Sunday , 1 June 2025
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श्री राजा रघुनाथ-मां भीमाकाली बदरी-केदार यात्रा पार्ट-2: गौरीकुंड में दूसरा पड़ाव, हमारा पहला दिन

  • प्रदीप रावत “रवांल्टा”

श्री राजा रघुनाथ जी और मां भीमाकाली की पवित्र बदरी-केदार यात्रा का दूसरा दिन श्रद्धा और उत्साह से भरा हुआ था। यह यात्रा का दूसरा पड़ाव था, जो गौरीकुंड में था, और हमारे लिए यह यात्रा में शामिल होने का पहला दिन था। हम सभी इस पवित्र यात्रा का हिस्सा बनने की उत्सुकता और श्रद्धा से भरे हुए थे।

यात्रा का प्रारंभ: देहरादून से ऋषिकेश

यात्रा का दूसरा दिन सुबह जल्दी शुरू हुआ। पहले पड़ाव चंबा से श्री राजा रघुनाथ जी और मां भीमाकाली का रथ गौरीकुंड की ओर रवाना हो चुका था। हमारी योजना देहरादून से ऋषिकेश पहुंचकर यात्रा में शामिल होने की थी। इसके लिए रात को कार बुक करने की तैयारी थी, लेकिन श्री राजा रघुनाथ जी की कृपा से बड़े भाई दिनेश रावत जी का फोन आया। उन्होंने बताया कि सुबह आशीष सेमवाल देहरादून से आ रहे हैं, और उनकी गाड़ी से हमें ऋषिकेश पहुंचना है।

कीर्तिननगर में ही यात्रा के वाहनों के साथ शामिल

सुबह करीब सवा पांच बजे हम आशीष ऋषिकेश के लिए रवाना हुए। बड़े भाई दिनेश रावत जी, उनकी पत्नी ललिता रावत और उनकी माता जी के साथ पंडित उदय सेमवाल भी हरिद्वार से रवाना हुए, हालांकि, उन्हें हरिद्वार से आने में थोड़ी देरी हुई, इसलिए हम ब्यासी में रुक गए। कुछ देर इंतजार के बाद, यात्रा में शामिल होने की उत्सुकता के साथ हम तेजी से आगे बढ़े। हमारा लक्ष्य श्रीनगर तक यात्रा के रथ के साथ मिलना था, लेकिन हम कीर्तिननगर में ही यात्रा के वाहनों के साथ शामिल हो गए।

मां धारी देवी के दर्शन

श्री राजा रघुनाथ जी और मां भीमाकाली के रथ उस समय तक मां धारी देवी मंदिर पहुंच चुके थे। हमने तेजी से वहां पहुंचकर सबसे पहले श्री राजा रघुनाथ जी और मां भीमाकाली के दर्शन किए। यह क्षण अत्यंत भावपूर्ण था। इसके बाद, हम मां धारी देवी के दर्शन के लिए आगे बढ़े। मंदिर में भारी भीड़ थी, जिसमें तीर्थयात्री और हमारी यात्रा के श्रद्धालु शामिल थे। भीड़ के कारण मंदिर में अव्यवस्था हो गई थी। पुल पर धक्का-मुक्की की स्थिति बनी, जिसे देखकर मन को तकलीफ हुई। कुछ श्रद्धालु इस अव्यवस्था का हिस्सा बन गए थे।लंबे इंतजार के बाद मां धारी देवी के दर्शन हुए। हमने प्रसाद लिया, कुछ यादगार तस्वीरें खींचीं, और अगले पड़ाव की ओर बढ़ चले। यह अनुभव श्रद्धा और धैर्य का मिश्रण था, जो इस यात्रा की महत्ता को और बढ़ा गया।

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धियाणी ने किया देवता का स्वागत

रुद्रप्रयाग से देवता गौरीकुंड के लिए रवाना हुए। बीच में अस्त्यमुनी पड़ता है। यहां बड़कोट गांव से मेरी मॉसी की बेटी रीता का ससुराल है। वो पिछले साल से इस यात्रा का इंतजार कर रही है। पिछले साल जब रघुनाथ जी की यात्रा की तैयारी चल रही थी। तब रीता ने मुझसे इच्छा जताई थी कि देवता को पिठाईं लगाना चाहती है। इस बार जब हम यात्रा के लिए रवाना हुए थे। इस बात को पूरी तरह से भूल चुका था। लेकिन, रघुनाथ जी की एक बार फिर ऐसी कृपा हुई कि अगस्त्यमुनी शहर से सात किलोमीटर पहले चर्चा करते हुए अचानक पुरानी बात याद आ गई। रीता को फोन लगाया, तो उसने तुरंत ही देवता को पिठाईं लगाने की बात कह दी, जैसे ही देवता वहां पहुंचे। श्री राजा रघुनाथ और मां भीमाकाली को रीता ने अपनी श्रद्धा और समार्थ्य के अनुसार खड़ी पिठाईं लगाई। देवता के मालियों और बाजगियों को भी अपनी ओर से भेंट की। यहां से फिर आगे का सफर जारी रहा।

रुद्रप्रयाग में पूजा और प्रसाद

यात्रा का अगला पड़ाव रुद्रप्रयाग था, जहां श्री राजा रघुनाथ जी और मां भीमाकाली की पूजा का आयोजन था। सभी श्रद्धालुओं ने पूजा में भाग लिया और आशीर्वाद प्राप्त किया। प्रसाद की व्यवस्था पहले से की गई थी, जिसे सभी ने ग्रहण किया। इसके बाद, सभी अपने-अपने वाहनों में सवार होकर गौरीकुंड की ओर रवाना हुए।

गौरीकुंड: दूसरा पड़ाव और रात्रि विश्राम

गौरीकुंड में रुकने की सीमित व्यवस्था के कारण, अधिकांश श्रद्धालुओं के लिए रामपुर और सीतापुर में ठहरने का इंतजाम किया गया था। हमारी रुकने की व्यवस्था रामपुर में थी। दिनेश रावत जी ने पहले से ही अपने परिचित को फोन करके व्यवस्था सुनिश्चित कर दी थी। रामपुर पहुंचकर हमने सबसे पहले अपने कमरे में सामान रखा, नहाया, और फिर भोजन किया। कुछ खाना हम अपने साथ लाए थे, जबकि रोटी और दाल पास के एक ढाबे से ली। भोजन सामान्य लेकिन संतोषजनक था।

अगले दिन की तैयारी: श्री केदारनाथ धाम

अगला पड़ाव श्री केदारनाथ धाम था, जहां 22-24 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई करनी थी। हमने रात को ही अगले दिन के लिए जरूरी सामान तैयार कर लिया। हल्का सामान, कुछ ड्राई फ्रूट्स, और आवश्यक दवाइयां पैक की गईं। अगली सुबह तड़के उठकर हम केदारनाथ धाम के लिए रवाना होने को तैयार थे।

केदारनाथ धाम की कठिन चढ़ाई के लिए उत्साहित थे

श्री राजा रघुनाथ जी और मां भीमाकाली की यह यात्रा न केवल एक धार्मिक आयोजन थी, बल्कि श्रद्धा, समर्पण और सामूहिकता का प्रतीक भी थी। मां धारी देवी के दर्शन, रुद्रप्रयाग में पूजा, और गौरीकुंड में रात्रि विश्राम ने इस यात्रा को और भी यादगार बना दिया। अगले दिन केदारनाथ धाम की कठिन चढ़ाई के लिए सभी उत्साहित और तैयार थे। यह यात्रा हर श्रद्धालु के लिए आध्यात्मिक अनुभव और आत्मिक शांति का स्रोत बन रही थी।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.
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