Tuesday , 24 June 2025
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उत्तराखंड में संवैधानिक संकट, राजभवन ने बिना मंजूरी लौटाया अध्यादेश, अधर में लटकी पंचायतें

Dehradun : उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायतों में प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति को लेकर बड़ा संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। राज्य सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को राजभवन ने मंजूरी देने से इनकार कर वापस लौटा दिया है। इससे प्रदेश की पंचायत व्यवस्था अधर में लटक गई है और भविष्य की कार्यप्रणाली को लेकर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।

जल्दबाज़ी में अध्यादेश

राज्य के पंचायती राज विभाग ने प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद आनन-फानन में एक अध्यादेश तैयार किया ताकि प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति की जा सके। लेकिन इस अध्यादेश को पहले ही विधायी विभाग ने खारिज कर दिया था। विधायी विभाग का साफ़ कहना था कि कोई भी अध्यादेश यदि एक बार लौटा दिया गया है, तो उसे उसी रूप में दोबारा लाना संविधान के साथ धोखा होगा। फिर भी विभाग ने इस चेतावनी को दरकिनार करते हुए अध्यादेश को राजभवन भेज दिया।

राजभवन ने अध्यादेश लौटाया

राज्यपाल सचिवालय की ओर से जारी बयान में सचिव रविनाथ रामन ने स्पष्ट किया कि विधायी विभाग की आपत्तियों का समाधान किए बिना अध्यादेश को आगे बढ़ाया गया, जो प्रक्रिया के अनुरूप नहीं है। इसलिए इस प्रस्ताव को पुनः विधायी विभाग को लौटा दिया गया है। सचिव ने यह भी बताया कि राजभवन को कुछ बिंदुओं पर स्पष्टता नहीं मिली, जिन पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।

विधायी विभाग पहले ही कर चुका था आपत्ति

सूत्रों के अनुसार, विधायी विभाग ने अध्यादेश के प्रारूप में कुछ गंभीर कानूनी खामियां उजागर की थीं। विभाग का यह भी कहना था कि संविधान में अध्यादेश की प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए और ऐसा करना संविधान की मूल भावना के विपरीत है।

संवैधानिक संकट के संकेत

राजभवन के इस फैसले के बाद प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के संचालन को लेकर संकट गहराता दिख रहा है। अगर जल्द कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं निकाला गया, तो ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों में नीतिगत फैसले लेने की प्रक्रिया रुक सकती है।

विपक्ष ने साधा निशाना

इस पूरे घटनाक्रम पर विपक्ष ने राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया है। विपक्षी नेताओं ने कहा है कि सरकार की जल्दबाज़ी और प्रक्रियात्मक लापरवाही के कारण राज्य की लोकतांत्रिक संस्थाएं संकट में हैं। यह संविधान की अवमानना है और इससे पंचायतों की स्वायत्तता पर भी सवाल खड़े होते हैं।

पंचायतों में कार्यकाल खत्म

ग्राम पंचायतेंः 7478 (प्रशासकों का कार्यकाल 4 दिन पहले खत्म)

क्षेत्र पंचायतेंः 2941 (कार्यकाल 2 जून को खत्म)

जिला पंचायतेंः 341 (कार्यकाल 1 जून को समाप्त)

क्या कहते हैं जानकार

पंचायती राज एक्ट के जानकारों का कहना है कि इस बार सावधानीपूर्वक संशोधित अध्यादेश लाया गया है। सरकार यदि विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इसे कानून में तब्दील कर दे, तो भविष्य में इस तरह की स्थिति से बचा जा सकता है। जानकारों को यह भी कहना है कि संविधान के अनुसार और पंचायती राज एक्ट के अनुसार पंचायतों को एक भी दिन खाली नहीं रखा जा सकता है।

विकासकार्यों पर पड़ेगा असर

उत्तराखंड में पंचायत चुनाव टलने और प्रशासकों के कार्यकाल समाप्त होने के चलते ग्राम स्तर से लेकर जिला स्तर तक विकास कार्यों पर असर पड़ सकता है। यह स्थिति स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही को खत्म करती है और ग्राम स्तर की योजनाओं में रुकावट डालती है। राज्य सरकार को चाहिए कि वह इस मामले को शीघ्र समाधान की ओर ले जाए, ताकि लोकतंत्र की जड़ों तक फैली त्रिस्तरीय व्यवस्था फिर से सक्रिय हो सके।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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