Uttarakhand Vidhan Sabha Backdoor Recruitment Case: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त किये गए 100 से अधिक कर्मचारियों की बर्खास्तगी आदेश पर रोक लगा दी है। फिलहाल कर्मचारियों की नौकरी बनी रहेगी।विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भूषण ने पूर्व प्रमुख सचिव डीके कोटिया की अध्यक्षता में बनाई समिति की सिफारिशों के आधार पर इन कर्मचारियों की बर्खास्तगी का निर्णय लिया था। यह सब तदर्थ कर्मचारी हैं।
मामले को सुनने के बाद न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने विधानसभा सचिवालय के कर्मचारियों की बर्खास्तगी के आदेश पर अग्रिम सुनवाई तक रोक लगा दी है। साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि ये कर्मचारी अपने पदों पर कार्य करते रहेंगे। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि अगर, सचिवालय चाहे तो रेगुलर नियुक्ति की प्रक्रिया चालू कर सकती है। साथ ही कोर्ट ने इस मामले में विधान सभा सचिवालय से चार सप्ताह के जवाब पेश करने को कहा है। मामले कि अगली सुनवाई 19 दिसंबर नियत की गई है।
बता दें, कि उत्तराखंड विधानसभा की अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने विधानसभा में बैकडोर से हुईं 250 भर्तियां रद्द कर दी थी। इनमें 228 तदर्थ और 22 उपनल के माध्यम से हुईं नियुक्तियां शामिल हैं। ये भर्तियां 2016 में विधानसभा अध्यक्ष रहे गोविंद सिंह कुंजवाल के कार्यकाल और 2020-2021 में तत्कालीन विस अध्यक्ष रहे प्रेमचंद अग्रवाल के कार्यकाल में हुई थीं। इन भर्तियों का मुद्दा सोशल मीडिया में उठने के बाद और प्रेमचंद अग्रवाल के बयान के बाद विवाद गहरा गया था। जिस पर विशेषज्ञ जांच समिति का गठन किया गया और जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर विस अध्यक्ष ने 250 भर्तियां रद्द कर दी थी।
मामले में अपनी बर्खास्तगी के आदेश को बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ट व कुलदीप सिंह समेत अन्य कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने कोर्ट को बताया कि, विधानसभा अध्यक्ष ने लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं समाप्त कर दी, मगर बर्खास्तगी आदेश में उन्हें किस आधार पर किस कारण की वजह से हटाया गया, कहीं इसका उल्लेख नहीं किया गया न ही उन्हें सुना गया। जबकि उनके सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया है। एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नही है। यह आदेश विधि विरुद्ध है। विधान सभा सचिवालय में 396 पदों पर बैकडोर नियुक्तियां 2002 से 2015 के बीच भी हुई है, जिनको नियमित किया जा चुका है।
याचिका में कहा गया है कि 2014 तक हुई तदर्थ रूप से नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई । किन्तु उन्हें 6 वर्ष के बाद भी स्थायी नहीं किया, अब उन्हें हटा दिया गया। पूर्व में भी उनकी नियुक्ति को जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गयी थी, जिसमे कोर्ट ने उनके हित में आदेश दिया था जबकि नियमानुसार छह माह की नियमित सेवा करने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था।
वहीं बीते दिवस न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने इन कर्मचारियों को सुनवाई का मौका नहीं देने पर नाराजगी जताई थी और विधानसभा से इस बिंदु पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा था।