Sunday , 20 July 2025
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उत्तराखंड पंचायत चुनाव 2025: साख, सत्ता और सौदेबाज़ी का त्रिकोणीय युद्ध

  • प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’

उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का बिगुल बज चुका है। गांव-गांव में राजनीतिक सरगर्मी तेज़ है और सत्ताधारी भाजपा ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। पार्टी ने जिला पंचायत और ब्लॉक प्रमुख की सीटों पर जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। प्रदेश अध्यक्ष से लेकर मंत्री और विधायक तक प्रचार में उतर आए हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या पंचायत स्तर की ज़मीनी राजनीति में बड़े नेताओं की एंट्री वाकई असर दिखा पाएगी? या फिर ये चुनाव स्थानीय समीकरणों, व्यक्तिगत रिश्तों और धनबल की खुली होड़ बनकर रह जाएगा? यही सवाल इस चुनाव को खास बनाते हैं।

सत्ता की शतरंज और मोहरे बने दिग्गज
उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की गूंज अब शोर में बदल चुकी है। गांव की गलियों से लेकर जिला मुख्यालयों तक राजनैतिक बिसात बिछ चुकी है और भाजपा इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना चुकी है। जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख की कुर्सियों पर काबिज़ होने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। खुद प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट, कैबिनेट मंत्री और तमाम विधायक गांव-गांव, टोले-टोले घूम रहे हैं। पर क्या ये ‘बड़े’ नेता गांव की राजनीति के ‘छोटे मगर गहरे’ समीकरणों को साध पाएंगे? यह सवाल गांव के हर नुक्कड़ पर तैर रहा है।

गांव में रिश्तों का गणित, नेताओं की चाल फेल?
पंचायत चुनाव कोई विधानसभा नहीं होता, जहां पार्टी की लहर हो और नेता की तस्वीर से वोट गिरते हों। यहां जनता देखती है कि कौन अंतिम संस्कार में आया था, किसने बीमार पड़ने पर हौसला दिया और किसने शादी-ब्याह में मदद पहुंचाई। भाजपा के बड़े-बड़े नाम यहां बौने पड़ सकते हैं क्योंकि पंचायत चुनाव दिल से लड़ा जाता है, दल से नहीं। गांव की चूल्हा-चौका राजनीति में झूठे वादों की जगह नहीं होती।

पार्टी कैडर का नहीं पड़ता प्रभाव
भले ही पार्टी अधिकृत प्रत्याशी मैदान में हों, लेकिन उत्तराखंड की पंचायत राजनीति में यह मुहर महज़ एक औपचारिकता बनकर रह जाती है। यहां वोट जाति, ज़ात, रिश्तेदारी और व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर डाला जाता है। ऐसे में भाजपा की यह रणनीति, बड़े नेताओं को प्रचार में झोंकना कहीं अपने ही दांव में फंसने जैसा न हो जाए?

उल्टा पड़ सकता है प्रचार का तामझाम
प्रचार में उतरे विधायक और मंत्री खुद जनता की अदालत में कठघरे में खड़े दिखते हैं। गांव वाले पूछते हैंवो हमारी सड़क कब बनी? पानी की लाइन कब आई? बिजली क्यों गायब है? और भी कई तीखे सवाल होते हैं, ऐसे में किसी प्रत्याशी के लिए वोट मांगते हुए बड़े नेता, खुद अपने कामों की पोल भी साथ में खोलते नज़र आते हैं। प्रचार यहां फायदे से ज़्यादा नुकसान दे सकता है।

सौदेबाज़ी की खुली मंडी
अब आइए असली सच्चाई पर नजर दौड़ाते हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी कोई समाजसेवा का मंच नहीं, बल्कि एक खुलेआम बिकाऊ माल की मंडी है। एक-एक सदस्य 50 लाख से लेकर 60-70 लाख तक में बिकता है, यह कोई आरोप नहीं, बल्कि सार्वजनिक सच्चाई है। जिसे अध्यक्ष बनना है, उसके पास कम से कम 8-10 करोड़ की जेब होनी चाहिए। यह ‘चुनाव’ नहीं, ‘निवेश’ है, जिसका रिटर्न पूरे पांच साल में वसूला जाता है, ठेके, कमीशन, बंदरबांट और ऊपर से आशीर्वाद का खेल।

भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस ढकोसला
भाजपा हो या कांग्रेस या फिर कोई निर्दलीय, जिला पंचायत का खेल सबके लिए एक सा है। भ्रष्टाचार यहां कोई छुपा हुआ अजेंडा नहीं, बल्कि निर्वाचित पद की बुनियाद है। सरकार ज़ीरो टॉलरेंस की बात करती है, लेकिन पंचायत चुनाव में यह शब्द सिर्फ बयानबाज़ी की काली पट्टी है। यहां से निकलने वाली हर सिफारिश, हर ठेका और हर योजना पहले इस भ्रष्ट व्यवस्था की छाती से होकर गुज़रती है। ब्लॉक प्रमुख की कुर्सी भी इससे अलग नहीं। यहां भी वही सौदे, वही बंदरबांट और वही जातिगत समीकरण चल रहे हैं। फर्क बस इतना है कि यहां मंडी थोड़ी सस्ती है, मगर नीयत वैसी ही बिकाऊ।

उल्टा नेता लोगों के निशाने पर आ जाएंगे?
भाजपा ने एक बड़ा दांव खेला है, पर क्या गांव उसे समझ पाएंगे या उल्टा नेता लोगों के निशाने पर आ जाएंगे? पंचायत चुनाव का असली चेहरा बहुरंगी नहीं, बल्कि कड़वा सच है। यह लोकतंत्र नहीं, धनतंत्र की परीक्षा बनता जा रहा है। जहां भावनाएं नहीं, नोट गिनती में आते हैं, तो सवाल यह है] क्या भाजपा की यह साख की लड़ाई, वाकई जीत में बदलेगी या फिर गांव की ज़मीन उसे राजनीति का सबक पढ़ा देगी?

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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