पुरोला : पुरोला के खेल मैदान में चल रहे अष्टादश महापुराण यज्ञ के आयोजन पर अब सवालों की बौछार शुरू हो गई है। शुरुआत में जिस धार्मिक अनुष्ठान को श्रद्धा और भव्यता से जोड़ा जा रहा था, अब वही आयोजन देव संस्कृति के अपमान के आरोपों से घिरता जा रहा है।
देव मर्यादाओं का उल्लंघनों
इस धार्मिक आयोजन में करीब 47 देव डोलियां, जिनमें मुलुकपति श्री राजा रघुनाथ जी समेत अनेक लोकदेवताओं की डोलियां शामिल हैं। कथा पंडाल में विराजमान की गई हैं। पर अब लोगों का कहना है कि इन पवित्र डोलियों के ऊपर बनाए जा रहे मंच और ढांचे पर श्रमिकों को चढ़ा दिया गया, जो सीधे-सीधे देव मर्यादाओं का उल्लंघन है।
बनाल पट्टी में भारी आक्रोश
खासतौर पर बनाल पट्टी में इस घटना को लेकर तीव्र असंतोष देखा जा रहा है। युवाओं से लेकर बुज़ुर्गों तक, सभी वर्गों में आयोजन समिति को लेकर नाराज़गी और क्षोभ उभर आया है। लोग कह रहे हैं कि देवताओं को बुलाकर उनका ऐसा निरादर करना न केवल अपमान है, बल्कि देव परंपरा की अवहेलना है।
सोशल मीडिया पर फूटा गुस्सा
विवादित घटनाक्रम की वीडियो क्लिप्स और फोटो लगातार व्हाट्सएप ग्रुपों और सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। कई युवाओं ने आयोजकों के खिलाफ कड़ी टिप्पणियां करते हुए कहा है कि अगर ऐसी लापरवाहियां होती रहीं, तो भविष्य में देव डोलियों को ऐसे आयोजनों में भेजने से पूर्व गांवों को सोचना पड़ेगा। कुछ का तो यहां तक कहना है कि श्रद्धा के नाम पर दिखावा है और देवताओं भी को दिखावे की वस्तु बना दिया गया है।
आयोजन समिति मौन, व्यासपीठ से बयान
हालांकि आयोजन समिति की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन व्यास पीठ से एक विवादित टिप्पणी सामने आई है। एक वीडियो में व्यास जी न सिर्फ वीडियो बनाने वाले को चेतावनी देते सुनाई दे रहे हैं, बल्कि यह भी कहते हैं कि “ऊपर वाले ने तेरी वीडियो बना दी तो तेरे घर वाले रोते ही रह जाएंगे।”
इस तरह की भाषा को किसी भी सूरत में उचित नहीं ठहराया जा सकता। यह न तो व्यासपीठ की गरिमा के अनुरूप है, न ही एक धार्मिक मंच से दी जाने वाली कोई मर्यादित प्रतिक्रिया।
यह साफ किया जाना जरूरी है कि पंडाल पर चढ़ने को लेकर उठे सवालों का मकसद न तो ब्राह्मणों का विरोध है, न देवताओं का, और न ही संतों का। लोगों की आपत्ति केवल उस अनुचित प्रक्रिया और मर्यादा उल्लंघन को लेकर है, जिसमें देव डोलियों की मौजूदगी में पंडाल पर चढ़कर कार्य किया गया।
व्यास जी की टिप्पणी ने जहां आस्था से जुड़े सवालों को दरकिनार किया, वहीं देव संस्कृति की चिंता जताने वालों की भावना को धमकी भरे लहजे में दबाने की कोशिश भी सामने आई है। ऐसे शब्द न केवल अनुचित हैं, बल्कि इससे व्यास पीठ की मर्यादा पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
क्या कहती है परंपरा?
स्थानीय लोक मान्यताओं के अनुसार, देव डोलियों के विराजमान होने के बाद उनके ऊपर किसी भी तरह का निर्माण कार्य या चढ़ना-उतरना पूरी तरह वर्जित है। यह देव मर्यादा और लोक आस्था के विरुद्ध है। ऐसे में इस आयोजन में जो हुआ, उसने न केवल भावनाओं को ठेस पहुंचाई है, बल्कि भविष्य के आयोजनों की दिशा पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है।