Friday , 25 April 2025
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ये है “रामजीवाला” बने मियांवाला का इतिहास…मुस्लिमों से दूर-दूर तक नहीं नाता

धामी सरकार ने नाम उन्होंने खेल खेला, लेकिन चाल उलटी पड़ गई। अब इतिहास उनकी ही भावनाओं से एक नया खेल रच रहा है—ऐसा खेल, जिसमें उनके अपने ही कदम भारी पड़ने लगे हैं। उनके सलाहकारों की नसीहतें अब धामी उनको चुभते तीरों की तरह महसूस हो रहे होंगे और इतिहास उन्हीं पर उल्टा वार कर रहा है! 15 जगहों के नाम बदलने का ऐलान करके सरकार ने जैसे “इतिहास को नया मेकओवर” देने का फैसला कर लिया। सबसे ज्यादा बवाल “मियांवाला को रामजीवाला” बनाने पर हो रहा है। सरकार कह रही है कि “स्थानीय भावनाओं और सांस्कृतिक विरासत को ध्यान में रखते हुए” ये फैसला लिया गया, लेकिन सच यह है कि नाम बदलने से इतिहास नहीं बदल जाता।

हमारे भी एक मियां गुरू जी थे। तब हम छोटे थे—ना हिंदू-मुसलमान का भेद समझ में आता था, ना ही समाज को जाति-मजहब के चश्मे से देखने की शिक्षा मिली थी। मियां गुरू जी की जाति या पहचान के बारे में कभी सोचा भी नहीं। बस वे हमारे गुरू थे, ज्ञान देने वाले, मार्गदर्शन करने वाले।

उत्तरकाशी जिले के नौगांव विकासखंड के नंदगांव में आज भी गुलेरिया और मियां बसे हैं। गुलेरिया भी हमारे गुरूजी रहे। लेकिन आज, जब मियांवाला नाम पर बहस छिड़ी है, तो अचानक वे दोनों गुरू फिर से याद आ गए—बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी विवाद के, बस अपने ज्ञान और सिखावन के साथ।

 

साभार…वरिष्ठ पत्रकार  शीशपाल गुसाईं 

अब ज़रा पीछे चलते हैं—हिमाचल की गुलेर रियासत और गढ़वाल-टिहरी के वैवाहिक और सांस्कृतिक संबंधों का लंबा इतिहास रहा है। गुलेरिया लोग टिहरी के राजघराने से जुड़े थे और “मियां” उपाधि सम्मान के तौर पर मिली थी। यह कोई जाति नहीं थी, बल्कि गुलेरिया परिवार का पहचानचिह्न थी। लेकिन, साहब! सरकार को इतिहास से ज्यादा नाम बदलने की चिंता है। “नाम बदलकर पहचान मिटा दो”—बस यही खेल खेला जा रहा है। सवाल यह है कि अगर नाम मियांवाला इसलिए रखा गया था क्योंकि वो गुलेरिया राजपूतों की जागीर थी, तो आज इसे रामजीवाला बनाने की तुक क्या है? कोई बताएगा?

1709 से लेकर 1772 तक गढ़वाल के राजा प्रदीप शाह ने यह जागीर गुलेरिया लोगों को दी थी। “डूंगा जागीर” की तरह यह भी एक ऐतिहासिक जागीर थी, जो बाद में धीरे-धीरे खत्म हो गई। अब सरकार इसे रामजीवाला बनाकर “इतिहास की लाश पर राजनीति” कर रही है। नाम बदलने से क्या गुलेरिया लोग मिट जाएंगे? या फिर सरकार को लगा कि “मियां” नाम सुनते ही वोटर भ्रमित हो जाएगा? इतिहास नाम बदलने से नहीं, पहचान से बनता है। सरकार को संस्कृति बचानी है या फिर असली मुद्दों से ध्यान हटाकर जनता को नामों में उलझाना है?

आज मियांवाला का नाम बदलकर रामजीवाला कर दिया गया। कल को कोई नई सरकार आएगी और बोलेगी, “रामजीवाला नाम अंग्रेजों की साजिश थी, इसे हनुमानपुर कर देते हैं!” फिर कोई दूसरी सरकार आएगी और कहेगी, “हनुमानपुर से अच्छा है ‘संस्कृति नगर’!” तो साहब, नाम बदलते रहेंगे, लेकिन इतिहास वही रहेगा। यह जनता की यादों में रहेगा, किताबों में रहेगा, और शायद सरकार की गलतियों की लिस्ट में भी!

  • क्या नाम बदलने से विकास हो जाएगा?

  • क्या सरकार बेरोजगारी, महंगाई, और भ्रष्टाचार के मुद्दे भी नाम बदलकर सुलझाएगी?

जो भी हो, नाम बदलने की राजनीति चरम पर है, लेकिन इतिहास हमेशा ठेंगा दिखाएगा! 

-प्रदीप रावत  ‘रवांल्टा’ 

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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