Thursday , 13 March 2025
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उत्तराखंड: बस यादों में जिंदा रहेगी देहरादून की पहली तीन मंजिला बिल्डिंग, जानें इतिहास

देहरादून : LIC बिल्डिंग…कनॉट प्लेस (Connaught Place)। देहरादून में LIC बिल्डिंग का नाम सुनकर दिमाग में दिल्ली के कनॉट प्लेस की तर्ज पर बनी चकराता रोड की LIC बिल्डिंग का की तस्वीर उभरने लगती है। यह बिल्डिंग ठीक उसी डिजाइन में बनाई गई, जैसे दिल्ली के कनॉट प्लेस के बिल्डिंग को बनाया गया था। यह बिल्डिंग देहरादून की पुरानी बिल्डिंगों में से एक है।

लेकिन, अब शायद यह बिल्डिंग इतिहास के पन्नों और तस्वीरों में ही जिंदा रह जाएगी और इतिहास बन जाएगी। चकराता रोड पर कनॉट प्लेस स्थित LIC बिल्डिंग को खाली कराने के नोटिस के बाद हड़कंप मचा हुआ है।

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इस बिल्डिंग में आजादी के बाद से पीढ़ी दर पीढ़ी रहने वाले लोगों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। वह इस असमंजस में हैं कि अब जाएं तो जाएं कहां? कई लोग ऐसे भी हैं जो आजादी के बाद पाकिस्तान छोड़कर यहां आकर बस गए थे।

LIC ने कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए बिल्डिंग को खाली कराने के लिए पुलिस-प्रशासन की मदद मांगी है। पहले चरण में 14 संपत्तियां (आवास और दुकानें) खाली कराई जानी हैं। पुलिस ने 14 सितंबर तक का अल्टीमेटम दिया है।

पहली तीसरी मंजिल इमारत 1930 से 40 के दशक में देहरादून की ये पहली इमारत थी, जिसको तीन मंजिला तैयार किया गया था। दो दिन बाद 14 सितंबर को कनॉट प्लेस मार्केट (Connaught Place Market) के एलआइसी भवन (LIC Building Dehradun) को खाली करवाने की कार्रवाई की जाएगी।

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आजादी से पहले बनावाया गया था। देहरादून के सेठ मनसाराम ने इस भवन का निर्माण कराया था। वह अपने समय के काफी धनी बैंकर थे। उन्‍होंने देहरादून में अन्‍य कई इमारतों का भी निर्माण कराया था।

सेठ मनसाराम ने दिल्ली में स्थित कनॉट प्लेस (Connaught Place Market) की बिल्डिंगों की डिजायन से प्रभावित होकर यह इमारत बनवाई थी। सेठ मनसाराम ने कनॉट प्लेस मार्केट के एलआइसी भवन को बनाने के लिए बॉम्बे से आर्किटेक को बुलाया था।

इस लिए उन्‍होंने भारत इन्स्योरेन्स से एक लाख 25 हजार रूपये लोन लिया था। सेठ मनसाराम ने इसे पकिस्तान से आने वाले लोगों के व्यापार करने के लिए बनाया था।

1930 में किए गए इस ऐतिहासिक निर्माण में 150 से ज्‍यादा भवन और 70 से ज्यादा दुकानें बनाई गई थीं। यह इमारत को देहरादून में एक व्यापारिक और व्यवसायिक केंद्र बनाने की मंशा से बनवाई गई थी और ऐसा ही हुआ। लेकिन, अब ये बिल्डिंग इतिहास बनकर रह जाएगी।

एलआइसी और दुकानदारों के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। इस मामले में LIC सुप्रीम कोर्ट गई थी और मुकदमा जीत गई है जिसके बाद दुकानदारों को दुकान खाली करवाने के लिए कहा गया है, लेकिन वह ऐसा नहीं कर रहे हैं।

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MDDA की ओर से भी भवन को गिरासू घोषित किया गया है। भवन किसी भी समय गिर सकता है। इससे वहां रह रहे लोगों को भी खतरा हो सकता है। 2018-19 को भी दुकानें खाली करवाने की कोशिश की गई थी।

कुछ दुकानदारों ने तो दुकानें छोड़ दी मगर कुछ विरोध के कारण दुकानें खाली करने को तैयार नहीं थे। पिछले दिनों से एलआईसी के अधिकारियों ने जिला प्रशासन और पुलिस के अफसरों से मुलाकात की।

इसमें प्रक्रिया पूरी कराने की बात कही। इसके बाद जिला प्रशासन ने एक मजिस्ट्रेट नियुक्त किया। वहीं, पुलिस ने पर्याप्त पुलिस फोर्स उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया। इधर, एलआईसी ने बिल्डिंग में नोटिस चस्पा कर दिए।

इसका दुकानदार विरोध कर रहे हैं। लोग बोले, पाक से आकर बसे, अब कहां जाएं दुकानें और आवास खाली कराने के नोटिस के बाद से लोगों में बैचेनी है। उनके कारोबार यहां पर है और परिवार का गुजारा चलता है। कुछ परिवार ऐसे हैं, जो पाक से यहां आए।

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आर्मी ट्रेडिंग के नाम से दुकान चलाने वाले अधिवक्ता देवेंद्र सिंह कहा कि यहां पर 150 दुकान और फ्लैट हैं। गिरासु भवन की गलत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है। कुछ हिस्सों के जर्जर होने का मामला था। उसे पूरी बिल्डिंग से जोड़कर भ्रम फैलाया जा रहा है। सैलून संचालक इलियास अहमद ने बताया कि उन्हें यहां करीब 60 साल हो गए हैं।

किराया कोर्ट में जमा किया जा रहा है। कोर्ट का फैसला एक संपत्ति को लेकर है, लेकिन वह पूरी बिल्डिंग को खाली कराना चाहते हैं। कार्रवाई का विरोध सभी दुकानदार करेंगे। बंटवारे के समय पाकिस्तान से आए भीमसेन विरमानी, बुजुर्ग एसजे कोहली भी यहां कारोबार कर जीवन यापन कर रहे हैं।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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