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उत्तराखंड: शहरों की दौड़ में खाली होते गांव, पढ़ें ये चेतानी वाली रिपोर्ट

देहरादून: उत्तराखंड में पलायान सबसे बड़ी समस्या बन गया है। पलायान के कारण पहाड़ के गांव के गांव भूताह बन गए। लाखों घर खाली हो गए हैं। पलायान की रफ्तार सरकार की तमाम योजनाओं के बाद भी कम नहीं हो रही है। बल्कि, और तेज हो रही है। पलायन की ये रफ्तार जहां गावों की बर्बादी का कारण बन रहे हैं। वहीं, शहरों के लिए भी बड़ा संकट खड़ा कर रहे हैं।

स्थिति यह है कि गांव से लोग शहरों में बस रहे हैं, जिसका असर यह हो रहा है कि शहर भी अब सिकुड़ने लगे हैं। शहरों में भी तेजी से मैदानों की ओर दौड़ते लेगों को समेटने में सक्षम नहीं है। जिसके कारण शहरों में जनसंख्या विस्फोट हो रहा है। शहरों की जनसंख्या हर साल हजारों लाखों में बढ़ जाती है।

नतीजतन, शहरों में भी धीरे-धीरे संसाधन कम पड़ने लगे हैं। अचानक शहरों के की ओर भागता आबादी के लिए शहरों में उतने बेहतर इंतजाम भी नहीं हो पा रहे हैं। लोगों के शहरों की ओर दौड़ लगाने से गांवों के हिस्से का बजट भी शहरों में खपने लगा है। सरकारों की योजना भी गांवों के शहरीकरण की है। हालांकि, सरकारें हर बाद यह दावा करती हैं कि गांवों को बचाना है। लेकिन, दूसरी और ग्राम पंचायत को नगर पंचायतों में तब्दील करने का सिलिसला जारी है।

पलायान आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की है। वह रिपोर्ट बेहद चौंकानी वाली है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य की कुल आबादी के 36.24 लोग शहरों में रहते हैं। जबकि राज्य गठन के समय यह आंकड़ा 21.72 था। उत्तराखंड जिस तेजी से शहरीकरण बढ़ रहा है, निकायों में उस हिसाब से सुविधाएं जुटाने की तैयारी नहीं है।

आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार गठन के वक्त 21.72 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती थी। शहरीकरण में पिछले एक दशक में बहुत तेजी देखने को मिली है। प्रदेश में शहरी आबादी 36.24 प्रतिशत हो गई है। नई जनगणना के बाद शहरी आबादी 40 प्रतिशत के पार पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार बीते दस साल में उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों से 17.10 लाख लोगों का पलायन शहरों की तरफ हुआ है। अलग राज्य बनते समय प्रदेश में कुल 63 निकाय थे। यह अब बढ़कर 102 हो गए हैं। हालांकि, जनसंख्या के अनुपात में निकाय तो बढ़े हैं। लेकिन शहरी सुविधाएं सभी लोगों तक पहुंचाना अब भी चुनौती है।

दूसरी आर हिमाचल प्रदेश है। हम उत्तराखंड में हिमाचल की तर्ज पर भू-कानून लाना चाहते हैं। कई मामलों में हिमाचाल की तर्ज पर का करने बात भी कहते हैं। हमें शहरीकरण के मामले में भी हिमाचल का ही मॉडल या उदाहरण लेना पड़ेगा। हिमाचल की बात करें तो, 2011 की जनगणना के अनुसार शहरी आबादी सिर्फ 10.3 प्रतिशत थी।

उत्तराखंड में 2011 में शहरी आबादी का प्रतिशत 26.55 प्रतिशत था। एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल के मुताबिक, उत्तराखंड में शहरीकरण हिमाचल की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा है। उत्तराखंड के साथ बने छत्तीसगढ़, झारखंड भी शहरीकरण के मामले में पीछे हैं।

गांवों के खाली होने के वैसे तो कई नुकसान हैं। लेकिन, एक बड़ा नुकसान यह है कि बाहरी लोग गांवों के आसपास बस रहे हैं और उनको पूछने, रोकने और टोकने वाला भी कोई नहीं है। धीरे-धीरे बाहरी लोगों की आमद पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ी है। इनके बढ़ने के साथ ही अपराध भी बढ़े हैं। डेमोग्राफिक चेंज की बातें भले ही हरिद्वार जिले के लिए होती हों, लेकिन बहुत जल्द पहाड़ में भी यह तरह का बदलाव देखने को मिलेगा।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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