Tuesday , 17 June 2025
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गरतांग गली

गरतांग गली की खतरनाक चट्टानी गलियां, 1962 के बाद बंद, अब ये है तैयारी

  • गरतांग गली की खतरनाक चट्टानी गलियां.

  • 1962 तक भारत-तिब्बत के बीच व्यापार

  • दिगवीर बिष्ट

उत्तरकाशी : भारत-तिब्बत सीमा से लगी नेलांग घाटी के गरतांग गली का जल्द निर्माण होगा। इसके लिए बजट जारी कर दिया गया है। इतना ही नहीं काम ही शुरू हो गया है। गरतांग गली एक सुंदर ट्रैक के रूप में जाना जाता है। इस ट्रैक को देखने के लिए देश विदेश के पर्यटक यहां आते हैं। जिले की गरतांग गली को देशी और विदेशी पर्यटकों के लिए खोलने की उत्तराखंड सरकार की योजना है। इसके लिए सरकार ने केंद्र को प्रस्ताव भी भेजा है।

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पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा

इस क्षेत्र को पर्यटकों के लिए खोले जाने से जनजातीय क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएं हैं। इस साल के अंत में गरतांग गली का निर्माण कार्य पूरा हो जयेगा। पहले फेज़ में सरकार ने 35 लाख की लागत से गरतांग गली के मरम्मत का काम किया जाएगा। वंही, इस बार 40 सदस्य टीम इस क्षेत्र का जायजा लेने गयी थी।

 

गरतांग गली

1962 तक भारत-तिब्बत के बीच व्यापार

गरतांग गली यह लकड़ी का पुल भारत और तिब्बत के बीच का व्यापार मार्ग था। भोटिया जनजाति ने अपने सामान को अपने दूसरे देश के हिस्से के साथ वस्तु-विनिमय के लिए इस पुल को एक मात्र रास्ता बनाया था। सीमांत जिले उत्तरकाशी की भारत-चीन सीमा पर स्थित नेलांग घाटी के क्षेत्र गरतांग गली मेंं देशी और विदेशी सैलानी सैर सपाटे के लिए यंहा आते हैं । इस गरतांग गली से 1962 तक भारत-तिब्बत के बीच व्यापार हुआ करता था।

गरतांग गली

जादुंग एक आबाद गांव हुआ करता था

अगर आप रोमांचकारी जगहों पर जाने के शौकीन हैं तो समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी एक शानदार ऑप्शन है। यहां की नेलांग घाटी में भारत-तिब्बत सीमा से सटे जादुंग गांव आकर आपको इंसान की कारीगरी और हिम्मत की मिसाल देश के किसी भी हिस्से में देखने को नहीं मिलेगी।

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दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में नेलांग घाटी की गरतांग गली दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार है। नेलांग घाटी इनरलाइन एरिया है, जो कि भारत-चीन के बॉर्डर के पास है। यहां पर्यटकों को केवल दिन में ही जाने की अनुमति दी जाती है। 1962 में भारत-चीन युद्ध से पहले नेलांग घाटी का जादुंग एक आबाद गांव हुआ करता था। इस गांव में रहने वाली जाड़ जनजाति छः महीने यहां आकर ठहरती है।

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हमेशा के लिये बंद कर दी गयी थी

इस युद्ध के बाद नेलांग घाटी पर्यटकों के लिये हमेशा के लिये बंद कर दी गयी थी, जिसे कुछ ही सालों पहले खोला गया है। नेलांग जाने वाले रास्ते पर सबसे रोमांचक गरतांग गली है। जिसका इस्तेमाल पुराने समय में जाड़गंगा को पार करने में किया जाता था। वर्तमान में इसे काम में नही लिया जाता है, इसके बावजूद पठारों के बीच बना यह ब्रिज आज भी पर्यटकों के लिये आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि करीब 300 मीटर लंबे इस रास्ते को 17वीं सदी में पेशावर से आए पठानों ने चट्टान को काटकर बनाया था। जिसके जरिए भारत और चीन के बीच व्यापार भी होता था।

 

 

तिब्बत से बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) पहुंचाया जाता था

गरतांग गली के जरिए ऊन, चमड़े से बने कपड़े और नमक लेकर तिब्बत से बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) पहुंचाया जाता था। उस समय दूर दूर से लोग बाड़ाहाट आते थे और सामान खरीदते थे। भारत-चीन युद्ध के बाद 1975 में सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया था। 2017 में विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर उत्तराखंड सरकार की ओर से पर्यटकों को गरतांग गली जाने की अनुमति दी गई।

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विशेष अनुमति पर ही आगे जाने दिया जाता है

अगर आप ट्रैकिंग के शौकिन हैं, तो आप इस जगह पर ट्रैकिंग के लिए जा सकते हो। यहां जोखिम भरे रास्तों को देखकर आखिर किस तरह से इस रास्ते को बनाया गया होगा। पहाड़ों को चीर कर लकड़ी के बने रास्ते से गुजरना अपने आप में एक अलग ही एहसास होता है। नेलांग से आगे जादुंग और उससे भी आगे नीलापानी पड़ता है। नेलांग से आगे सिविलियन को विशेष अनुमति पर ही आगे जाने दिया जाता है। इस जगह पर अब सेना और ITBP के जवानों के अलावा कोई नहीं रहता है।

 

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About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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