Wednesday , 18 June 2025
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इनसे मिलिए और जानिए कि ये क्यों खास हैं…

मिलिए इन खास महिला से :

हर रोज कुछ खास देखने, दिखाने व लिखने का मेरा शौक है । दिनभर के कामकाज के साथ – साथ जन सरोकारों से जुड़ें तमाम पहलुओं को भी तलाशता रहता हूँ । इस बार मौका मिला पिण्डर घाटी के दर्जनभर गांवों के समाजशास्त्र को करीब से जानने व देखने का। आगे समय-समय पर सबका उल्लेख भी करूँगा। रात्रि विश्राम थराली के नंदादेवी होटल में करने के पश्चात दूसरी सुबह मुझे जल्दी उठकर समय से गोपेश्वर पहुंचना था। इसलिए बिना समय गंवाए नाश्ता किए बगैर ही होटल से निकल गए

वक़्त सुबह-सुबह का था। बाहर ठण्ड काफी थी, गाड़ी में ब्लोअर ऑन था लेकिन पिण्डर नदी घाटी के किनारे-किनारे सरपट भागती बन्द बॉडी गाड़ी के अंदर भी ठण्डी सर-सराहट कहीं न कहीं से आ ही जाती थी। जिस कारण ब्लोवर की गर्म हवा भी बेजान हो रही थी, और मेरे घुटनों के टखनों में ठण्ड घुस ही जाती थी। लिहाजा ड्राइबर साहब को कहा कि आगे किसी ऐसी जगह रोकें, जहां पर सुबह की धूप अच्छे से बिछी हो और वहीं पर चाय के साथ-साथ नाश्ता भी कर लेंगे।

लगभग एक सवा घंटे बाद वह जगह आ ही गई। गाड़ी किनारे खड़ी कर दी। मैं गाड़ी में बैठे-बैठे ही चटक धूप का आनंद लेने लगा। साथ में दीपू चाय और परांठे का ऑर्डर दे आया। कुछ ही समय पश्चात चाय व नाश्ते के साथ धूप में ही साफ सुथरी टेबल भी सज गई। मैं भी गाड़ी से उतरकर वहां गया, पहला निवाला लेते ही स्वाद से जीभ ऐसी लपलपाई कि नजर सीधे किचन की ओर दौड़ी। वहां देखा तो एक महिला खड़ी थी, जो परांठे बेल रहीं थी। इस बीच मैंने चाय पंराठे सर्व करने वाले भाई से पूछ लिया क्या तुम मालिक हो इस रेस्टोरेंट के ..? वो बोला नहीं ..! मालकिन वो हैं, सामने…। मैं तो यहां काम करता हूँ ।

यहां बताते चलूं कि काम करने वाला लड़का भी साफ सुथरा था जबकि अमूमन ऐसा होता नहीं है। बहरहाल गरमा-गरम पंराठे के साथ – साथ रोटी के फुल्के भी टेबल तक आ रहे थे। ताजी हरी सब्जी, छोले, दही और घी सबका स्वाद लाजवाब था। क्योंकि सब कुछ घर में अपनी मेहनत से ही उत्पादित था।

अब मेरा ध्यान खाने से ज्यादा इसे फिल्माने में (वीडियो) बनाने पर था। लेकिन हाथ जूठे थे लिहाजा वीडियो न बना पाया लेकिन फटाफट फोटो जरूर क्लिक कर दी थीं और मेरी इस उत्सुकता का कारण इस रेस्टोरेंट की मालकिन शशि कठैत थीं।…तो चलिए अब कुछ चित्रों के साथ अपने शब्दों को जोड़कर पहाड़ की इस महिला की जिजीविषा व जीवटता को आपके सामने रखने की कोशिश करता हूँ।

कहते हैं…. बुलंद हौसले व दृढ़ निश्चय के साथ-साथ दिल में कुछ खास कर गुजरने का जुनून हो, तो राह में आने वाली हर बाधाएं खुद-ब-खुद मिट जाती हैं। और आज ऐसा ही कुछ देखने व समझने को मिला है मुझे नारायणबगड़-बागेश्वर मार्ग पर एक छोटे से कस्बे बगोली में ।

अगर आप भी कभी इस रास्ते से आना-जाना करें तो यहाँ राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक साफ सुथरा रेस्टोरेंट जो अभिनंदन होटल एंड फैमिली रेस्टोरेंट नाम से है। वहां पर ब्रेक लगाना न भूलें। यहां आपको न सिर्फ स्वादिष्ट, पौष्टिक व साफ सुथरा खाना मिलेगा बल्कि पहाड़ की एक महिला का रचनात्मक संघर्ष भी दिखेगा। जिससे निःसंदेह आप व आपके साथ वाले भी प्रेरित होंगे।

सिमली से लगभग 5 किलोमीटर #ग्वालदम की ओर बढ़ने पर आता है “बगोली”। बगोली पार करने के बाद महज 300 मीटर की दूरी पर सड़क के नीचे से पानी की निरंतर बहने वाली जलधारा (गदेरा) है। और उसके पास में ही है अभिनंदन होटल/ रेस्टोरेंट ।

इस रेस्टोरेण्ट की खासियत यह है इसे लीड करती है एक ग्रामीण महिला, जिनका नाम है शशि कठैत। शशि गढ़वाल यूनिवर्सिटी से एम. एम. पास हैं। इनके पति का नाम नंदन कठैत है और वह भी बगोली बाजार में अपनी हार्डवेयर की दुकान चलाते हैं। इनके दो बेटे हैं एक ग्यारहवीं में तो दूसरा दसवीं में पढ़ रहा है। शशि के रेस्टोरेण्ट में तीन स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है। यह भवन तीन तल का है। तीसरा तल राष्ट्रीय राजमार्ग से सटा है और इसी पर रेस्टोरेण्ट के अलावा जनरल स्टोर (डेली नीड्स) नाम से भी शशि ही चलाती हैं।

मैंने जब यह सब देखा तो शशि कठैत से कुछ सवाल भी किए । शशि ने क्या कुछ कहा सवालों के जवाब में वह आप आगे स्वयं पढें और समझें ..

◆ ये आप कब से कर रही हैं ?

• हो गए काफी साल ।

◆ पहाड़ों में महिलाएं कहाँ ऐसे होटलों में काम करती हैं.. आपने कैसे हिम्मत जुटाई ?

• भईया काम कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता है । काम कोई भी करो ईमानदारी से करो मुनाफे वाला करो । दो पैसे जमा होंगे तो आगे हमारे बच्चों का भविष्य सुधरेगा । हर माँ बाप की मेहनत के पीछे बच्चों की अच्छी शिक्षा व परवरिश का उद्देश्य होना चाहिए ।

◆ आप बातें अच्छी कर लेती हैं, बच्चों की पढ़ाई पर ज्यादा जोर दे रही हैं। क्या आपने पढ़ाई की है ?

(इस सवाल के जवाब में शशि कठैत थोड़ा मुस्कराई, और बोली)

• अरे भईया कहाँ थोड़ा बहुत पढ़ा है मैंने । काम चलाने लायक ।

◆फिर भी बताओ आप कितनी पढ़ी हैं ?

• कुछ नहीं भइया .. गढ़वाल यूनिवर्सिटी से एम. ए किया है । बस…!

◆ आप तो पूरी पढ़ी लिखी हैं.. सरकारी नौकरी क्यों नहीं की ?

• भईया यही तो सबसे बड़ी समस्या है हम लोगों की । हर कोई डिग्री लेने बाद सोचता है कि अब सिर्फ सरकारी नौकरी के ही लायक ही रह गए हैं हम । जरा ये बताओ कि आज उत्तराखंड में अनपढ़ हैं ही कितने । हर वर्ग में हर घर में सब लोग पढे लिखे हैं । कितनों को सरकारी नौकरी मिल जाएगी । यह अब पढ़े लिखे लोगों को ही सोचना होगा कि सरकारी नौकरी के अलावा भी बहुत कुछ है करने के लिए ।

लेकिन सच बात यह है कि ज्यादा पढ़ने के बाद भी ज्यादातर लोगों की काम करने की सोच भी कम हो जाती है । लोग मेहनत करना नहीं चाहते हैं । ऐसे लोग पढ़ाई को अपने आराम की गारण्टी मान लेते हैं । सरकारी नौकरी की चाह में अपने जीवन के महत्वपूर्ण समय को गंवा देते हैं, फिर 40 – 45 साल बाद परेशान होते हैं । मैंने भी सरकारी नौकरी की चाह रखी थी, लेकिन साथ ही साथ अपना स्वरोजगार भी शुरू किया । और आज मैं व मेरे पति अपने अलग-अलग प्रतिष्ठानों को संचालित कर रहे हैं अच्छाखासा रोजगार स्थापित किया है वह भी अपने घर गांव में ही । बच्चे भी होशियार हैं उन्हें भी अच्छे से पढ़ा रहे हैं । अब भईया आप सोचो हम भी इतने वर्षों तक सरकार के भरोशे बैठे नौकरी के इंतजार में ही रहते तो क्या आज हम अपने बच्चों की सही देखभाल कर पाते !

हो सकता है कि इतने सालों बाद आज मुझे नौकरी मिल भी जाती, लेकिन कहीं न कहीं इतने वर्षों की हमारी बेरोजगारी का असर हमारे दोनों बच्चों पर भी पड़ता और तब वो ठीक से पढ़ भी न पाते । आज हमारे बच्चे अच्छे पढ़ रहे हैं । हम अपनी मेहनत कर रहे हैं । समय से बच्चे पढ़ जाएंगे । हो सकता है, जीवन में जो हम नहीं पा सके वो हमारे बच्चे कल हमे दे देंगे । लेकिन बच्चों से भी तभी हर माँ बाप को अपेक्षा रखनी चाहिए, जब उन्होंने भी बिना व्यवधान के समय से अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा व संस्कार दिए हों ।

◆ यह सब कैसे शुरू किया ? अपने पास पैसे थे या बैंक से लोन भी लिया है ?

• हाँ बिल्कुल बैंक से लोन लिया था । बिना लोन के कैसे कर पाते । लेकिन बैंक का लोन भी वापस कर दिया है बस अब 3-4 लाख के करीब रह गया है । वो भी हो जाएगा ।

◆ एक आखिरी सवाल इस रेस्टोरेण्ट को आप सम्भाल रही हैं , जबकि बोर्ड पर नाम आपके पति का है, ऐसा क्यों ? क्या इसमें कोई संकोच तो नहीं रहा ?

• नहीं भईया ऐसा कुछ नहीं जैसा आप सोच रहे हैं । दरअसल तकनीकी आधार पर मेरे नाम से बैंक लोन नहीं मिल सका क्योंकि जब हमने ये बिजनिस शुरू किया तो तब मेरे नाम से एकाउंट नहीं था और न ही मेरे पास पास 3 साल की ITR थी, क्योंकि लोन के लिए ITR का होना जरूरी होता है । इसलिए रिकार्ड में नाम पति का ही है, काम में संभालती हूँ । जबकि मेरे पति भी अपनी हार्डवेयर की दूसरी दुकान पर बैठते हैं । बाकी हमें नाम से क्या करना , काम अच्छा होना चाहिए । नाम उनका हो या मेरा पैसा तो एक ही घर में आ रहा है ।

चमोली जनपद के बगोली कस्बे की पढ़ी लिखी मेहनती बुलंद हौसलों वाली शशि कठैत से हुई मेरी छोटी मुलाकात व बातचीत के कुछ अंश को पढ़कर आप भी समझ गए होंगे कि पहाड़ की इस महिला की सोच समाज को क्या संदेश देना चाहती है ।

आज के समय में हर क्षेत्र में पढे़ लिखे व्यक्तियों की भरमार है लेकिन लोग रोजगार को भटक रहे हैं। लेकिन बगोली की शशि ने एक ऐसी लंबी लकीर खींच दी है जो कइयों के लिए नजीर बन गई है । उच्च शिक्षा प्राप्त शशि ने अपनी पढ़ाई को अपने जीवन की तरक्की के लिए सही इस्तेमाल किया है । पढ़ाई के प्रति शशि में आज भी जुनून है । यही कारण है दोनों बच्चों को समय से शिक्षा हासिल करने का लक्ष्य दिया है ।

अगर मैं कहूँ या लिखूँ कि चमोली, बगोली की शशि कठैत ने महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में एक सच्ची अच्छी मिसाल कायम की है तो यह अतिश्योक्ति न होगी ।

शशि कठैत जैसी जीवट, सकारात्मक व रचनात्मक महिला को शासन – प्रशासन द्वारा चिन्हित कर हर स्तर पर प्रोत्साहित कर सम्मानित किया जाना चाहिए ।

  • शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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