उत्तरकाशी: कोरोना महामारी में स्वास्थ्यकर्मी से लेकर पुलिस और हर नागरिक कोरोना योद्धा की भूमिका में है। लेकिन, कुछ चीजें हैं, जो सवाल खड़ा करती हैं। उनमें एक मसला यह भी है कि महिला चिकित्सक की ड्यूटी काट दी गई है। जबकि महिला फार्मेसिस्टों की ड्यूटी लगाई जा रही है। सवाल भेदभाव का है। आखिर क्यों? दूसरी बड़ी बात यह है कि स्वास्थ्य मंत्रालय अपने कार्मिकों की कोरोना की इस जंग के लिए पीठ ठोक रहा है। वंही, आयुर्वेद विभाग उत्तरकाशी के कार्मिकों का एक चैंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। सूत्रोंं की मानें तो कुछ फार्मेसिस्ट जान जोखिम में डालकर अपनी सेवा दे रहे हैं, तो कई ड्यूटी के नाम पर जनपद में वर्षों से व्यवस्था के नाम पर मनचाही जगहों पर तैनात हैं।
मूल तैनाती पर हो तैनाती
यह तब है जबकि राज्य सरकार 2 साल पहले ही अटैच की सारी व्यवस्थाएं समाप्ति के आदेश दे चुकी है। जिसका परिणाम अब सामने आ रहा है। अपनी मूल तैनाती पर डटे फार्मासिस्टपर काम का दबाव बढ़ गया है। एक-एक फार्मासिस्ट को 20-30 गांव की जिम्मेदारी देकर विभाग अपनी खानापूर्ति कर रहा है। रोज नए नए आदेश से फार्मासिस्टों में रोष है। उनका कहना है कि यदि सभी को उनकी मूल तैनाती में वापस किया जाता है तो एक फार्मेसिस्ट के पास अधिकतम 5-7 गांव की ही जिम्मेदारी बनेगी और उन्हें भी राहत मिलेगी और काम भी बेहतर ढंग से हो सकेंगे।
ये हैं अटैचड फार्मासिस्ट
बताया जा रहा है नवनीत उनियाल-नैटवाड़, विजय पाल पयाल-श्रीकाल खाल, राजेश जोशी-टिकोची, विजय राणा-कोठीण्डा, बलवीर-गंगाड़, अमिता-मोरी, सुमिता चैहान-हर्षिल, तृप्ति पंवार-चमियारी, रमेश बिष्ट-कफनौल, शिवांगी पंवार-बड़कोट, राखी भट्ट -दिचली आदि कई फार्मेसिस्ट वर्षों से व्यवस्था पर इधर से उधर अपनी सुविधा के अनुसार कार्य कर रहे हैं, जिसका परिणाम यह है कि कोरोना की इस आपदा में भी यह लोग अपनी मूल तैनाती को छोड़कर अन्य चिकित्सालयों में अटैच हैं।