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हमारे गौरव : पढ़ें प्रसिद्ध साहित्यकार महावीर रवांल्टा का ये लेख, कौन थे डिंगाड़ी गांव के खेमचंद?

  • महावीर रवांल्टा

उतरकाशी जनपद में विकासखंड नौगांव का अंतिम गांव है सरनौल। बड़कोट से राजगढ़ी होकर सरनौल के लिए सड़क मार्ग है। बड़कोट से राजगढ़ी 18 किमी दूर है। वहां से सरनौल 21किमी पड़ता है। बताते हैं कि गोरखा शासनकाल (सन् 1803-1815 ई)से पहले राजगढ़ी का पहाड़ ‘ढोल डांडा’ के नाम से प्रसिद्ध था। इस पहाड़ के दोनों ओर की पहाड़ियों पर ढोलू भड़ का राज्य था, जिसका गढ़ संभवतः डांडे के ऊपर विलुप्त उनाला गांव के पास था। 15वीं ई में इस क्षेत्र का गढपति रावत जाति का ठाकुर था, जिसका अंतिम वंशज जीताण रावत हुआ, जिसका अधिपत्य 17वीं ईसवी में था। इसके क्षेत्र में दो गढ़ थे-पहला नंगाणगांव के समीप व दूसरा टटाव के समीप। इन्हीं गढ़पतियों द्वारा प्रशासित क्षेत्र को ठकराल पट्टी का नाम भी दिया गया।

गोरखा आक्रमण के बाद उसके प्रशासकों ने ढोल डांडे के अग्र समतल स्थल पर एक किले का निर्माण किया और इसका नाम ‘गोरखागढी’ रखा।जनश्रुतियों के अनुसार इसका निर्माण वहां के निकटवर्ती ग्रामीणों से ही कराया गया था। इस गढ़ी में डेढ़-दो सौ गोरखा सैनिक तैनात रहते थे और उन्हीं के द्वारा रवांई क्षेत्र पर शासन चलता था। सन् 1815 ई के बाद टिहरी रियासत द्वारा गोरखागढी का नाम बदलकर ‘राजगढ़ी’ रखा गया। राजगढ़ी टिहरी रियासत के समय रवांई परगने का मुख्यालय बना रहा। परगना मजिस्ट्रेट, तहसील, कानूनगो, पुलिस थाना कार्यालय एवं आवासीय भवनों का यहां निर्माण कराया गया। सन् 1972 ई में यहां से तहसील को बड़कोट स्थानांतरित कर दिया गया।

वर्तमान में राजगढ़ी में राजकीय इंटर कालेज,पशु चिकित्सालय, राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय, एलोपैथिक चिकित्सालय, डाकघर, पुलिस चौकी व केन्द्रीय विद्यालय के अलावा कुछ दूसरे सरकारी कार्यालय भी संचालित हो रहे हैं।एकदम ऊंचाई पर बसे राजगढ़ी को ठकराल पट्टी का हृदयस्थल कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सरनौल से आगे उतर की ओर चलने पर खिमत्रा से दूसरे क्षेत्र की शुरुआत हो जाती है जिसे बडियार कहा जाता है। बडियार एक अलग पट्टी है जो पुरोला विकासखंड के अंतर्गत आती है, लेकिन पुरोला तक पहुंचने के लिए यहां के वासियों को लगभग 25 किमी का चढ़ाई-उतराई का जंगली रास्ता तय करना पड़ता है, जिस पर जंगली जानवरों का भय भी बना रहता है।

संपूर्ण बडियार क्षेत्र तीन ग्राम पंचायतों में बंटा हुआ है-सर,पौंटी व किमडार।पौंटी ग्राम पंचायत में गौल, छानिका,पौंटी किमडार में कसलौं व किमडार जबकि सर ग्राम पंचायत में डिंगाड़ी,सर व ल्यौटाड़ी गांव आते हैं। ‘बडियार गाड़’ से प्रसिद्ध केदार गंगा जो केदारकांठा से निकलती है तथा ढिरगा से निकलने वाली ‘हलटी गाड़’ यहां की प्रमुख नदियां हैं।विमी तोक में इनका संगम होता है।’छांदी गाड़’ यहां बहने वाली एक और नदी है। नौगांव विकासखण्ड के अंतिम गांव सरनौल राजगढ़ी से लगभग 21 किमी दूर है। वहां से डिंगाड़ी की दूरी लगभग 7 किमी है। लेकिन सरनौल से पहले गंगराली से मराड़ी तक 6 किमी का सड़क मार्ग का निर्माण हो चुका है और उस पर छोटे वाहन भी दौड़ने लगे हैं। मराड़ी से डिंगाड़ी तक अब सिर्फ 2.5 किमी पैदल दूरी तय करनी पड़ती है।

30 मई सन् 1930 ई को टिहरी रियासत की ओर से दीवान चक्रधर जुयाल के इशारे पर की गई हिंसक कार्यवाही का साक्षी ‘तिलाड़ी काण्ड’ इतिहास में ‘छोटा जलियांवाला बाग काण्ड’ के नाम से जाना जाता है। बड़कोट के समीप तिलाड़ी के मैदान में एकत्रित निहत्थे लोगों पर टिहरी रियासत के सैनिकों ने गोलियां चलाकर जिस क्रूरता का परिचय दिया था।  वह गढ़वाल के इतिहास में काले अध्याय के रुप में दर्ज हुआ। इतिहास में ऐसे बहुत ही कम उदाहरण देखने को मिलते हैं। रियासत के खिलाफ आन्दोलन ‘ ढंडक’ में शामिल रहे आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ मुकदमे चलाकर उन्हें एक से बीस वर्ष तक की कारावास की सजा के साथ ही अर्थदंड भी दिया गया था। इनमें से अनेक आन्दोलनकारी कारावास की सजा काटते हुए जेल में ही मृत्यु का ग्रास हो गए। समाजसेवी जोत सिंह रवांल्टा के अथक प्रयास के कारण इन्हें तिलाड़ी शहीद घोषित किया गया एवं सन् 1957 ई में आन्दोलनकारियों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा मिला।इतना ही नहीं उनकी प्रार्थना पर सन् 1962 ई में उतर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रभान गुप्त ने स्वयं तिलाड़ी के मैदान में पहुंचकर वीर तिलाड़ी शहीद स्मारक का उद्घाटन भी किया था।18 अप्रैल सन् 1984 ई में उन्ही के प्रयास से जिला स्तर पर 30 मई को ‘तिलाड़ी शहीद दिवस’ के लिए अवकाश की स्वीकृति मिली थी।

टिहरी रियासत के खिलाफ आंदोलन में जो लोग सक्रिय रहे उनमें डिंगाड़ी गांव के खेमचंद भी शामिल थे। इनका जन्म सन् 1883 ई में हुआ था। इनकी पत्नी का मायका ओसला गांव से था। खेमचंद के दो पुत्र हुए लाल चन्द और गुलाब सिंह रावत।बड़े पुत्र लाल चन्द के भी दो ही पुत्र हुए-पूरण सिंह और बिजेन्द्र सिंह।पूरण सिंह का विवाह डिंगाड़ी गांव के ही जीवा सिंह की पुत्री सोवन देई के साथ हुआ था। इनका एक पुत्र चरण सिंह और पांच पुत्रियां-ऐलमी,संतोषी,भवानी, धीरज व नीरज हैं जिनका विवाह कंडियाल गांव,सर, डिंगाड़ी,गौल में हुआ है, जबकि नीरज फिलहाल अविवाहित है।चरण सिंह उर्फ सीटू का विवाह मोल्टाड़ी गांव के त्रेपन सिंह की पुत्री विनीता के साथ हुआ है तथा इनकी दो पुत्र व दो पुत्रियां हैं। बिजेंद्र सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं।

स्पेशल पुलिस फोर्स में सेवारत रहे ग़ुलाब सिंह रावत का विवाह ल्यौटाड़ी गांव की मानी देवी के साथ हुआ था।इनका एक पुत्र हुआ -जगमोहन सिंह रावत।जगमोहन सिंह का विवाह पौंटी गांव ‌‌के साधु सिंह की पुत्री सुमन देई के साथ हुआ है।इनके तीन बच्चे आयुष,आशा और भारत हैं। सूचना विभाग,उतर प्रदेश, लखनऊ द्वारा सन् 1970 ई में ठाकुर प्रसाद सिंह के संपादन में प्रकाशित पुस्तक ‘स्वतंत्रता संग्राम के सैनिक'(संक्षिप्त परिचय)भाग-१४ गढ़वाल डिवीजन (जिला उतरकाशी, चमोली, टिहरी गढ़वाल और पौड़ी गढ़वाल)के पृष्ठ संख्या 4 पर उनका उल्लेख इस प्रकार है- ‘जन्म सन् 1883 में। ग्राम डिंगाड़ी,पट्टी बडियाड, उतरकाशी। जन आन्दोलन में भाग लेने के कारण 1 वर्ष कैद और 100 रुपया जुर्माने की सजा पायी।’

इस प्रकार सुदूरवर्ती बडियार क्षेत्र के डिंगाड़ी गांव के खेमचंद रावत का नाम राजशाही के खिलाफ आन्दोलन में सक्रिय हिस्सेदारी के लिए दर्ज होना यहां के वासियों के बहुत ही सम्मान की बात है।  लेकिन, जानकारी के अभाव में हम अपने गौरवशाली अतीत से वंचित हैं, लेकिन जब भी तिलाड़ी कांड से जुड़े ढंडक और ढंडकियों का नाम लिया जाएगा खेमचंद जैसे लोग प्रमुखता से याद किए जाएंगे।

महावीर रवांल्टा
संभावना-महरगांव,
पत्रालय-मोल्टाड़ी,पुरोला,
उतरकाशी(उत्तराखंड)-249185
मो-8894215441,6397234800
ईमेल: ranwaltamahabeer@gmail.com

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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