अग्रज महावीर रवांल्टा जी के कार्य एवं प्रयास कुछ ऐसा ही एहसास करवा रहे हैं। विश्वभर के लिए महामारी बन चुके कोरोना के बीच भारत हो या उत्तराखण्ड कोरोना के प्रभाव व प्रकोप को रोकने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास जारी हैं। स्वास्थ्य, पुलिस, स्वच्छता जैसे विभाग हैं, जो कोरोना के खिलाफ जारी जंग में प्रथम पंक्ति में शामिल हैं। संयोग से अग्रज श्री रवांल्टा जी भी एक ऐसे ही विभाग के कार्मिक हैं।
जागरूकता, जाँच, उपचार, रोकथाम जैसे तमाम कार्यों के चलते कार्य एवं दायित्वों में अतिरेक वृद्धि होना स्वाभाविक है और कार्य की अधिकता के साथ शारीरिक, मानसिक थकान भी। थकान ही नहीं कई बार लाख चाहने पर भी तनाव, चिंताएं बढ़ ही जाती है क्योंकि व्यवसाय के साथ घर—परिवार, आस—पड़ोस, नाते—रिश्तेदारी ..क्या—क्या नहीं है? लेकिन रवांल्टा जी है कि इन सबके वाबजूद भी हमेशा की तरह ही कोरोना के खिलाफ जारी जंग के पूरी सिद्दत के साथ मैदान में डटे हैं। व्यवसायिक ही नहीं बल्कि साहित्य या मातृभाषा सेवा के क्षेत्र में भी। तभी तो तमाम विभागीय कार्य एवं दायित्व या विषमताओं के बीच भी वे अपने कवि कर्म या मातृभाषा प्रेम को पीछे नहीं छोड़ पा रहे हैं।
परिणति के रूप में कोरोना को लेकर शासन—प्रशासन द्वारा जारी दिशा—निर्देशों को सम मातृभाषी लोगों तक अधिक सरलता से पहुँचाने के उद्देश्य से अपनी दूधबोली में ही कविता रच कर अपने कार्य स्थल से ही सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुँचा कर कवि कर्म के तदन्तर जन—जागरूकता की दृष्टि से एक महान उद्देश्य की पूर्ति करने में सफल होते हैं, इतना ही अभी तक हिंदी व अंग्रेजी में उपलब्ध होने वाले इन्हीं दिशा—निर्देशों को वे अपनी मातृभाषा में अनुवादित करने का सफल प्रयास भी करते हैं, जो एक संगठन के माध्यम से छप कर लोगों के बीच पहुँचते हैं।
रवांल्टी में रची कविता हो या रवांल्टी में छपे पर्चें दोनों ही आकर्षण का विषय बन रहे हैं। पर्चे तो इतने की लोग इन्हें सुरूचि से पढ़ ही नहीं रहे हैं बल्कि, पढ़ने के बाद अपने पास सुरक्षित भी रख ले रहे हैं। बहरहाल जो भी हो पर एक बात स्पष्ट है कि कोई भी महान व्यक्ति यूँ ही महान नहीं बनता। इसलिए आपकी कार्य क्षमता, साहित्य साधना एवं मातृभाषा प्रेम को वंदन करते हुए आपकी कुशलता, स्वास्थ्य एवं खुशहाली की कामना करता हूँ!
आपका अनुज
दिनेश रावत