Friday , 7 February 2025
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Impact of climate change in Uttarakhand : समय से पहले खिले बुरांश और पकने लगे काफल

अल्मोड़ा : उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन (Impact of climate change in Uttarakhand) के प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। बढ़ते तापमान, अनियमित वर्षा, ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना और अधिक बार आने वाली प्राकृतिक आपदाएँ जैसे भूस्खलन, बाढ़ और जंगल की आग राज्य के पर्यावरण और लोगों के जीवन पर गंभीर असर डाल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक संतुलित और स्वस्थ पर्यावरण मिल सके।

धौलछीना और बिनसर अभयारण्य के जंगलों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। आमतौर पर फरवरी के दूसरे पखवाड़े से मार्च में खिलने वाला बुरांश इस बार जनवरी में ही खिल गया है, जिससे स्थानीय लोग और वैज्ञानिक हैरत में हैं। इसी तरह, काफल भी जंगलों में समय से पहले पकने को तैयार है।

पहाड़ों की बदलती आबोहवा

पहाड़ों में बुरांश का फूल 15 मार्च के बाद खिलता था, और काफल अप्रैल में पकता था, लेकिन इस साल प्रकृति ने चौंकाने वाला संकेत दिया है। जनवरी के पहले पखवाड़े में ही धौलछीना और बिनसर के जंगलों में बुरांश खिल चुका है, और कई जगहों पर काफल भी पकने लगा है। यह पहाड़ों के गर्म होने और जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट प्रमाण है।

कम बारिश और सूखी ठंड से प्रभावित जैव विविधता

इस साल सर्दियों में अब तक सिर्फ दो दिन ही बारिश हुई है, जबकि पूरा शीतकाल सूखा बीता है। इससे पहाड़ों की जैव विविधता गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। पौधों और फलों के समय से पहले पकने का मुख्य कारण अनुकूल तापमान का जल्दी मिलना है, जो प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव

जलवायु परिवर्तन केवल बुरांश और काफल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके दूरगामी परिणाम हैं:

  1. पर्यावरण असंतुलन: समय से पहले फूल और फल आने से पारिस्थितिकी तंत्र की प्राकृतिक प्रक्रिया बाधित हो रही है।

  2. खेती और फसल उत्पादन पर असर: पहाड़ों में पारंपरिक फसलों का उत्पादन प्रभावित हो सकता है, जिससे स्थानीय किसानों को नुकसान होगा।

  3. पशु-पक्षियों पर प्रभाव: तापमान परिवर्तन के कारण कई जीवों की प्रजनन प्रक्रिया और भोजन की उपलब्धता प्रभावित हो रही है।

  4. ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना: पहाड़ों का बढ़ता तापमान ग्लेशियरों के पिघलने की दर को तेज कर सकता है, जिससे जल संकट उत्पन्न होने की संभावना बढ़ेगी।

विशेषज्ञ की राय

जानकारों की कहना है कि “समय से पहले पेड़-पौधों का फूलना-फलना जलवायु परिवर्तन का सीधा संकेत है। बुरांश, काफल, आड़ू, नाशपाती आदि के समय से पहले पकने का कारण बारिश और बर्फबारी की कमी है, जिससे इन प्रजातियों को जल्द ही अनुकूल तापमान मिल रहा है। प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण यह स्थिति और गंभीर हो सकती है।”

समाधान की दिशा में कदम:

  • वनों का संरक्षण और वृक्षारोपण बढ़ावा देना

  • प्रदूषण नियंत्रण और कार्बन उत्सर्जन को कम करना

  • जल स्रोतों की सुरक्षा और जलवायु अनुकूलन उपाय अपनाना

प्रमुख प्रभाव:

  • ग्लेशियरों का सिकुड़ना – गंगोत्री और अन्य हिमनद तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे जल स्रोतों पर खतरा मंडरा रहा है।
  • बदलता मौसम चक्र – अनियमित बारिश और सूखे जैसी स्थितियाँ बढ़ रही हैं।
  • आपदाओं में वृद्धि – बादल फटने, भूस्खलन और अचानक बाढ़ की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
  • जैव विविधता पर असर – वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं।

लोगों के लिए चेतावनी और सुझाव:

    • पर्वतीय क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण कार्य और वनों की कटाई को रोका जाए।
    • जल संसाधनों का सतत और विवेकपूर्ण उपयोग करें।
    • सरकार और वैज्ञानिकों द्वारा दी गई आपदा पूर्वानुमान चेतावनियों का पालन करें।
    • अधिक वृक्षारोपण करें और पारंपरिक टिकाऊ कृषि को बढ़ावा दें।
    • पर्यटन और विकास परियोजनाओं में पर्यावरण-संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाएँ।

 

 

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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