Tuesday , 17 June 2025
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पड़ताल : आखिर कहां गायब हो रहे हैं इंजेक्शन…पहले रेमडेसिविर अब एम्फोटेरिसिन-बी

  • प्रदीप रावत (रवांल्टा)
  • ब्लैक फंगस (BLACK FUNGUS) का काला साया.

  • एम्फोटेरिसिन-बी (Amphotericin-B) इंजेक्शन .

  • पूरे उत्तराखंड में यह इंजेक्शन नहीं मिल रहा है.

एक्सक्लूसिव

कोरोना काल में कई तरह की चीजों से लोगों का सामना हो रहा है। कोरोना के मामले तेजी से बढ़े तो सरकारी इंतजाम पूरी तरह धरे रह गए। सरकार का हर दावा ध्वस्त हो गया। केवल दावे ही नहीं। सरकार भी पूरी तरह ध्वस्त नजर आई। कई लोग इलाज के अभाव में दम तोड़ गए। जिनको अपने संसाधानों से मदद कर रहे लोगों की मदद समय पर मिल गई। उनकी सांसों की डोर किसी हद तक संभल गई। लेकिन, इस संकट काल में कई मेडिकल माफिया पैदा हो गए। मेडिल उपकरणों, खासकर ऑक्सीजन सिलेंडर, फ्लोमीटर, ऑक्सीमीटर (oximeter) ये लेकर दवाइयों तक की जमाखोरी, कालाबाजारी और जिंदगी बचाने के नाम पर दलाली के कई मामले सामने आए। प्राइवेट अस्पतालों में बेड के नाम लाखों के पैकेज की लूट तो किसी से छुपी नहीं है।

लेकिन, इन सब सवालों के बीच एक बड़ा सवाल था रेमडेसिविर इंजेक्शन का, जिसकी अब धीरे-धीरे चर्चा भी कम होने लगी है। डिमांड भी कम नजर आ रही है। कोरोना दानव बनकर लोगों को हर दिन लील रहा है। लेकिन, कोरोना लोगों के लिए अकेला संकट नहीं था, उसके साथ मेडिकल माफिया तो थे ही, अब ब्लैक फंगस (BLACK FUNGUS) का काला साया भी कोरोना के साथ लोगों पर और पड़ने लगा है। उत्तराखंड में अब तक 25 केस रिपोर्ट किए गए हैं। इन सभी का इलाज AIIMS ऋषिकेश में चल रहा है। हालांकि इन 25 मामलों में ज्यादा संख्या में पड़ोसी उत्तर प्रदेश के हैं, लेकिन सभी की जांच AIIMS में ही हुई है।

इंजेक्शन का सवाल अब पहले से बड़ा गो गया है। कोरोना के इलाज के लिए पहले रेमडेसिविर इंजेक्शन की मारामारी मची हुई थी। कोरोना पाॅजिटिव लोगों के परिवार वाले मजबूरी में इसके लिए दर-दर भटकते रहे। यहां तक की लोगों ने इसके लिए मोटी रकम तक चुकाई। ये तो बात थी रेमडीसिविर की। अब बात करते हैं ब्लैक फंगस के इलाज में काम आ रहे एम्फोटेरिसिन-बी (Amphotericin B) इंजेक्शन की। इसकी डिमांड और मार्केट से गायब होने की रफ्तार सुपर सोनिक जैसी लग रही है। राज्य में केवल 25 मामले सामने आए हैं, लेकिन पूरे उत्तराखंड में यह इंजेक्शन नहीं मिल रहा है। आखिर ऐसा क्या है की बहुत ज्यादा मरीज नहीं होने के बावजूद भी इसकी डिमांड पूरी नहीं हो प् रही है? इससे तो यही समझ में आता है कि इंजेक्शन या तो जमाखोरी की जा रही है या फिर माफिया माहौल बनाकर लोगोन को लूटने की तयारी कर रेह हैं।

 

 

कई मेडिकल स्टोर संचालकों और डाॅक्टर से इसके बारे में जानकारी चाही, लेकिन सभी ने इसके बाजार में नहीं मिलने की बात कही। हैरानी इस बात की है कि एक साथ पूरे राज्य से यह इंजेक्शन अचानक गायब कैसे हो गया? हालांकि सच्चाई यह भी है कि आमतौर पर इसका उपयोग भी कम ही होता है, लेकिन पिछले कुछ दिनों में देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार के बड़े मेडिकल स्टारों पर इसके बारे में पता किया, लेकिन सभी ने आउट ऑफ स्टाॅक बताया। यही बात खटकती है।

इस पड़ताल के दौरान एक और बात पता चली कि इसके अलावा भी आमतौर पर यूज होने वाला एंटी फंगस का एक और इंजेक्शन भी मार्केट में बिकता था, जिसकी कीमत बाजार में केवल 60 रुपये थी, वह भी बाजार से गायब होने लग है। सवाल यह है कि इनको गायब कौन कर रहा है? जाहिर है कोई आमा आदमी तो इनको अपने घरों में स्टोर नहीं कर रहा होगा? इनको या तो बड़े-बड़े प्राइवेट अस्पताल, जिनके खुद के मेडिकल स्टोर हैं या फिर बड़े दवाओं के कारोबारी इनको स्टोर कर सकते हैं। इन सवालों के जवाब सरकार को खोजने चाहिए। सवाल यह भी है कि सरकार खोजती है या नहीं?

बहरहाल कोरोना के साथ ही अब ब्लैक फंगस के मामले भी तेजी से सामने आ रहे हैं। अब तक एम्स में 25 मामलों की पुष्टि हो चुकी है। ब्लैक फंगस में एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन काम आ रहा है। इंजेक्शन के बाजार से गायब होने के मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार सतर्क हो गई है। स्वास्थ्य सचिव डाॅ. पंकज कुमार पांडे ने सभी जिलों के डीएम और मेडिकल अफसरों को निर्देश जारी किए हैं। एम्फोटेरिसिन-बी नाम के इंजेक्शन को ब्लैक फंगस के इलाज में कारगर माना जा रहा है। सचिव की ओर से जारी एसओपी में निर्देश दिए गए है कि इस इंजेक्शन उपयोग सही मानकों के अनुरूप किया जाना चाहिए।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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