- निजी स्कूलों को अशासकीय स्कूलों का दर्जा, बंद स्कूलों में चलेंगे होम स्टे, एएनएम सेंटर।
- गुणानंद जखमोला
देहरादून: उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री डा. धन सिंह रावत हाल में फिनलैंड और स्विटजरलैंड की शिक्षा व्यवस्था का जायजा लेने के लिए विदेश दौरे पर गये। उन्होंने वहां क्या सीखा, अभी आरटीआई से कुछ दिनों बाद जानकारी मिल जाएगी।
फिलहाल तो प्रारंभिक रुझान बता रहे हैं कि शिक्षा मंत्री ने यही सीखा है कि सरकारी स्कूलों को बंद कर दो, निजी स्कूलों को अशासकीय स्कूलों का दर्जा दे दो। उनमें स्टाफ भर्ती करो और सरकार का पैसा बर्बाद कर दो। बताया जाता है कि लगभग 100 स्कूलों को अशासकीय स्कूलों का दर्जा दे दिया गया। भर्ती का जो खेल होता है वह सभी बिना कहे समझ सकते हैं।
विडम्बना है कि प्रदेश में सरकारी शिक्षा बदहाल है। ले-दे कर 185 अटल उत्कृष्ट बनाए गये, लेकिन पिछले साल उनका रिजल्ट 52 प्रतिशत ही रहा। इन स्कूलों में शिक्षकों की तैनाती में भी झोल रहा। अब ये स्कूल भी वापस रामनगर बोर्ड में लाए जाने की तैयारी की जा रही है।
शिक्षा विभाग में माडल स्कूल, राजीव नवोदय समेत कई तरह की प्रयोगशालाएं चल रही हैं लेकिन शिक्षा में सुधार दूर की कौड़ी नजर आ रही है। हर साल ड्राप आउट और सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या कम हो रही है। ऐसे में फिनलैंड और स्विट्जरलैंड के सैरसपाटे को एजूकेशन टूर का नाम दे दिया गया।
प्रदेश में छात्र न होने की वजह से 1671 स्कूल बंद हुए हैं। 3,573 विद्यालयों में छात्र संख्या 10 या फिर इससे भी कम रह गई है। अल्मोड़ा में 197, बागेश्वर में 53, चमोली में 133, चंपावत में 55, देहरादून में 124, हरिद्वार में 24, नैनीताल में 82, पौड़ी में 315, पिथौरागढ़ में 224, रुद्रप्रयाग में 53, टिहरी गढ़वाल में 268, ऊधमसिंह नगर में 21 और उत्तरकाशी जिले में 122 स्कूलों में ताला लटक चुका है। सुना है कि अब बंद हो चुके स्कूलों में आंगनबाड़ी केंद्र, होम स्टे, एएनएम सेंटर एवं पंचायतघर चलेंगे।
सबसे अहम बात यह है कि जब सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं तो सरकार निजी स्कूलों को अशासकीय स्कूलों का दर्जा किस आधार पर दे रही है? इसमें क्या खेल है? हर अशासकीय स्कूल को 15 लाख रुपये क्यों दिये जा रहे हैं। क्या इनमें जो भर्ती हो रही है वह नियमानुसार है? क्या है इनमें शिक्षक और भर्ती का खेल? इस क्रोनोलॉजी को भी समझना होगा।