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उत्तराखंड: धाम पर मंडरा रहा खतरा, यमुनोत्री से सरकारों की इतनी बेरुखी क्यों?

बड़कोट: चारों धामों के यमुनोत्री पहला धाम है। इस धाम में बड़ी संख्या में प्रति वर्ष श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। सड़क से पांच किलोमीटर की पैदल दूरी होने के कारण धाम की यात्रा थोड़ा मुश्किल है। लेकिन, उससे बड़ी चिंता की बात यह है कि यमुनोत्री धाम को लेकर सरकारों ने कभी भी गंभीरता नहीं दिखाई और ना ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इस पर ध्यान दिया। दो दिन पहले हुई भारी बारिश ने एक बार फिर यमुनोत्री धाम को लेकर चिंता बढ़ा दी है। यमुना के उफान ने धाम की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया।

यमुनोत्री के मंदिर को खतरा

खतरा केवल मां यमुना का उफान नहीं है। खतरा कालिंदी पर्वत से भी है। वो कालिंदी पर्वत जिससे मां यमुनोत्री के मंदिर को बड़ा खतरा बना हुआ है। पहले भी मंदिर के गर्भ गृह को नुकसान पहुंच चुका है। इतना ही नहीं कालिंदी पर्वत से हुए भूस्खलन के कारण लोगों की जानें भी गई थी।

सुरक्षा को लेकर चेताया

ऐसा नहीं है कि यमुनोत्री धाम में बजट खर्च नहीं किया गया। पिछले 10 सालों में करीब तीन करोड़ मंदिर को बाढ़ के खतरे से बचाने के लिए सुरक्षात्मक काम किए गए है, लेकिन उनको हाल यह है कि नदी के उफान में वो पूरी तरह से बह गए। 2013 की आपदा ने यमुनोत्री धाम की सुरक्षा को लेकर चेताया। आवाज भी उठाई गई। सरकारों ने दावे भी किए, लेकिन कोई ठोस कदम आज तक नहीं उठाया गया।

बड़ा खतरा कालिंदी पर्वत

यमुनोत्री धाम के लिए सबसे बड़ा खतरा कालिंदी पर्वत है। इससे 1982, 1984, 2002 और 2004 में भूस्खलन हो चुका है, जिससे मंदिर को नुकसान भी पहुंचा। 2004 की बात करें तो पहाड़ी से आए पत्थरों की चपेट में आने से लोगों की मौत हो गई थी। 2013 के बाद सिंचाई विभाग ने कुछ काम भी कराए, लेकिन उनकी गुणवत्ता यमुना के उफान के आगे जवाब दे गई। 2015 में भी यमुनोत्री धाम में भूस्खलन हुआ था। तब सूर्यकुंड को नुकसान पहुंचा था। 2007 में यमुना के मुहाने पर झील बनने और 2010 में नदी के कटाव से भी धाम को नुकसान हुआ।

एक और बड़ा खतरा

एक और बड़ा खतरा यह है जिस तरह से 2007 में यमुना के उद्गम स्थल के नीचे एक झील बन गई थी। 2021 में भी सप्त ऋषिकुंड की से निकलने वाली जलधाराओं की तलहटी में बोल्डर और मलबा जमा हो रहा है, जिससे पानी रुकता रहता है। झील बलने और उसके टूटने से बड़ी आपदा आ सकती है। ऐसे में इस समस्या का भी स्थाई समाध खोजना होगा।

प्रवाह मंदिर की ओर

इतना ही नहीं यमुना नदी के मुहाने और मंदिर परिसर के बीच करीब डेढ़ सौ मीटर दायरे में मलबा और शिलाखंडों के कारण नदी का प्रवाह मंदिर की ओर हो गया हैं। इन सुरक्षा कार्यों को पहले ही और अधिक बड़ा और मजबूत करने का सुझाव दिया गया था। लेकिन, उस पर भी आज तक कोई काम नहीं किया गया।

भूस्खलन के ट्रीटमेंट

भूस्खलन के ट्रीटमेंट के लिए विभिन्न एजेंसियों से सर्वे भी कराया गया। रिपोर्ट में पर्वत को भूस्खलन के लिए संवेदनशील बताया गया था। सुझाव दिया गया था कि मंदिर की सुरक्षा के जियोग्रिड वाल का निर्माण किया जाए। कुछ अन्य जानकारियां भी दी गई थी। बावजूद आज तक उस पर काम नहीं हुआ।

आज तक काम नहीं हुुआ

दो साल पहले सरकार ने धाम के कायाकल्प के लिए योजना करने का घोषणा की थी। लेकिन, दो साल बाद भी उस पर आज तक काम नहीं हुुआ। स्थिति यह है कि मंदिर पर अब भी खतरा मंडरा रहा है। तीर्थ पुरोहित पवन उनियाल का कहना है कि मंदिर की सुरक्षा को लेकर गंभीरता से काम करने की जरूरत है। साथ ही धाम में सुविधाओं का विस्तार भी किया जाना चाहिए।

रोप-वे निर्माण

यमुनोत्री धाम की यात्रा को सुगम बनाने के लिए रोप-वे निर्माण के लिए कई बार योजना बन चुकी है। ग्रामीणों ने भूमि भी दान दी, लेकिन सालों बाद वह योजना भी धरातल पर नहीं उतर पाई है। जबकि, अन्य जगहों के लिए पीएम मोदी की घोषणा के बाद बजट भी जारी हो चुका है। बड़ा सवाल यह है कि आखिर यमुनोत्री धाम के प्रति इतनी बेरुखी क्यों है?

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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