Friday , 11 October 2024
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चला फुलारी फूलों क, सौदा-सौदा फूल बिरौला, फूलदेई, छ्मा देई, ऐगे ऋतुरैणा

  • चंद्रशेखर पैन्यूली 

भगवान सूर्य नारायण के कुम्भ राशि से मीन राशि में प्रवेश करने के साथ ही प्रारम्भ हुए चैत्र मास की संक्रांति की आपको बहुत बहुत बधाई।चैत्र मास प्रकृति में एक नयी ऊर्जा का संचार,होता हैं,पेड़ पौधों में नए नए रंग बिरंगे फूल आ रहे होते है,नयी हरियाली जन्म ले रही होती है,ठण्ड का मौसम लगभग खत्म हो चुका होता है ,सभी जीव जन्तुओ में एक नई ख़ुशी और ऊर्जा का संचार होता है,बसन्त ऋतु का वास्तविक आगमन इसी महीने होता है।इसी चैत्र मास से ही हिन्दू नववर्ष,विक्रमी सम्वत भी शुरू होता है,जो कि मातारानी के नवरात्रि के साथ शुरू होता है।हमारे उत्तराखण्ड में चैत्र मास का विशेष महत्व है क्योंकि आज से ही फूलदेई का त्यौहार शुरू होता है।

छोटी छोटी लड़कियां ,बच्चे सुबह सुबह घरों की चौखट,देहरी ,गॉव के आसपास के जंगलों या फुलवाड़ी से तोड़कर ताजे फूल प लेकर ,फूलों से हर दरवाजे को सजाती है,जिससे उनको सम्मान के रूप में लोग दाल ,चावल और नकदी में दक्षिणा देकर उनका उत्साहवर्धन करते हैं, फूलदेई उत्तराखण्ड के पहाडों में खुशहाली के प्रतीक का त्यौहार है,जो कि आज से ही मतलब चैत्र संक्रांति से शुरू होता है।

फूलदेई पर्व इसलिए मनाया जाता है क्यूंकि इस पर्व के बारे में यह कहा जाता है कि एक राजकुमारी का विवाह दूर काले पहाड़ के पार हुआ था,जहां उसे अपने मायके की याद सताती रहती थी।वह अपनी सास से मायके भेजने और अपने परिवार वालो से मिलने की प्रार्थना करती थी किन्तु उसकी सास उसे उसके मायके नहीं जाने देती थी। मायके की याद में तड़पती राजकुमारी एक दिन मर जाती है और उसके ससुराल वाले राजकुमारी को उसके मायके के पास ही दफना देते है और कुछ दिनों के पश्चात एक आश्चर्य तरीके से जिस स्थान पर राजकुमारी को दफनाया था। उसी स्थान पर एक खूबसूरत पीले रंग का एक सुंदर फूल खिलता है और उस फूल को “फ्योंली” नाम दे दिया जाता है और उसी की याद में पहाड़ में “फूलों का त्यौहार यानी कि फूल्देइ पर्व” मनाया जाता है और तब से “फुलदेई पर्व” उत्तराखंड की परंपरा में प्रचलित है।

साथ ही इस चैत्र मास में एक पुरानी परम्परा भी पहाडों के गांवो में शुरू होती है जो कि अब लगभग विलुप्ति सी हो गई है ,वो है लगमानी, वो ये है कि शादी शुदा लड़कियों के घरों में उनके मायके के (औजी) ढोलवादक जाकर उसके मायके की खुश खबरी देकर ध्याणी(शादीशुदा) महिला को खुश खबरी देते है साथ ही ढोल दमाऊ से खुशहाली के गीत गाकर उसके परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं, जिससे खुश होकर अपने मायके के औजियों को ध्याणं और उसके ससुराल वाले सम्मान सहित विदा करते है,मुझे लगमानी की बचपन की यादें है।

अब नही दिखते वो दृश्य जब गांव में लगमानी आते थे।आज से चैत्र का महीना शुरू हो गया है तो शादीशुदा महिलाओं को अपने मायके की याद अधिक आती है ,प्रसिद्ध लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने इस बारे में एक भावनात्मक गीत भी लिखा है,जो कुछ इस तरह है। “घुघुती घुरण लैगी मेरा मैत की,बौड़ि बौड़ि ऐगे ऋतु ऋतू चैता की, मतलब स्प्ष्ट की चैत्र के महीने से सभी को विशेष लगाव है।फूलदेई का त्यौहार जहाँ हमे प्रकृति के विभिन्न रंगों के साथ खुशहाली का संदेश देता है तो, वहीं शादी शुदा महिला की मायके के प्रति अपनी यादे भी ताजा होती है।

मैं जब गढ़वाल विवि श्रीनगर में छात्र था और पत्रकारिता छात्र परिषद का अध्यक्ष और संयुक्त छात्र परिषद का मीडिया प्रभारी था, तो मेरे करीबी मित्र आज श्रीनगर के प्रसिद्ध पत्रकार पंकज मैंदोली,दीवान सिंह चौहान,राजन मिश्रा,मनोज् मन्नी सुन्द्रियाल,प्रशांत बडोनी,सुरेश ढौण्डियाल,दीपक नेगी ,आशीष शुक्ला आदि ने इस फूलदेई त्योहार को विवि में मनाने का फैसला किया था। हमने अपने ही पत्रकारिता जनसंचार केंद्र के कुछ छात्र छात्राओं के साथ इसकी शुरुआत की थी जिनमे तब हमारे साथियों की सराहनीय भूमिका रही,हमारे इस कार्यक्रम का श्रेय मैं तब हमारी टीम के कार्यक्रम प्रभारी इवेंट हेड पंकज भाई को देता हू।

उन्होंने ये प्रस्ताव रखा जिसे हम सबने मिलकर तब धरातल पर उतारा।तब हमने कई छात्र छात्राओं के साथ फूलदेई बिड़ला और चौरास परिसर में शुरू किया था ,जिसकी विवि के चौरास कैम्पस के तब के निदेशक प्रो एस डी काला सर ने सराहना की थी,तब हमारे पत्रकारिता एवं जनसंचार केंद्र के निदेशक प्रो. बीए आर डंगवाल सर, डॉ. विक्रम वर्तवाल, दिवगंत डॉ मनोज सुन्द्रियाल, डॉ दिनेश भट्ट,डॉ वन्दना नौटियाल आदि शिक्षकों ने भी इसके लिए हमारा प्रोत्साहन और मार्गदर्शन किया था। श्रीनगर में ही कई अन्य सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।

हमे तब श्रीनगर के कई नामी गिरामी लोगों के साथ इस फूलदेई कार्यक्रम में सहभागिता करने का सुअवसर मिला, जिनमे विवि के वरिष्ठ सेवानिवर्त प्रो. डी. आर पुरोहित जी, हाल ही में राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित हुए डॉ. राकेश भट्ट व डॉ. संजय पाण्डेय जी और उनकी धर्मपत्नी लता पांडेय जी,दिवंगत वरिष्ठ पत्रकार डॉ उमाशंकर थपलियाल जी,डॉ थपलियाल जी तो होली के गीतों और होली मिलन कार्यक्रम के भी विशेषज्ञ थे,दुःखद कि वो अब इस दुनिया में नही है,दिवंगत भवानी शंकर थपलियाल,गंगा असनोड़ा थापलियालजी,अनूप बहुगुणा जी,गणेश भट्ट जी,गिरीश पैन्यूली जी,आदि अनेक लोगों के मार्गदर्शन में हमे फूलदेई कार्यक्रम को हर्षोलास के साथ मनाने का सौभाग्य मिला।मान्यता है कि चैत्र के महीने में बसन्त ऋतु के आगमन पर रंग बिरंगे फूलों को देखकर पहाड़ो में आछरी (देवपरियां )भी दिखाई देती है।

श्रीनगर गढ़वाल में अब इस फुलदेई त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं जो बेहद सराहनीय है. इससे हमारे परंपरागत तीज त्योहारों की जानकारी हमारे आने वाली पीढ़ी को मिलती है. हमारे त्योहार विलुप्त नही होते हैं। अब मुख्यमंत्री आवास पर भी फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। आज पहाड़ो में बड़ी तेजी से पलायन हो रहा है। हमारे पलायन कर चुके लोगों के घरों में ताले लटके हुए हैं आज पहाड़ो में फूलदेई भी विलुप्त की कगार पर खड़ा है। क्योंकि बढ़ते पलायन के कारण इसको मनाने वाले बच्चे गॉव में बहुत कम है,मैं अपने उत्तराखंडी, पहाड़ी भाई बहनों से निवेदन करता हूँ कि आप जहाँ भी रहें।

अपने तीज त्यौहार को न भूलें, अपने बच्चों को अपने रीति रिवाजों,अपनी बोली, भाषा,अपनी संस्कृति से सदैव रू-ब-रू करवाएं,भगवान बदरी-केदार, माँ भगवती की कृपा हम सभी पर बनी रहे,सभी के घरों में उमंग, ख़ुशहाली और प्रसन्नता का भाव बना रहे, मां वसुंधरा हरी भरी रहे। आपके सपरिवार की कुशलता की कामना भगवान से करता हूँ और पुनः आपको प्रकृति के इस खूबसूरत त्यौहार फूलदेई और उत्साह। उमंग से लवरेज इस चैत्र महीने की बधाई देता हूँ। माता शीतला आपके तन मन को शीतल बनाये रखें, प्रकृति का आशीर्वाद हम सभी को अविरल रूप से मिलता रहे,साथ ही आपसे अपने तीज त्योहारों और मान्यताओं को न भूलने की भी गुजारिश करता हूँ। आपको चैत्र मास और उत्तराखंड के लोकपर्व, फूलदेई की बहुत बहुत शुभकानाएं।

(नोट : लेखक टिहरी  जिले के लिखवार गांव के ग्राम प्रधान हैं. )

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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