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उत्तराखंड : हरिद्वार में रवांल्टा सम्मेलन, तांदी और रासो पर झूमे, जड़ों से जुड़ने का संदेश

  • प्रदीप रावत (रवांल्टा)

हरिद्वार: धर्म नगरी हरिद्वार में देश के विभिन्न शहरों के लोग तो रहते ही हैं। देश और दुनिया के लोग भी अध्यात्म के लिए यहां आते रहते हैं। इनमें से कुछ लोग यहीं के होकर रह जाते हैं, तो कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो यहां नौकरी कर रहे हैं। विभिन्न विभागों और प्राइवेट कंपनियों में रंवाई घाटी के विभिन्न पट्टियों के अलग-अलग गांवों के लोग भी हरिद्वार में रह रहे हैं।

गांव से जुड़े रहते हैं

जब अपने गांव से दूर दूसरे शहर में रहते हैं, तो हम अपने बार-त्योहार और संस्कृति से भी दूर हो जाते हैं। हालांकि, किसी ना किसी रूप में हम गांव से जुड़े तो रहते हैं। लेकिन, शहरों में नौकरी की मजबूरी और दो वक्त की रोटी के लिए अक्सर व्यस्त रहते हैं और इस व्यस्तता के बीच यह भी भूल जाते हैं कि जिस शहर में हम रह रहे हैं, वहां मेरे गांव, गांव के पास के दूसरे गांव के लोग भी रहते हैं।

अनेक तरह के लोग

इनमें कुछ नौकरी में साथ हैं। कुछ दूसरे विभागों में तैनात हैं। कुछ का रोज मिलना हो जाता है, जबकि कुछ चाहकर भी एक-दूसरे से मिल नहीं पाते हैं। इसी दूरी को मिटाने के लिए हरिद्वार में रह रहे राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेता उत्तरकारी जिले के नौगांव ब्लाॅक की बनाल पट्टी के रचनात्मक शिक्षक और साहित्यकार दिनेश रावत भी शिक्षा विभाग में तैनात हैं। उनकी पत्नी भी यहीं पुलिस विभाग में कार्यरत हैं।

मिलने-मिलाने के एक प्रस्ताव

दिनेश रावत ने हमेशा की तरह अपने ही मिजाज के कुछ लोगों को खोज निकाला और मिलने-मिलाने के एक प्रस्ताव रखा। कई दौर की बात-चीत और बैठकों के बाद शनिवार 21 जनवरी का दिन तय हुआ। नाम दिया गया रवांल्टा सम्मेलन। कुलमिलाकर जिस तरह से नाम से ही परिलक्षित हो रहा है कि इस अयोजन में रंवाई घाटी के लोगों का संगम होना था। संगम हुआ भी, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स के कम्यूनिटी हाॅल में जगह तय की गई थी।

हरिद्वार में रंवाई

आयोजन स्थल को देखकर ही लग रहा था कि किस तरह से आयोजकों ने हरिद्वार में रंवाई होने का माहौल तैयार किया था। बाकायदा बाजगियों को बुलाया गया था। देवता की डांगरी के साथ तांदी और रासो ननृत्य किया गया। चोपती की झलक भी देखने को मिली। यह कोई मामूली संगम नहीं था। यह अपने आप में खास तरह का संगम था।

कई पट्टियों के लोगों का संगम

इसमें जहां दूर बननाल पट्टी के लोग शामिल थे। तो वहीं दूर बंगाण के लोगों ने भी अपनी भूमिका निभाई। दूर गीठ पट्टी का प्रतिनिधित्व भी नजर आया। ठकराल पट्टी का प्रतिनिधित्व भी अच्छा रहा। इधर, मुगरसंती पट्टी का भी प्रतिभाग देखने को मिला। कई अन्य पट्टियों के लोग भी नजर आए।

परंपरा को बखूबी निभाया

अपने-अपने गावों से दूर हरिद्वार में आधुनिकता की चाकाचौंध के बीच महिलाओं ने अपनी परंपरा को बखूबी निभाया। अधिकांश महिलाएं अपने पारंपरिक परिधानों में नजर आई। परंपरा की इस कड़ी में जहां एक और युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति से दूर हो रही है। उस बदलते दौर से कुछ साल पहले की पीढ़ी अपनी जड़ों से गहरी जुड़ी हुई नजर आई।

बुजुर्गों का आशीर्वाद

इस आयोजन में जहां युवाओं ने अच्छा योग दान दिया। वहीं, बुजुर्गों का आशीर्वाद भी मिला। सरनोल निवासी बुजुर्ग चैहान जी ने छोड़े और लामण सुनाए, तो युवाओं ने उनके साथ भौंण मिलाई। देव नौटियाल ने लोक गीतों की प्रस्तुति दी। आयोजन में शामिल लोगों ने किसी ना किसी रूप में खुद को इससे जोड़े रखा।

सहयोग करने वालों की लंबी फेहरिस्त

इस आयोजन में सहयोग करने वालों की लंबी फेहरिस्त रही। आर्थिक रूप से तो सभी ने सहयोग किया ही। इसके अलावा भी किसी ने घर से गैस सिलेंडर लाकर दिए तो किसी ने कार्यक्रम के शुभारंभ के लिए पारंपरिक गागर उपब्ध कराई। साफ नजर आ रहा था कि जो आयोजन पहली बार हो रहा है। ऐसा लग रहा था कि इस तरह के आयोजन पहले से हो रहे हों।

आयोजन में सेल्फी प्वाइंट

आयोजन में सेल्फी प्वाइंट भी बनाए गए थे। ये आइडिया रंवाई से जुड़े हर आयोजन के एक तरह से सूत्रधार की भूमिका में रहने वाले शशिमोहर रवांल्टा का था। शशी इस आयोजन के लिए खासतौर पर दिल्ली से पहुंचे थे। उनकी डिजाइनिंग के सभी कायल नजर आए। सेल्फी प्वांइट को भी अपनी परंपरा और पहचानों से जोड़ा गया था। एक तरफ जहां कोटी बनाल के चौकट की बड़ी सी तस्वीर थी। वहीं, दूसरी तरह पुराने समय में घरों में बनाए जाने वाले नक्काशीदार घरों के दरवाजों के कटआउट बनाए गए थे। ये कटआउट लोगों की पहले पसंद बने।

खुद को नहीं रोक पाया

हमें भी (प्रदीप रावत (रवांल्टा) को भी आमंत्रित किया गया था। व्यस्तता और अस्वस्तता के बावजूद रंवाई और रवांल्टा सम्मेलन में जाने से खुद को नहीं रोक पाया और पत्नी समेत आयोजन में पहुंच गए। वहां बहुत सारे पुराने साथ मिले। कुछ को पहचान पाया और कुछ को नहीं थी। लेकिन, हमें लगभग सभी ने पहचाना। उसका कारण यह है कि अपनी जड़ों से जुड़े रहने के चलते दूरदर्शन देहरादून केंद्र से कविताओं का प्रसारण होता रहता है। उस रूप में लोग पहचान लेते हैं।

अपने-अपने हिस्से का सहयोग

कुलमिलाकर कहा जाए तो आयोजन बेहद शानदार और सफल रहा। सभी ने अपने-अपने हिस्से का सहयोग दिया और सफल आयोजन के भागीदार बने। इस आयोजन से हर कोई कुछ ना कुछ सीख लेकर गया और साथ ही आने वाले सालों में आयोजन को और बेहतर बनाने के साथ ही नियमित आयोजित करने का संकल्प भी साथ ले गए।

इनका सहयोग और सहभागिता

आयोजन में अमित गौड़, ताजवर चौहान, मनीष पवांर, ब्रजमोहन रावत, सन्तोष सेमवाल, शशीमोहन रावत (रवांल्टा), प्रदीप रावत (रवांल्टा), संदीप रावत, टी.एस पवांर, गम्भीर चौहान, मुकेश डिमरी, रवि बिष्ट, मनोज कुमार, मदन चौहान, गुरूदेव राणा, बालेन्द्र जयाडा, उदय सेमवाल, अभिजीत राणा, दिनेश नौटियाल, नरेश नोटियाल, यशवन्त असवाल, राजेश बिष्ट, सजंय रावत, पिंकी गौड़, अपर्णा चौहान, ललिता रावत, रजनी रावत, ललिता, रंजना बगांणी, सीमा रावत, संतोषी रावत, देवेन्द्र चौहान समेत बड़ी संख्या में लोआग मौजूद रहे है। कार्यक्रम का संचालन आजोनक मंडल के अध्यक्ष दिनेश रावत ने किया ।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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