हांं तो साहिबान, मेहरबान, कदरदान…
मौत का खेल है,मौत का कमाल है ! अमरीका न जापान है,ये तो हिंदुस्तान है. दवाई नहीं आइडियाओं की मार है,कोरोना का वाइरस भी हैरान-परेशान है. दुनिया के बड़े-बड़े वैज्ञानिकों की क्षुद्र बुद्धि में जो आ न सका, वह आइडिया भारत देश में जन्मा है. कोरोना के लक्षणों पर शोध करते रहें,वैज्ञानिक. हमने तो कोरोना की कमजोरियाँ समझ ली हैं. और चूंकि कोरोना की कमजोरियाँ हमारी मुट्ठी में हैं तो हम उसे उसकी कमजोरियों से ही घेर कर मार डालेंगे !
और ये कमजोरियाँ किसने खोजी,अजी ! उन्होंने ही जिनके आगे सारा गणित -विज्ञान पानी भरता है,जिनकी जुबान से निकला तीर अचूक ठहरता है,नाले की गैस से खाना बनता है . हमारे अपने भाषण वारियर,न….न…न वारियर नहीं भाषण सेनापति,भाषण नायक,भाषण अधिपति, भाषण भीष्म,भाषण पितामह, भाषण परपितामह ने. देश ही नहीं पूरी दुनिया कोरोना के सामने हतप्रभ,लस्त-पस्त दिख रही हो और तब आप हर तीसरे दिन भाषण में नया आइडिया ले कर आते हैं तो ये उपाधियाँ तो तुच्छ हैं,भाषण शिरोमणि आपकी प्रतिभा के सामने !
लॉक डाउन में लोग सोशल मीडिया में साड़ी चैलेंज से उकता जा रहे हैं,छाछ भी कभी दही थी-छाप मंत्राणी की अंताक्षरी से भी दिल भर गया. थोड़ा हिन्दू-मुसलमान ने एकसाईटमेंट तो पैदा किया पर सड़क पर उतर कर दंगा करने की छूट न होने से वह भी कोल्ड ड्रिंक की बोतल खुलने पर उठने और फिर नीचे जाने वाली गैस की तरह बैठ जाएगा. फिर किया क्या जाये ! समय बिताने के लिए करना है,कुछ काम. वैसे भी हम तमाशा प्रिय,तमाशा प्रधान देश हैं. इसलिए तमाशा प्रधान देश में प्रधान तमाशाई नित नए तमाशे ले कर आ जाते हैं. बाकी कुछ हो न हो पर तमाशे और एंटरटेनमेंट में कोई कमी हो तो बताओ !
और जैसा पहले कहा,ये तमाशे कोरोना की कमजोरियों का रहस्योद्घाटन हैं. पहले दिन थाली,घंटे,घड़ियाल बजवाये थे ना ! क्यूँ बजवाये ? क्यूंकी कोरोना कान का कच्चा है. हर बड़ा आदमी कान का कच्चा होता है ! कोरोना वाइरस है तो क्या हुआ,है तो वर्ल्ड लेवल का ! इसलिए वाइरस हो कर भी वह अपरंपार हो गया ! ऐसा बड़ा होने के कारण वह बड़े आदमियों की तरह कान का कच्चा भी हो गया. अतः कान के कच्चे से निपटने के लिए प्रधान तमाशाई ने उसके कच्चे कानों पर प्रहार का तमाशा ईजाद किया. घंटे-घड़ियाल बज उठे,शंख-भंकोरे सप्तम सुर में चिंघाड़ उठे. और कोरोना दोनों कानों को हाथ से भींचने लगा ! दुनिया भर की दवाइयों और इंजेक्शन के सामने अकड़ कर खड़ा करोना,इस आतर्नाद को सह न सका. लंबलेट हो गया,दंडवत हो गया-हे प्रधान तमाशाई बस यह तमाशा बंद कर दो,मेरे छोटे-छोटे कान फटे जाते हैं,उनमें से रक्त के धारे बहे जाते हैं,त्राहिमाम,त्राहिमाम ! यह दुनिया तो क्या,कई आकाशगंगाओं के पार चला जाऊंगा !
लेकिन रहम मिलते ही ढीठ कोरोना फिर यहीं रह गया. अब प्रधान तमाशाई ने दूसरी कमजोरी ढूंढ निकाली है,उसकी. कान का ही कच्चा नहीं है कोरोना, आँखें भी कमजोर हैं उसकी.तेज रौशनी में जहां-तहां मुंह मारता रहता है. 05 अप्रैल को उसे दृष्टि बाधित कर देना है. एकाएक एल ई डी बल्बों की दूधिया,चौंधियाती रौशनी से अंधेरा हो जाएगा और फिर पीली,मद्धिम मोमबत्ती की रौशनी होगी तो अंधेरा और मद्दिम रौशनी ही कोरोना को बदहवास कर देगी. न देख सकेगा कोरोना तो न दबोच सकेगा कोरोना. कम रौशनी के चलते ठोकर खाएगा,मुंह के बल गिरेगा और मर जाएगा ! हमारे यहाँ तो सड़कों के गड्डे भी इतने बड़े हैं कि उन्हीं में गिर कर वह काल के गाल में समा जाएगा ! व्हाट एन आइडिया सर जी ! ऐसे ही थोड़े आप प्रधान तमाशाई हैं,कोरोना को भी तमाशे की मौत मारेंगे !
कोरोना यदि कोई जीवित मनुष्य होता या उसमें सोचने-समझने की शक्ति होती तो वह इन तमाशों के आइडिया को सुन कर हंस-हंस कर मर जाता या फिर सदमे से जान दे देता ! सोचता कि मैंने दुनिया के पसीने छुड़ा दिये हैं,लाशों के अंबार लगा दिये हैं और इन्हें मसखरी सूझ रही है,जो अभी भी न डरे,उनके यहाँ जी कर क्या करना है !
लेकिन वह वाइरस है ,जिस पर तमाशे का असर नहीं. उससे निपटने के लिए ठोस तैयारी चाहिए,जो दिखती नहीं. इसलिए तमाशे से दिल बहला रहे हैं. हमारे यहाँ पहाड़ में कहावत है-पैलि त ब्यौ नै त घपरोल ही सही यानि पहले तो शादी अन्यथा घपला ही सही ! शादी का अवसर है नहीं तो घपला,तमाशा ही कर लेते हैं,इलाज तो दुनिया ढूंढ ही लेगी !