Wednesday , 12 March 2025
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अच्छी खबर: महावीर रवांल्टा हुए ‘मुनि ब्रह्म गुलाल नाट्यश्री अलंकरण’ से सम्मानित

फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) में आयोजित षष्ठ अंतरराष्ट्रीय प्रज्ञा सम्मान समारोह में प्रख्यात साहित्यकार महावीर रवांल्टा को पद्मभूषण दादा बनारसी दास चतुर्वेदी स्मृति – ‘मुनि ब्रह्म गुलाल नाट्यश्री अलंकरण’ से सम्मानित किया गया। यह प्रतिष्ठित सम्मान उन्हें उनकी नाट्यकृति ‘एक प्रेमकथा का अंत’ के लिए प्रदान किया गया, जो रवांई क्षेत्र की सुप्रसिद्ध लोकगाथा ‘गजू-मलारी’ पर आधारित है।

सम्मान समारोह का भव्य आयोजन

यह सम्मान समारोह प्रज्ञा हिन्दी सेवार्थ संस्थान ट्रस्ट-फिरोजाबाद द्वारा बच्चू बाबा सरस्वती विद्या मंदिर, सीनियर सेकेंडरी स्कूल में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री डॉ. उषा यादव ने की, जबकि बुंदेलखंड एवं सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. सुरेन्द्र दुबे मुख्य अतिथि रहे। समारोह में भारतीय ज्ञानपीठ के महाप्रबंधक आर. एन. तिवारी, मारीशस की प्रेरणा आर्यनायक विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे, जबकि डॉ. राम सनेही ‘यायावर’ का सान्निध्य कार्यक्रम को प्राप्त हुआ।

महावीर रवांल्टा को सम्मानस्वरूप गंठमाला, स्मृति चिन्ह, श्रीफल, अंगवस्त्र, प्रशस्ति पत्र, फिरोजाबाद में निर्मित बर्तन एवं चूड़ियाँ, स्मारिका और सम्मान राशि का चेक प्रदान किया गया।

इस अवसर पर ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष अभिषेक मित्तल ‘क्रांति’ ने सभी अतिथियों एवं साहित्यकारों का स्वागत किया। मुख्य निदेशक पूरनचंद गुप्ता ने आभार व्यक्त किया, जबकि अध्यक्ष यशपाल ‘यश’ ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संयोजन डॉ. संध्या द्विवेदी ने संभाला, और संचालन ट्रस्ट के प्रबंध सचिव कृष्ण कुमार ‘कनक’ ने किया।

साहित्य, नाटक एवं रंगमंच में महावीर रवांल्टा का योगदान

महावीर रवांल्टा साहित्य की अनेक विधाओं में अपनी खास पहचान बना चुके हैं। उन्होंने उपन्यास, कहानी, कविता, लोक साहित्य, व्यंग्य, लघुकथा, आलेख, समीक्षा, साक्षात्कार जैसी विधाओं में उल्लेखनीय लेखन किया है।

रंगमंच एवं नाट्य साहित्य में भी उनका योगदान अद्वितीय है। उन्होंने कई नाटक एवं बाल एकांकी लिखे, जिनमें प्रमुख हैं:

  • ‘सफेद घोड़े का सवार’
  • ‘खुले आकाश का सपना’
  • ‘मौरसदार लड़ता है’
  • ‘तीन पौराणिक नाटक’
  • ‘गोलू पढ़ेगा’
  • ‘ननकू नहीं रहा’
  • ‘पोखू का घमंड’

अभिनय और निर्देशन में भी उनकी गहरी पकड़ रही है। उन्होंने 1980 के दशक में गांव की रामलीला एवं पौराणिक नाटकों से अभिनय की शुरुआत की और के. पी. सक्सेना के प्रसिद्ध प्रहसन ‘लालटेन की वापसी’ को रवांई क्षेत्र में ‘हिस्यूं छोलकु’ नाम से मंचित किया।

इसके अलावा उन्होंने ‘सत्यवादी हरिश्चंद्र’, ‘अहिल्या उद्धार’, ‘श्रवण कुमार’, ‘मौत का कारण’, ‘अधूरा आदमी’, ‘साजिश’, ‘जीतू बगड्वाल’ जैसे नाटकों के माध्यम से गांवों में नाट्य शिविरों की नींव रखी

उत्तराखंड के नाट्य मंचन में सक्रिय भूमिका

महावीर रवांल्टा ने उत्तरकाशी में रवांई-जौनपुर विकास युवा मंच के माध्यम से तिलाड़ी कांड पर आधारित नाटक ‘मुनारबंदी’ और ‘बालपर्व’ का मंचन किया।

उत्तरकाशी के राजकीय पॉलीटेक्निक में ‘दो कलाकार’ और ‘समानांतर रेखाएँ’ जैसे नाटकों का निर्देशन किया। बुलंदशहर में ‘ननकू नहीं रहा’ नाटक का सफल मंचन किया।

उन्होंने उत्तरकाशी की प्रसिद्ध ‘कला दर्पण’ नाट्य संस्था की स्थापना में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और ‘काला मुँह’, ‘बांसुरी बजती रही’, ‘अंधेर नगरी’, ‘हैमलेट’, ‘शूटिंग जारी है’ जैसे नाटकों से जुड़े रहे।

उत्तरकाशी के नाट्य इतिहास में वीरेंद्र गुप्ता द्वारा निर्देशित पहले पूर्णकालिक हास्य नाटक ‘संजोग’ में महावीर रवांल्टा ने नायक की यादगार भूमिका निभाई थी। वे डॉ. सुवर्ण रावत द्वारा निर्देशित ‘बीस सौ बीस’, ‘मुखजात्रा’ और ‘चिपको’ नाटकों से भी जुड़े रहे।

रवांई की लोकगाथाओं को मंच तक पहुँचाने की कोशिश

महावीर रवांल्टा हमेशा से रवांई क्षेत्र की लोकगाथाओं को मंच पर लाने के प्रयास में जुटे रहे हैं। उनकी आगामी नाट्यकृति ‘धुएँ के बादल’, जो एक लोकगाथा पर आधारित है, जल्द ही पाठकों के समक्ष आएगी।

साहित्य और रंगमंच के क्षेत्र में विशेष योगदान

महावीर रवांल्टा की लेखनी सिर्फ साहित्य तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने नाट्यशास्त्र, निर्देशन और अभिनय में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनके नाटक सामाजिक मुद्दों, लोक संस्कृति और ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित होते हैं, जो समाज को नई दिशा देने का कार्य करते हैं।

‘मुनि ब्रह्म गुलाल नाट्यश्री अलंकरण’ से सम्मानित होकर महावीर रवांल्टा ने न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि संपूर्ण हिंदी साहित्य और नाट्य मंचन के क्षेत्र में अपने योगदान को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया है। उनकी लेखनी और रंगमंच के प्रति समर्पण उन्हें आधुनिक हिंदी नाटक और लोकसाहित्य का महत्वपूर्ण हस्ताक्षर बनाता है।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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