Wednesday , 9 July 2025
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एक्सक्लूसिव : उत्तराखंड में मिला मांसाहारी फूल, हिमालयी क्षेत्र में पहली बार आया नजर

हल्द्वानी: उत्तराखंड वन अनुसंधान संस्थान लगातार नई-नई वनस्पतियों की खोज कर रहा है। वन अनुसंधान संस्थान ने एक ऐसे अद्भुत फूल की खोज की है, जिसके बारे में जानकर आप भी हैरार रह जाएंगे। यह फूल आप फूलों की तरह ही दिखता है, लेकिन इसके खाने और जीवित रहने की प्रक्रिया दूसरे फूलों और पौधों से बिल्कुल अलग है। जैसा ही उसके नाम से ही साफ हो जाता है कि यह पौधा मांसाहारी है। मतलब, मांस खाता है।

उत्तराखंड वन विभाग के अनुसंधान विंग ने चमोली की मंडल घाटी में दुर्लभ मांसाहारी पौधे यूट्रीकुलरिया फुरसेलटा की खोज की है। मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि पूरे पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में यह पहली ऐसी रिकॉर्डिंग है। इससे पहले इस मांसाहारी फूल को उच्च हिलालयी क्षेत्रों में कभी नहीं देखा गया है।

यूट्रीकुलरिया फुरसेलटा को ब्लैडरवर्ट भी कहते हैं। यह ज्यादातर साफ पानी में पाया जाता है। इसकी कुछ प्रजातियां पहाड़ी सतह वाली जगहों पर भी मिलती हैं। बारिश के दौरान यह तेजी से बढ़ता है। इसकी खास बात यह है कि ये फूल वनस्पति की अन्य प्रजातियों की तरह यह पौधा प्रकाश संश्लेषण क्रिया से भोजन हासिल नहीं करता। बल्कि शिकार के जरिये जीते हैं। कीड़े-मकौड़ों को खाता है। जैसे ही कोई कीट पतंगा इसके नजदीक आता है। इसके रेशे उसे जकड़ लेते हैं। पत्तियों में निकलने वाला एंजाइम कीटों को खत्म करने में मदद करता है।

यह प्रोटोजोआ से लेकर कीड़े, मच्छर के लार्वा और यहां तक कि युवा टैडपोल का भी भक्षण कर सकता है। संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि यह खोज उत्तराखंड में कीटभक्षी पौधों के अध्ययन की एक परियोजना का हिस्सा थी, जिसे 2019 में अनुसंधान सलाहकार समिति (आरएसी) की संस्तुति पर किया गया था।

इस तरह के पौधे सिर्फ ऑक्सीजन ही नहीं देते, बल्कि कीट पतंगों से भी बचाते हैं। ये दलदली जमीन या पानी के पास उगते हैं और इन्हें नाइट्रोजन की अधिक जरूरत होती है। जब इन्हें यह पोषक तत्व नहीं मिलता तो ये कीट पतंगे खाकर इसकी कमी को पूरा करते हैं। यह आम पौधों से थोड़ा अलग दिखते हैं।

इस खास तरह के फूल के बारे में 106 साल पुरानी जापानी शोध पत्रिका जर्नल ऑफ जापानी बॉटनी में लिखा गया है। पत्रिका में उत्तराखंड के वनों से जुड़ा पहला शोधपत्र पहली बार प्रकाशित हुआ है। मेघालय और दार्जिलिंग के कुछ हिस्सों में पाई जाने वाली यह प्रजाति 36 साल बाद भारत में फिर से रिकॉर्ड गई है।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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