Thursday , 21 November 2024
Breaking News

महावीर रवांल्टा की कविताएं : पहाड़ और उससे जुड़े आम जन-जीवन से दीप्त कविता संसार

  • डॉ. वेद मित्र शुक्ल

महावीर रवांल्टा एक कवि होने के साथ एक नाटककार, कथाकार, शोधकर्ता और बालसाहित्यकार भी हैं| इन सभी क्षेत्र में उनकी प्रकाशित कृतियां हैं| रंगकर्म में बहुत समय से सक्रिय रहते हुए उन्होंने रंग लेखन, अभिनय, निर्देशन, नाट्यशिविर आयोजन आदि जैसे साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में भी भाग लिया है| बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी महावीर रवांल्टा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वो लोक से जुड़े रचनाकार हैं| उनके किसी प्रकार के भी साहित्य में लोकजगत की पहचान सरलता से की जा सकती है| लोक से जुड़कर साहित्य-संसार को बहुत कुछ दिया जा सकता है| महावीर रवांल्टा जी द्वारा साहित्यिक-सांस्कृतिक स्तर पर किये गए योगदान को इसी रूप में देखा जाना चाहिए| रवांल्टी परिवेश से मिले अनुभवों को उन्होंने बड़ी सुंदरता से अपनी रचनाओं में संजोया है| तुम कहाँ को चल पड़े? और आकाश तुम्हारा होगा उनके मह्त्वपूर्ण कविता संग्रह हैं| साथ ही, छपराल रवांल्टी कविताओं का संग्रह है| इस संग्रह की खास बात यह है कि इसमें सभी कविताओं का हिंदी अनुवाद भी संजोया गया है|

तुम कहाँ को चल पड़े? कविता संग्रह में ली गई रचनाएँ कवि महावीर रवांल्टा के शुरूआती दिनों की हैं जिसकी अनुशंसा सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दर लाल बहुगुणा जी द्वारा की गई है| महावीर जी पहाड़ी संस्कृति के कवि हैं| उनकी कविताओं के द्वारा रवांल्टी परिवेश को सहजता से पहचाना जा सकता है| इस कड़ी में “नमन,” “पत्थर की मूरत,” “दीवाली,” “हिमालय,” “गढ़वाल हमारा,” “सावन,” “गंगनानी का मेला” आदि रचनाएँ पढ़ी जा सकती हैं| दूसरे शब्दों में कहें तो लगभग सारी ही कविताएँ पहाड़ की दुनिया से जुड़ी हुई हैं

असल में यह पुस्तक एक स्थान विशेष से जुड़ी तमाम स्मृतियों को समर्पित हैं और वह स्थान प्रकृति की गोद में बसा सरनौल है|अपने समय से संवादरत कविताओं वाला कविता संग्रह आकाश तुम्हारा होगा: महावीर जी का यह 54 कविताओं का संग्रह है| महावीर रवांल्टा जी ने सभी कविताएँ गद्यछंद में लिखी हैं| संग्रह की शीर्षक कविता “आकाश तुम्हारा होगा” भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुन्दर दुनिया की जद्दोजहद में रत मनुष्यता की कविता है| कई प्रकार की समस्याओं से युक्त जीवन में आशाएं बनी रहें यह बहुत ही चुनौती पूर्ण है| इसके बावजूद कवि आशावान रहता है| सच में, व्यंग्य गूढ़ होता है| इस कविता में व्यंग्य से उपजे उसी गूढ़ अर्थ से गुजरना होता है| कवि कहता है:

बच्चो! तुम रोना नहीं

हम लायेंगे तुम्हारे लिए

यादगार खिलौने

और दिल्ली का अनुभव

बच्चो! तुम रोना नहीं

… …. …

हमें नहीं था पता

जंगल से बदतर

जंगलराज में जी रहे हैं हम

पहाड़ में रहकर

रीख, बाघ से हम नहीं डरे

यहाँ इंसानी आदमखोर

रातभर

हमें मारने के लिए गुर्राते रहे

लेकिन तब भी हम नहीं डरे (पृ. 75-76)

प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि मूल्यहीनता से ग्रस्त महानगरों पर बहुत बड़ा प्रश्न उठा रहा है| व्यवस्थागत नियम-कानूनों की डींगें हांकने वाले से बेहतर गाँव और प्रकृति के बीच पहाड़ आदि पर बसे लोग हैं क्यों कि वहाँ अभी भी बहुत हद तक मनुष्यता और मूल्य बोध बाकी हैं|

वैविध्यपूर्ण कथ्यों से युक्त कविता संग्रह में समकालीन समय और समाज से जुड़ते हुए विषयों पर ही कविताएँ आधारित हैं| प्रकृति, महानगर, बच्चे, स्त्री, मानवीय संबंध, राजनीति, युद्ध, प्रेम, कविता, माँ, पिता आदि-आदि विषयों पर भावपूर्ण कविताएं इस संग्रह में पढ़ी जा सकती हैं| प्रेम से युक्त संबंधों के मनोविज्ञान को समझना और समझाना आसान नहीं है| यह संवेदनशील कवि के माध्यम से कुछ हद तक संभव अवश्य है| इसी प्रसंग के साथ महावीर रवांल्टा जी की एक छोटी-सी कविता “प्रेम” शीर्षक से उद्धृत है:

बढ़ती हुई घास की तरह

वे परस्पर

उलझते गए

लेकिन बड़े होते ही

पेड़ों की तरह

अलग-अलग सीधे होने लगे (पृ. 45)

प्रकृति के माध्यम से प्रेम के मनोविज्ञान की बड़ी ही आकर्षक अभिव्यक्ति प्रस्तुत कविता में देखने को मिलती है| एक अन्य छोटे आकार की कविता “कमीज” है| इस कविता में कवि मेहनत-मजदूरी की असली कीमत बताते हुए कहता है कि –

मैंने पसीने से तर

कमीज को

निचोड़ना चाहा

लेकिन क्या देखता हूँ कि

खून का

एक-एक कतरा निकल रहा है (पृ. 12)

प्रस्तुत कविता में कवि यह बता देने का प्रयास कर रहा है कि शारीरिक श्रम करते हुए अपने जीवन को खपाना होता है, और ऐसे में श्रम की कीमत को आदरपूर्वक जानना चाहिए| श्रम की महत्ता को कवि ने सलीके से कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया है|

इस संग्रह में अलग-अलग मिजाज की कविताएँ हैं जो पाठक को आकर्षित करने में सक्षम हैं| इस कड़ी में “इंतजार” शीर्षक से कुछ कविताएँ पढ़ी जा सकती हैं| पहली कविता में चाय की प्याली के द्वारा ज़िंदगी में व्याप्त एकरसता को बखूबी मापा गया है| कवि ने लिखा है:

सुबह चाय की प्याली में

उगा सूरज

सारा दिन समेटे

संध्या आगमन से पहले

छोड़ जाता है मुझे अकेला

बिल्कुल अकेला

और फिर

आरम्भ हो जाता है इन्तजार

अगली चाय की प्याली का (पृ. 51)

निष्कर्षतः आकाश तुम्हारा होगा कविता-संग्रह के बारे में कह सकते हैं कि परिवेशगत अनुभवों से उपजी कविताएं वैविध्यपूर्ण हैं और साथ ही, अपने समय से संवादरत हैं|

छपराल: समकालीन रवांल्टी कविताओं का कविता संग्रह: महावीर रवांल्टा कृत छपराल रवांल्टी कविताओं का संग्रह है| आज जब अनेक भाषाएँ लुप्त होने के कगार पर हैं तब ऐसे समय में कविता संग्रह छपराल न केवल आशा की किरण के रूप में बल्कि प्रेरणापुंज के रूप में पाठकों के समक्ष है|  रवांल्टी भाषा में रचनाएँ और साथ ही उनके हिंदी अनुवाद इस पुस्तक को खास बनाती हैं| उनतालीस कविताओं के संग्रह में जीवन बोध और युग बोध दोनों का सुन्दर समन्वय है| “अब तो” शीर्षक से यह कविता दृष्टव्य है:

अब तो न पिट्ठी

न मंडुवे, चावल का आटा

न जौ का आटा

न लांगडा-लिमड़ा

अब तो बस

बर्गर-पिज्जा

चाउमिन-मोमो

और मोबाइल के कारण झुकी

कमर (पृ. 20)

“नीचे” कविता पढ़ते हुए रवांल्टी परिवेश व समाज सामने आ जाता है| ‘नीचे-नीचे’ यानी शहर और ‘ऊपर’ यानी गाँव है| यही पहाड़ की भाषा है| पहाड़ से जो जुड़े हैं उनकी बहुत पुरानी समस्या है जो कुछ इस प्रकार से प्रायः व्यक्त की जाती है कि “जवानी और पानी पहाड़ पर कभी नहीं रुकते|” इस पलायन की समस्या को “नीचे” शीर्षक से कविता में अच्छे से व्यक्त किया गया है:

नीचे-नीचे (शहर की ओर)

क्यों

सरक रहे हो

अरे! ऊपर (गाँव की ओर) आओ

घर

सारे मकान ढह …

महाबीर रवांल्टा जी जैसी रचनाधर्मिता बहुभाषी और वैविध्यपूर्ण परिवेश से युक्त भारत के लिए अतिआवश्यक है| फिलहाल, यह बात तो तय है कि महाबीर रवांल्टा जी की कविताओं में पहाड़ और उससे जुड़ा आम जन-जीवन पूरी सजगता के साथ दीप्त होता देखा और पढ़ा जा सकता है|

संदर्भ:

छपराल- देहरादून: समय साक्ष्य, 2021.

आकाश तुम्हारा होगा- हरियाणा: सुकीर्ति प्रकाशन, 2011.

तुम कहाँ को चल पड़े?- हरियाणा: सुकीर्ति प्रकाशन, 2014.

(नोट : लेखक – डॉ. वेद मित्र शुक्ल, अंग्रेजी विभाग, राजधानी महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय, राजा गार्डन, नई दिल्ली में  कार्यरत हैं.) 

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

Check Also

उत्तराखंड : महावीर रवांल्टा को मिलेगा केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का प्रतिष्ठित ‘श्री रघुनाथ कीर्ति सेवा सम्मान’

देहरादून: प्रसिद्ध साहित्यकार उत्तराखंड साहित्य गौरव महावीर रवांल्टा को एक और बड़ा सम्मान मिलने जा …

error: Content is protected !!