देहरादून: वन विभाग में पिछले दिनों आरक्षियों को कुछ अधिकारियों के ट्रांसफर किए गए थे। इन पर अब सवाल उठने लगे हैं। कई ऐसे कर्मचारियों को ट्रांसफर कर दिया गया, जो ट्रांसफर चाहते ही नहीं थे। उनके पास उम्र और स्वास्थ्य कारणों से स्वेच्छिक ट्रांसफर का विकल्प था। इनमें कुछ ऐसे कर्मचारी भी हैं, जो एक साल पहले ही ट्रांसफर लेकर आये थे।
वन विभाग में हुए थे ट्रांसफर
वन विभाग की ओर से ऐसे कार्मिकों से अनुरोध पत्र और प्रस्ताव मांगे गए थे। कर्मचारियों की ओर से अपने विकल्प के साथ यह प्रस्ताव और अनुरोध भी विभाग के अधिकारियों को दिए थे। लेकिन, जब ट्रांसफर आदेश जारी किए गए, तो उन पर विचार ही नहीं किया गया। ऐसे कर्मचारियों में नाराजगी है। कर्मचारी ट्रांसफर आदेश के बाद से ही मेडिकल लीव लेने की तैयारी में हैं।
अनुरोध के आधार पर ट्रांसफर
सूत्रों की मानें तो इनमें कुछ कर्मचारी ऐसे भी हैं, जो रिटायरमेंट के करीब हैं। उनको भी उनके अनुरोध के आधार पर ट्रांसफर नहीं दिया गया है। जबकि, ट्रांसफर एक्ट में इसका प्रावधान किया गया है। 15 महीने की बाकी सेवा वाले कर्मचारी को भी ट्रांसफर कर दिया गया है। बीमार कार्मिकों को भी उनके दिए गए विकल्प के बजाय कहीं अन्य जगह पर ट्रांसफर कर दिया गया। यह भी आरोप लगाए हैं कि ट्रांसफर तय मानकों से अधिक किए गए हैं।
यहां देखें ट्रांसफर आदेश
आदेश में भी एक साथ दो विपरीत बातें
ट्रांसफर आदेश में भी एक साथ दो विपरीत बातें लिखी गई हैं। वह यह है कि आदेश में कर्मचारियों की ओर से दिए गए अनुरोध प्रस्ताव की समीक्षा के बाद ट्रांसफर किए गए हैं। वहीं, कर्मचारी की तैनाती वाले कॉलम के सबसे आखिरी में जनहित में ट्रांसफर लिखा गया है। जनहित का मतलब यह होता है कि यह ट्रांसफर विभाग ने अपने स्तर से ही किए हैं। फिर सवाल उठता है कि आदेश में अनुरोध प्रस्ताव की समीक्षा की बात क्यों लिखी गई है।