Sunday , 1 June 2025
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सबसे बड़ा खुलासा : कौन बेच रहा पहाड़ियों की जमीनें, बिक चुकी 18 गांवों की 8870 नाली

बड़ा खुलासा: उत्तराखंड में जहां एक तरफ डेमोग्राफी चेंज जनसंख्या को लेकर हो रहा है। वहीं ,दूसरी ओर जमीनों की डेमोग्राफी में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। उत्तराखंड की जिन जमीनों पर कभी पहाड़ के लोगों का हक हुआ करता था। अब वह अपनी जमीनें दूसरे राज्यों से आए भू-माफिया के हाथों लीज पर गिरवी रख या बेचकर अपना हक खो चुके हैं। जमीनों के सहारे बदलती डेमोग्राफी राजस्व विभाग के दस्तावेजों और रिकॉर्ड में दर्ज है। सरकार के पास भी इसकी रिपोर्ट जाती ही होगी। लेकिन, सवाल यह है कि इस पर रोक क्यों नहीं लगाई जा रही है? यह बहुत गंभीर मामला है, जिस पर सरकार को संज्ञान लेना चाहिए और जमीनों की बदलती डेमोग्राफी को रोकने के लिए कारगर कदम उठाने चाहिए।

उत्तराखंड के लोग अपनी जमीनों को बाहरी लोगों को बेचकर खुद उनके नौकर बनने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे कई मामले पहले भी सामने आते रहे हैं, जहां लोगों ने अपनी जमीनें बेचकर दूसरे राज्यों से यहां बसे लोगों के बगीचों और होटलों में नौकरी कर रहे हैं। उन लोगों का भी पता लगाया जाना चाहिए, जो जमीनें बिकवा रहे हैं।

पहाड़ियों की जमीनें बेचने वालों को योजनाओं का लाभ

जमीनें बेचने और खरीदने के मामलों से एक और चिंता यह है कि जो लोग जमीन खरीद रहे हैं। वह पहाड़ों पर सरकारी योजनाओं के तहत सेब के बड़े-बड़े बागान लगा रहे हैं। सवाल यह है कि जिन पहाड़ के लोगों को एप्पल मिशन या दूसरी योजनाओं की फाइल पास कराने के लिए एड़ियां घिसनी पड़ती हैं, बावजूद आसानी से फाइल आसानी पास नहीं होती है। जबकि, बाहर से कुछ दिन पहले आए लोगों को सरकारी योजनाओं का तत्काल लाभ मिल रहा है। इसकी भी जांच होनी चाहिए।

  • पढ़ें BBC खबर के संपादक वरिष्ठ पत्रकार अनिल असवाल की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट…

पुरोला और बड़कोट तहसील के अन्तर्गत इन दिनों बाहरी राज्यों से आए लोगों द्वारा बड़ी मात्रा में भूमी खरीद–फरोख्त का काम बड़े स्केल पर किया जा रहा है। कुछ लोग एग्रो कंपनीयां बना कर तो कुछ व्यक्तिगत ही 28 से 30 सालों की लीज पर जमीनों की खरीद–फरोख्त कर/अधिग्रहण कर रहे हैं। जिससे स्थानीय स्तर पर भूमि की डेमोग्राफी बदलने के पुरे आसार नज़र आते दिख रहे हैं।

एक आंकड़े के अनुसार दो वर्षों में अभी तक करीब दो दर्जन गावों से लगभग 9 हज़ार नाली से भी अधिक भूमि की औने-पौने दामों पर खरीद-फरोख्त हो चुकी है। इस ख़रीद-फरोख्त में कुछ स्थानीय ग्रामीणों से लेकर राजस्व कर्मियों का भी भरपूर सहयोग खरीददारों को मिल रहा है।

राज्य में भू–कानून और मूल निवास की मांग यों ही नहीं उठ रही है। प्रदेश के कई गावों में औने पौने दामों पर भोले भाले ग्रामीणों की जमीनों को कौड़ियों के भाव खरीदा जा रहा है, जो काश्तकार जमीन बेचने को रजामंद नहीं हो रहा है तो उसको गांव के ही बिचौलियों के माध्यम से उस ज़मीन को 28 से 30 सालों की लीज में दिला कर उसका सौदा भी बनवा दे रहे हैं।

ग्रामीणों के अनुसार नौरी गांव में तीन केश तो ऐसे आए थे जिनको 3 नाली भूमि का भुगतान किया गया और रजिस्ट्री 15 नाली की कर डाली बाद में पता चलने पर विवाद की स्थिति को भांपते हुए अतिरिक्त हुई रजिस्ट्री कैंसिल करवा दी गई। इतना ही नहीं इस भूमि ख़रीद फरोख्त के लिए खरीददारों ने 80 से 90 प्रतिशत भुगतान भी कैश/ नगद धनराशि देकर ही किया जो अपने आप में प्रधानमन्त्री मोदी के काले धन पर रोक थाम को भी गलत ही साबित कर रहा है। अब लाख टके का सवाल ये उठता है की इतनी बड़ी मात्रा में ये पैसा किसका है और उसका श्रोत कहां है?

पुरोला, बड़कोट और मोरी तहसील के अन्तर्गत निम्न गांवों में खरीदी गई भूमी

1.नौरी गांव में लगभग 300 नाली भूमि खरीदी गई।

2.बीचला मठ गांव में लगभग 500 नाली भूमि खरीदी गई।

3. कोटला गांव लगभग 500 नाली भूमि खरीदी गई।

4. जखाली गांव लगभग 300 नाली भूमि खरीदी गई।

5. धौंसाली गांव लगभग 200 नाली भूमि खरीदी गई।

6. डिंगाड़ी गांव में लगभग 100 नाली भूमि खरीदी गई।

7. बियालि गांव में लगभग 750 नाली से भी अधिक।

8. कंडियाल गांव (बैइना) 250 नाली भूमि।

9. स्वील गांव में 1200 नाली भूमि 30 साल की लीज पर।

10. कुफारा 150 नाली भूमि लीज पर।

11. मैराना लगभग 70 नाली भूमि लीज पर।

12. सारीगाड़ 150 नाली भूमि लीज पर।

13.सरनौल गांव में भी लगभग 200 नाली भूमि अधिग्रहण किया गया।

14. ढोखरियाणी कंडीया लगभग 50 नाली भूमि।

15. कुमोला पूजेली लगभग 150 नाली भूमि।

16. खलाड़ी लगभग 500 नाली भूमि लीज पर।

17. देवरा /गेंचवाण गांव में लगभग 2000 नाली से अधिक भूमि बिक्री/लीज पर दे दी गई है।

18. पुजेली (भित्री) 1500 नाली भूमि बिक्री।

18 गावों में 8,870 नाली भूमि का अनुमानित अधिग्रहण

इसके अलावा भी कई गावों में भूमि अधिग्रहण कर लिया गया है यह आंकड़े तो उन गांवों के हैं ।जहां पलायन जीरो प्रतिशत है। और पूरी आबादी गांवों में ही निवास करती है। और इनका मुख्य व्यवसाय भी कृषि पर ही निर्भर है। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जिन गांवों से पलायन हो गया होगा। उन गांवों में भूमि की डेमोग्राफी क्या हो सकती है?

भूमि खरीदी फरोख्त में शामिल कंपनियां

  • गुडविन एग्रो फॉर्म।

  • दारिमा ऑर्गेनिक फॉर्म लिमिटेड।

  • कनक एग्रो फॉर्म।

  • आईजी इंटरनेशनल।

  • आर्चिड प्राइवेट लिमिटेड।

इंडो डच सहित कई अन्य फॉर्म और लोग भी इस कार्य में बड़े पैमाने पर लगे हैं। वहीं, गुडविन एग्रो फॉर्म ,दारिमा ऑर्गेनिक फॉर्म लिमिटेड, कनक एग्रो फॉर्म के परामर्शदाता दीपक पोखरियाल का कहना है की उन से संबंधित कंपनियों ने उत्तराखंड में कई जगह भूमि अधिग्रहण की है और इस पर पूरी तरह ऑर्गेनिक रूप से फलों का उत्पादन किया जायेगा। और छेत्र में उनके आने के बाद स्थानीय स्तर पर लोगों को रोज़गार भी मिल रहा है।

आईजी इंटरनेशनल के निर्मल सिंह का कहना है कि उनके बाग में लगने वाले नासपति, सेब और कीवी की किस्म बिलकुल अलग और गोपनीय है, जो आनुवांसिक तकनीकी (जैनेटिक इंजीनियरिंग तकनीकि से तैयार किस्म) से की गई है।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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