मंत्री-मंत्री, भाई-भाई…। इसका मतलब केवल यही है। कुछ और मत समझिए…। टिहरी राजशाही के बारे में तो आपने सुना ही होगा…। ये माजरा भी बादशाहीद का है। ऐसी बादशाही जहां राजा तो नहीं हैं, लेकिन…राजाओं की प्राजाति है। ऐसी प्रजाति जो कहने को तो मंत्री हैं, लेकिन खुद को किसी राजा से कम नहीं समझते और प्रजा को केवल वोट समझते हैं…। अद्भुत प्रजाति है ये…।
खैर हमें इनसे क्या…। कुछ सवाल हैं, जिनके जवाब मंत्री-मंत्री, भाई-भाई को देना चाहिए…। कुछ दिन पहले हेडलाइन छपी थी कि राज्य में प्रतिनियुक्ति और ट्रांसफर नहीं होंगे…। तभी एक चिट्ठी वायरल हो गई, जिसमें एक शिक्षिका की ऊंची पहुंच से मंत्री का आदेश भी बौना हो गया था…। मंत्री ने तब फिर से अपनी पुरानी रोक वाली बात दोहराई थी…।
अब फिर से एक और मामला आ गया है…। ये मामला ठीक वैसे ही हाईस्कूल से सीधे डिग्री काॅलेज में पहुंचने का है…। जैसे एलटी लाइन सीधे हाईटेंशन लाइन में बदल गयी हो…। ऐसे तो बेसिक के गुरूजी को भी प्रतिनियुक्ति से सीधे यूनिर्वसिटी का प्रोफेसर भी बनाया जा सकता है…। अब फिर से बात मंत्री-मंत्री, भाई-भाई पर आकर अटकती है।
एक शिक्षा मंत्री ने रोक लगाई है…। दूसरे शिक्षा मंत्री ने कह दिया कि प्रतिनियुक्ति कर्मचारी का अधिकार है…। जनाब फिर दूसरे कर्मचारियों के लिए ये अधिकार क्यों सीज हो जाते हैं…? क्यों नहीं सभी कर्मचारियों और शिक्षकों को अन्य विभागों में प्रतिनियुक्ति दी जाती है…? असल बात यह है कि उनकी कोई सुनता नहीं है…। मंत्री उनका खास नहीं है…। अधिकारी उनका अपना नहीं है। और जब कोई मंत्री जी के साथ ही पढ़ा-रहा हो तो… किसी क्या मजाल, जो कुछ कह दे…। नियम उनकी जेब में…।