-कोयले की कोठरी में हीरा है गणेश गोदियाल।
-चैंबूर में केले बेचे, दिहाड़ी की और जब कमाया तो गांव लौट गया।
-पहाड़ नहीं छोड़ा, डेयरी खोली, रोजगार दिया और पहाड़ आबाद करने में जुटा रहा।
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वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला
भाजपा नेता रवींद्र जुगरान कल पौड़ी लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार गणेश गोदियाल पर व्यक्तिगत तौर पर खूब बरसे। उनकी शिक्षा आदि पर सवाल उठाए। मैं भी रवींद्र जुगरान से पूछना चाहता हूं कि देहरादून में रहते हुए वह कितने दिन पहाड़ जाते हैं? कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी की आय से अधिक संपत्ति के संबंध में आप चुप रहे।
विधानसभा बैक डोर भर्ती मामले में कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की भूमिका के मामले में आप चुप रहे। भाजपा नेता विनोद आर्य के पुत्र पुलकित आर्य द्वारा अंकिता भंडारी हत्याकांड के मामले में चुप रहे। जोशीमठ की दरारों पर चुप रहे। देहरादून को कंकरीट के जंगलों में बदलने वाले मास्टर प्लान पर चुप रहे। नगर निगम में भ्रष्टाचार पर चुप रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, स्मृति ईरानी और रमेश पोखरियाल की डिग्रियों पर भी चुप क्यों रहे?
मैं दिसम्बर 2017 में गणेश गोदियाल से पहली बार मिला था। मैंने उस व्यक्ति के जीवन संघर्ष को जानने की कोशिश की। एक बेहद ही गरीब परिवार में पैदा हुआ बेटा छोटी सी उम्र में अपने परिवार की गुजर-बसर के लिए मुंबई जा पहुंचा। चैंबूर के चौराहे पर केले बेचे, दिहाड़ी की। गुजरात के वापी में कई बार भूखे पेट सोया। जब कुछ धन कमाया तो वापस गांव लौट गया। डेयरी खोली और ग्रामीणों को रोजगार दिया।
सड़क से सत्ता तक सफर तय किया। जहां तक मैं उत्तराखंड के नेताओं को जानता हूं, उनमें गोदियाल सबसे अधिक ईमानदार हैं। उस व्यक्ति ने 2016 में भी अपना ईमान नहीं बेचा, जब कांग्रेस तोड़ने के लिए 15 से 25 करोड़ मिल रहे थे। इतने से आधे में तो विभीषण भंडारी ने कपड़े तक नहीं बदले और पार्टी बदल दी। इससे दुगनी आफर गणेश को थी, लेकिन, उसने फिर ठुकरा दी।
बीकेटीसी अध्यक्ष के तौर पर केदारनाथ मंदिर में सोना लगाने की आफर गोदियाल को भी थी। लेकिन उन्होंने मना कर दिया कि यह टैक्स की चोरी है। भाजपा सरकार ने बीकेटीसी अध्यक्ष पद से हटाने के लिए गणेश को खूब परेशान किया।
उन्हें अपने घर तक बेचना पड़ा लेकिन वह झुके नहीं। केदारनाथ आपदा के बाद उन्होंने बीकेटीसी को संवारने में भी बहुत बड़ा योगदान दिया। पिछले सात साल में गणेश गोदियाल ने सत्ता से सबसे अधिक सवाल किये हैं। अंकिता भंडारी से लेकर भ्रष्टाचार के खिलाफ खूब सवाल उठाए हैं।
मैं नहीं जानता कि गणेश इस चुनाव में हारे या जीते। परिणाम क्या रहेगा? लेकिन मैं यह जानता हूं कि उत्त्तराखंड की राजनीति में कोयले की कोठरी में हीरा है। वह योद्धा है, पहले परिवार को पालने के लिए लड़ा और अब पहाड़ बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। एक पत्रकार को निष्पक्ष रहना चाहिए इसके बावजूद मेरा मन करता है कि मैं यदि गढ़वाल का वोटर होता तो निश्चित रूप से गणेश को ही वोट देता।