Friday , 24 October 2025
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उत्तराखंड : पिता के पदचिह्नों पर चल रहे अलभ्य और त्रिष्ठव, पारंपरिक लोक संगीत के संरक्षण की ‘जोड़ी’

  • प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’

उत्तराखंड की लोक संस्कृति और संगीत परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है दो युवा भाइयों, अलभ्य और त्रिष्ठव बडोनी ने। शिक्षक पिता गिरीश बडोनी के पदचिह्नों पर चलते हुए ये दोनों भाई आज लोक संगीत को ना केवल जी रहे हैं, बल्कि अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन रहे हैं।

अलभ्य वर्तमान में एसजीआरआर विश्वविद्यालय से संगीत में एमए कर रहे हैं। उन्होंने प्रयाग संगीत समिति से संगीत प्रभाकर की उपाधि प्राप्त की है। वहीं, त्रिष्ठव भी संगीत की शिक्षा में लगातार आगे बढ़ रहे हैं, वे प्रयाग संगीत समिति से तबले में संगीत प्रभाकर कर चुके हैं और फिलहाल डीएवी पीजी कॉलेज से संगीत विषय में बीए की पढ़ाई कर रहे हैं।

अलभ्य जहां अपनी मधुर आवाज़ और गायन कला से लोक धुनों में जान डालते हैं, वहीं त्रिष्ठव अपने बाध्ययंत्रों की ताल और लय से हर गीत को और भी सजीव बना देते हैं। दोनों भाइयों की जोड़ी गढ़वाली और कुमाऊंनी गीतों को पारंपरिक रूप में गाने के साथ-साथ आधुनिक प्रस्तुति से भी जोड़ती है, लेकिन दोनों लोक की असल आत्मा से छेड़छाड़ नहीं करते।

दोनों के पिता, गिरीश बडोनी, शिक्षा जगत में अपनी अलग पहचान रखते हैं। उनके वीडियो अक्सर स्कूल के बच्चों के साथ लोकगीत गाते हुए वायरल होते रहते हैं। इसी लोक-संस्कार की विरासत को अलभ्य और त्रिष्ठव ने आगे बढ़ाया है।

आज जब संगीत की दुनिया में ऑटोमेटिक सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक ध्वनियों का बोलबाला है, तब इन भाइयों ने पारंपरिक बाध्ययंत्रों को अपना साथी बनाकर अलग राह चुनी है। यही उनकी सबसे बड़ी पहचान बन चुकी है। अलभ्य और त्रिष्ठव ने न सिर्फ गढ़वाली और कुमाऊंनी गीतों, बल्कि देश की कई भाषाओं के उन गीतों को भी गाया है जो उत्तराखंड की संवेदना से मेल खाते हैं। उनके प्रयासों ने कई युवाओं को लोक संगीत की ओर प्रेरित किया है।

उनके संगीत में न सिर्फ ठहराव और गहराई दिखाई देती है, बल्कि अपने पिता की संगीत समझ और अनुशासन की झलक भी साफ नजर आती है। इन दोनों भाइयों ने यह साबित किया है कि यदि संकल्प हो, तो परंपरा भी आधुनिकता के बीच अपना सशक्त स्थान बना सकती है।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.
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