नेता एकम नेता
नेता दूनी धोखेबाज
नेता तियां तिकड़मबाज
नेता चौके चार सौ बीस
नेता पंजे पव्वाफेक
नेता छक्के छैलछबीला
नेता सत्ते सत्ताधारी
नेता अट्ठे अठकलबाज
नेता निमां नमक हराम
नेता दशम देश के दुश्मन
तकरीबन 28 साल पहले नेता का पहाड़ा सुना था। तब मैं प्राइमरी में था। कोई तीसरी-चौथी क्लास रही होगी। हर शनिवार मध्यान्ह भोजन के बाद ढाई-तीन घंटे की बाल सभा होती थी। पेड़ के नीचे, क्लास के बरामदे में या सर्दी के मौसम में खुले आसमान के नीचे। टीचर के डायरेक्शन में सभा का संचालन सीनियर और एक्टिव छात्र-छात्राएं करते थे।
गीत, कविता, ग़ज़ल, छन्द, चौपाई, दोहे, मुक्तक, प्रसंग, पहेली, चुटकुले, व्यंग्य, लघुकथा, किस्सागौई सुनाने की होड़ रहती थी। हुनरमंद बच्चों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती थी। नाच-गाना भी होता था, लेकिन कम। रिकॉर्डिंग डांस का चलन तो बिलकुल भी नहीं था। ढोलक और हारमोनियम पर कुछ छात्राएँ गीत, लोकगीत गाती थीं, बच्चों के सामने दरी पर कुछ लड़कियाँ डांस करते हुए थिरकती थीं।
इधर-उधर से जुगाड़ करके खास तौर पर लड़कियाँ इस बहाने सज-धज लेतीं थीं। उन्हें देखने के लिए स्कूल के बच्चों में एक उमंग भरी छटपटाहट रहती थी। गाँव और कस्बों के स्कूलों में तब यह सारी गतिविधियां मनोरंजन का खास साधन थीं। तरह-तरह का स्वांग रचकर हास्य-व्यंग्य के कार्यक्रम भी बच्चे खूब करते थे। नकल उतारने और जोकरी करने वाले छात्रों की खूब पूछ होती थी। शनिवार के दिन का तब हम सब बेसब्री से इंतजार करते थे।
बाल सभा में शामिल होने के लिए बच्चे सप्ताह भर पहले ही अपने क्लास टीचर को नाम लिखा देते थे। यह पहाड़ा मैंने किसी बाल सभा में सीनियर छात्र से सुना था। अगले दिन मैंने उससे एक कागज पर लिखवाकर अपने पास रख लिया। कई साल बाद गणित की पुरानी कापी में उतार दिया। आठवीं में आते तक डायरी मिल गयी थी मुझे, इस पहाड़े को उसमें दर्ज किया। वास्तव में नेताओं का जो चरित्र इस पहाड़े में उभरा है, चुनावबाज नेताओं की हरकतें इससे जुदा नहीं हैं।
ऐसा लगा जैसे यह दस विशेषताएं नेता बनने की पहली शर्त हैं। जनता की दुर्दशा देखकर बचपन से ही चुनावबाज पार्टियों और नेताओं के खिलाफ गुस्सा रहता था। बड़े होने पर यह गुस्सा नफरत में बदल गया। लेकिन पत्रकारिता में आने के बाद से पिछले 18 साल से इन नेताओं से दो-चार होना आम है। एक भी नेता ऐसा न मिला जो दिल में कुछ जगह बना पाता और पहाड़े के पूर्वाग्रह से उपजी इमेज को तोड़ पाता।
हालांकि नेता और जननेता में फर्क होता है। जननेता जननायक होता है और ऐसे नेता कम ही पैदा होते हैं। जननायक की जरूरत हमेशा रहेगी। आज पुरानी डायरी पलटते वक्त स्मृति ताजा हुई। सोचा आपके बीच शेयर करूँ। वैसे नेताओं की धूर्तता के नजारे तो इन दिनों सरेआम हैं!
- वरिष्ठ पत्रकार रुपेश कुमार सिंह