता है कि उन्हें जब चाहे एक विभागीय आदेश के जरिए बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है जिससे उनके करियर की अनिश्चितता बनी रहती है।

कई इंजीनियर्स नें पारिवारिक और सामाजिक दबाव के कारण मानसिक परेशानियों और अवसाद जैसी स्थितियों का भी सामना किया है! ऐसे में अगर सीएम युवा इंजीनियरों को ये भरोसा दिलवा पाते हैं कि नियमितिकरण तक विभागीय संविदा इंजीनियर्स की नौकरी नहीं छीनी जाएगी तो सीएम शांतिपूर्ण और विवेकपूर्ण तरीके से इस मामले का पटाक्षेप कर सकते हैं।

 

पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट्स की रीढ़ हैं ये इंजीनियर्स

प्रदेश के युवा और होनहार इंजीनियर्स युवक युवतियां अपने समकक्ष नियमित कनिष्ठ अभियन्ताओं की ही तरह प्रदेश के अति दुर्गम स्थलों के साथ ही तमाम क्षेत्रों में तैनात हैं। प्रदेश की अधोसंरचना विकास कार्यों से जुड़े कामों के साथ साथ ये संविदा इंजीनियर्स चारधाम राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना, भारत माला परियोजना और केदारनाथ-बदरीनाथ पुनर्निर्माण जैसी पीएम मोदी की महत्कांक्षी परियोजनाओं में दिन रात अपनी सेवाएं दे रहे हैं। खबरों के मुताबिक इन युवाओं के मुद्दे पर केन्द्रीय स्तर के नेताओं की भी नजर है क्योंकि ये इंजीनियर्स पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट से जुड़े हुए हैं।

विपक्ष के मुंह से छिन जाएगा मुद्दा

ये युवा इंजीनियर्स जबसे हड़ताल पर बैठे हैं कांग्रेस समेत हर विपक्षी दल का समर्थन इन्हें मिलता रहा है। यहां तक कि नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने शीतकालीन सत्र के दौरान विधानसभा में ये मुद्दा जोर शोर से उठाया था। अगर धामी सरकार इस मुद्दे को टाल देती है या फैसला लेने में देर कर देती है तो कांग्रेस को चुनावी मौसम में बैठे बिठाए मुद्दा मिल जाएगा जिससे संभवत: प्रदेश का हर युवा इत्तेफाक भी रखे।

ऐसे में धामी सरकार इन युवा इंजीनियरों के पक्ष में फैसला लेकर युवाओं के दिल जीतने के साथ साथ विपक्ष का मुंह से मुद्दा छीनने में भी कामयाबी हासिल कर सकती है।

क्या है संविदा पीडब्लूडी इंजीनियर्स की मांग

पीडब्लूडी के 304 विभागीय संविदा इंजीयर्स पिछले करीब दो महीने से अपनी मांगों को लेकर देहरादून के एकता विहार में हड़ताल पर हैं। इन युवा इंजीनियर्स का कहना है कि ये लोग विभाग में कम से 6 से 12 साल से संविदा पर नियुक्त हैं लेकिन आज तक इनके नियमितिकरण का रास्त साफ नहीं हो पाया।

इंजीनियर्स का कहना है कि इनका चयन तय सरकारी मानकों के आधार रिक्त पदों के सापेक्ष खुली और पारदर्शी चयन प्रक्रिया के तहत हुआ था। उनसे पहले राजकीय नियमों के आधार पर इन्हीं की तरह नियुक्त करीब 38 विभागीय संविदा कनिष्ठ अभियन्ताओं की नियमित नियुक्ति हो चुकी है। लेकिन इनके मामले में मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

शांतिपूर्ण प्रदर्शन से जीता सबका दिल

सिर पर सफेद टोपियां पहने हड़ताल पर बैठे इन इंजीनियर्स के शांतिपूर्ण और प्रोफेशनल तरीके से किए गए प्रदर्शनों का हर कोई मुरीद भी हुआ। सोशल मीडिया पर इनके प्रदर्शन की काफी तारीफ भी हुई। खुद पुलिस प्रशासन भी इनके शांतिपूर्ण रवैये का मुरीद हुआ।

31 दिसंबर को कैबिनेट बैठक के दौरान टंकी पर चढ़ने के अलावा प्रशासन के सामने इन इंजीनियर्स ने कोई बड़ी चुनौती भी पेश नहीं की और अपना प्रदर्शन शांतिपूर्वक करते रहे। पीडब्लूडी ही नहीं बल्की दूसरे सरकारी विभागों के कर्मचारियों ने भी इन युवा इंजीनियर्स के आंदोलन के तरीके की तारीफ की।

पूरी सरकार साथ फिर कहां अटकी है बात?

इंजीनियर्स की मांगों पर शुरुआत में तो धामी सरकार ने कोई खास ध्यान नहीं दिया लेकिन जैसे जैसे सरकार पर दबाव बना सरकार ने इनकी मांगों पर विचार शुरू किया। दरअसल संविदा इंजीनियर्स के नियमितिकरण और तदर्थीकरण को लेकर नीतियों में स्पष्टता के अभाव में कार्मिक विभाग किसी निर्णय पर पहुंचने से बचता रहा। लिहाजा नियमितिकरण की फाइल लोक निर्माण विभाग और कार्मिक विभाग के बीच ही लटकती रही। इस बीच युवा इंजीनियर्स ने सरकार के तमाम मंत्रियों विधायकों से संपर्क किया तो 10 के 10 मंत्रियों ने घोषित रूप से इंजीनियर्स की मांगों का समर्थन किया।

यही नहीं बीजेपी के कई विधायक और वरिष्ठ पदाधिकारी भी युवाओं को समर्थन जता चुके हैं। सूचनाओं के मुताबिक बीजेपी के राष्ट्रीय स्तर के नेता भी इन युवाओं के हक में कई बार आलाकमान और सीएम कार्यालय से संपर्क कर चुके हैं। इसके बावजूद लंबे वक्त तक कैबिनेट तक ये मामला नहीं आ पाया।

आखिरकार पीडब्लूडी मंत्री सतपाल महाराज ने जब 31 दिसंबर की कैबिनेट बैठक में इन इंजीनियर्स का मुद्दा उठाया तो तमाम मंत्रियों ने पूरे समर्थन के साथ मामला सीएम पुष्कर सिंह धामी के अंतिम निर्णय पर छोड़ दिया था।

बीजेपी नेता जानते हैं कि इन युवाओं के हित में लिया गया फैसला प्रदेश में बड़े स्तर पर सरकार की सकारात्मक छवि का निर्माण करेगा और पार्टी की चुनावी डगर आसान हो सकती है। ऐसे में सीएम धामी के उस ‘अंतिम’ फैसले पर इंजीनियर्स के साथ साथ समूची बीजेपी की भी नजर है।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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