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उत्तराखंड : गायब हो गई फाइल, 4 हजार शिक्षकों के प्रमोशन अटके, 22-20 साल बाद गुमशुदगी दर्ज

देहरादून : शिक्षा विभाग का हाल किसी छुपा नहीं है। ऐसा ही एक और मामला सामने आया है। मामला ऐसा कि आप भी चौंक जाएंगे। शिक्षा विभाग से फाइल ही गायब हो गई। मामला इतना गंभीर है कि उस फाइल के गायब होने से 4 हजार से अधिक शिक्षकों का प्रमोशन ही रुक गया है।

मामले की गंभीरता को देखते हुए गुमशुदगी दर्ज कराई गई है। सवाल यह है कि मुकदमा किसके खिलाफ दर्ज कराया गया। फाइल तो अधिकारियों के पास ही रही होगी। अगर अधिकारी के पास से फाइल कहीं गायब हो गई है, तो सबसे पहले अधिकारी के खिलाफ ही कार्रवाई होनी चाहिए।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा निदेशालय और शासन में शिक्षकों की तदर्थ पदोन्नति की अनुमति पहले ही हो चुकी थी। लेकिन, हैरानी इस बात की है कि शासनादेश की फाइल नहीं मिल रही है। फाइल के गायब होने ये शिक्षकों की वरिष्ठता तय न होने से चार हजार से अधिक शिक्षकों का प्रमोशन रुक गया है।

जानकारी के अनुसार फाइल आज नहीं, बल्कि 2001-2002 के आसपास का है। सवाल यह है कि तब से लेकर आज तक इतना लंबा वक्त गुजर गया है, लेकिन अब तक फाइल के बारे में किसी ने कुछ कदम नहीं उठाए। इससे पहले फाइल को खोजने का प्रयास क्यों नहीं किया गया? करीब 22 साल बाद शासन मामले में फाइल की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई। पुलिस ने मामले में कार्रवाई शुरू कर दी है।

मीडिया को दिए बयान के अनुसार माध्यमिक शिक्षा निदेशक महावीर सिंह बिष्ट के मुताबिक, मामले में शिक्षा निदेशालय ने रायपुर थाने और शासन ने पलटन बाजार पुलिस चौकी में फाइल गुम होने का मुकदमा दर्ज कराया है।

शिक्षा विभाग में तदर्थ पदोन्नति और सीधी भर्ती के शिक्षकों की वरिष्ठता का विवाद बना हुआ है। राज्य लोक सेवा आयोग से चयनित सीधी भर्ती के प्रवक्ताओं के मुताबिक, वर्ष 2005-06 में उनकी नियुक्ति हुई थी। विभाग ने अगस्त 2010 में कुछ शिक्षकों को प्रवक्ता के पद पर मौलिक नियुक्ति दी, जिसमें कुछ शिक्षकों को बैक डेट से वरिष्ठता दे दी।

जिन शिक्षकों को वर्ष 2010 में मौलिक नियुक्ति मिली, वे शिक्षक उनसे वरिष्ठ हो गए। विभाग में हुए इस अन्याय के खिलाफ वह 2012 में हाईकोर्ट चले गए, जबकि तदर्थ पदोन्नति पाने वाले शिक्षकों का कहना है कि प्रवक्ता 50 प्रतिशत पदों पर सीधी भर्ती होती है, जबकि अन्य 50 प्रतिशत पद विभागीय पदोन्नति के पद हैं।

राज्य गठन के बाद राज्य लोक सेवा आयोग न होने से कुछ शिक्षकों को एलटी से प्रवक्ता के पद पर 2001 एवं विभिन्न वर्षों में तदर्थ पदोन्नति दी गई। माध्यमिक शिक्षा निदेशक महावीर सिंह बिष्ट के मुताबिक, उत्तराखंड राज्य गठन के बाद शासन ने कुछ शिक्षकों को तदर्थ पदोन्नति की अनुमति दी थी। उस दौरान राज्य लोक सेवा आयोग न होने से ये पदोन्नतियां दी गई।

आयोग 2003 में बना था। जिस शासनादेश से तदर्थ पदोन्नतियां दी गई, वह शासनादेश और उसकी फाइल न शिक्षा निदेशालय में मिल रही और न ही शासन में। यही वजह है कि बीते दिनों इस मामले में शिक्षा निदेशालय और शासन की ओर से तदर्थ पदोन्नति की अनुमति की फाइल और आदेश गुम होने का मुकदमा कराया गया है।

शिक्षा विभाग में आयोग से चयनित वर्ष 2005 के प्रवक्ताओं का कहना है कि विभाग में वरिष्ठता के इस विवाद के चलते उन्हें पिछले 18 साल से एक भी पदोन्नति नहीं मिली। मामला हाईकोर्ट में भी लंबित है। देखना यह होगा कि फाइल मिलती है या नहीं।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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