- प्रदीप रावत (रवांल्टा)
उत्तराखंड में एक आदेश की चर्चा दो दिन से थमने का नाम नहीं ले रही है। ये ऐसा पहला आदेश है, जिसका इंतजार आम लोग नहीं नेता कर रहे थे। आदेश आने के बाद नेता इतना खुश हो रहे हैं कि पूछो मत…। खुशी का ऐसा माहौल पहले कभी नहीं देखा। धुर विरोधी भाजपाई और कांग्रेसी बेहद खुश हैं। बड़े तो बड़े छुटभैया भी फूले नहीं समा रहे। वो उम्मीद लगाए हैंं कि बड़ों के चक्कर में उनकी भी बल्ले-बल्ले हो जाएगी…। देखना…होगा भी यही…। सरकार चाहती है अधिकारी नेताओं के आगे नतमस्तक हों…।
अब नजरिया बताते हैं…
अब नजरिया बताते हैं…। नेता कैसे अरबों की संपत्ति का मालिक बन बैठता है…। क्या नेता को सोने के अंडे देने वाली मुर्गी हाथ लग जाती है या फिर कुर्सी मिलते ही हीरे-मोती बरसने लगते हैं…? नेता तो नेता के आसपास के 8-10 चेलों के गले में भी नेता जी को कुर्सी मिलने के बाद मोटी-मोटी सोने की चेनें और लग्जरी गाड़ियां आ जाती हैं…। जाहिर है सोने का अंडा देने वाली मुर्गी तो इनको भी नहीं मिली होगी…फिर लग्जरी गाड़ियां और मोटी-मोटी चेनें कहां से आई…वो कौन सा खजाना है जो कुर्सी मिलते हाथ लग जाता है…।
कल तक गरीब का रोना रोने वाले
कल तक गरीब का रोना रोने वाले उत्तराखंड के ज्यादातर नेता आज अरबों की संपत्ति के मालिक हैं…? लाख रुपये के वेतन-भत्तों से क्या कोई इतनी दौलत कमा सकता है…? जवाब होगा ना। अब सवाल है कि फिर कहां से नेता जी नौटों की मोटी-मोटी गड्डियां और लग्जरी गाड़ियां दौड़ाते हैं…। दरअसल, इन सबका रास्ता गुजरता है अफसरशाही से…। अफसरों के बिना नेताओं की दाल नहीं गलती…। जब तक इनका गठबंधन चलता रहेगा…। नेता और अधिकारी अमीर होते जाएंगे। जनता जहां थी…उससे ऊपर उठना तो दूर…एक-दो पायदान और गहराई में जरूर लुड़कती रहेगी है…। उस गर्त से बाहर आने के लिए ताउम्र फड़फड़ाती रहेगी…।
सीधे बात पर आते हैं…
सीधे बात पर आते हैं…। ये मुझे लगता है…। जरूरी नहीं कि सबको लगे…। दो बातें हैं…। पहला ये कि अधिकारी भी अराजक हो गए हों…लेकिन, सवाल ये है कि आखिर मंत्री और सरकार किस लिए है…? क्या सरकार के आदेश के बाद ऐसा होने लगेगा…? ये बात भी ठीक है कि जनप्रतिनिधि का सम्मान होना चाहिए…। पर ये बात भी उतनी ही गलत है कि नेता जी आएं तब भी सलाम ठोकें…जाएं तो भी। प्रोटोकाॅल की कहानी है…नेता को दरवाजे तक छोड़ने जाओ क्यों भाई…? नेता तो जनता का नौकर होता है…। नेतागिरी की भाषा में सेवक होता है…।
मुझे लगता है…
मुझे लगता है…। पक्का नहीं है…! नेताओं और अधिकारियों के गठबंधन में जरूर कुछ गड़बड़ी हुई होगी…? कुछ तूफान उठा होगा…? तभी इतना बड़ा आदेश निकालने की जरूरत पड़ी होगी…। सीधा सा फंडा ये है कि सरकार मंत्री-विधायकों को समझाए कि वो फालतू की नेतागिरी ना झाड़ें। अपने फर्जी कामों के लिए दबाव ना बनाएं…। अधिकारियों पर नकेल कसने के दूसरे भी तरीके हैं…। जांच कराइये और नकेल कसिये…। जो गड़बड़ होगा…पकड़ा जाएगा। कर दीजिये संस्पेंड आपतो सत्ता हैं…। राजा हैं…याचक थोड़े हैं।