देहरादून : उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में 56 भर्तियों का मामला सामने आया था। यह भर्तियां बगैर विज्ञप्ति निकाले गुपचुप तरीके से कर दी गई थीं।
जबकि, नियम यह है कि विश्वविद्यालय शासन की अनुमति के बिना नियमित भर्ती तो दूर की बात संविदा और आउटपुट से भी भर्ती नहीं कर सकता है। बावजूद इसके मुक्त विश्वविद्यालय में 56 लोगों को नियुक्तियां दी गई।
मामला सामने आने के बाद उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने कहा था कि मामला दिखवा लिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा था कि ऑडिट में कई चीजें सामने आती रहती हैं। लेकिन, अब इस मामले में राज्यपाल ने जांच के आदेश कर दिए हैं।
राज्यपाल विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति होती हैं, ऐसे में उन्होंने मीडिया में चल रही खबरों का संज्ञान लेकर इस मामले को गंभीरता से लिया है। उन्होंने उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में बिना पद और आदेश के 56 लोगों की नियुक्तियों के मामले की जांच के आदेश दिए हैं।
राज्यपाल ने कहा कि किसी भी विश्वविद्यालय में अवैध नियुक्तियां मिलीं तो उन्हें निरस्त किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस तरह की नियुक्तियों को लेकर उनसे किसी तरह की कोई सहमति नहीं ली गई।
ऑडिट में खुलासा होने पर वित्त सचिव अमित नेगी ने उच्च शिक्षा सचिव को पत्र लिखा पर एक साल बाद भी इस पर कार्रवाई नहीं हुई। जबकि शासनादेश के अनुसार यदि पद स्वीकृत हैं, तो भी नियुक्तियां शासन के आदेश के बिना नहीं होंगी। यह नियम संविदा, दैनिक कार्य प्रभारित, नियत वेतन, अंशकालिक व तदर्थ नियुक्तियों पर लागू होगा।
नियमानुसार ऐसी नियुक्तियां शून्य मानी जाएंगी। इनका वेतन का भुगतान संबंधित अफसर के वेतन, पेंशन से होगा। ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया कि बिना पद और आदेश के 30 तकनीकी, प्रशासनिक, अकादमिक एवं परामर्शदाताओं की भर्ती की गई।
जबकि विश्वविद्यालय में वर्ष 2017-18 व 2018-19 में बिना पद सृजन के आउटसोर्सिंग के माध्यम से लिपिक, योग प्रशिक्षक एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के कुल 26 पदों पर नियुक्तियां की गईं।