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महामारी के आतंक के बीच प्रेम की पाती…अद्भुत

2 दिसंबर 2002 को पहली बार मैंने तुम्हें नैनीताल में आइसा के राज्य सम्मेलन में देखा, 12 इंच लंबी काली दाढ़ी,घुटनों तक का मटमैले रंग का खादी का कुर्ता पहने, सपनों का राजकुमार वाली इमेज से एकदम अलग। माइक में तुमने 2 घंटे जो भाषण दिया मैं अवाक होके तुम्हें सुनती रही। हॉस्टल लौटी तो रूम पार्टनर ने ताने दिये क्यूंकि मैं उनसे तुम्हारी ही बाते करती रही। पापा को भी फोन करके बताया कि मैंने 2 घंटे भाषण देने वाला आदमी देखा वो भी साक्षात। आज की भाषा में कहे तो पहली नजर में ही क्र्श हो गया था। तय कर लिया था कि इस आदमी को और ज्यादा जानना है। पता चलने पर कि तुम श्रीनगर (गढ़वाल) में मास कम्युनिकेशन में कोई एक पेपर पढ़ाते हो, दिल्ली जाने का इरादा छोडकर श्रीनगर चली गयी। समाज को देखने समझने का दृष्टिकोण वही से विकसित होना शुरू हुआ। हम दोनों ही अलग अलग पारिवारिक,सामाजिक,आर्थिक,भाषाई,सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आए थे। तुम शांत रहने वाले, और मैं बातूनी। लगा कि शायद बात बनेगी नहीं लेकिन रिस्क ले लिया ये सोचकर कि जो होगा देखा जाएगा।

दो साल बाद शादी का प्रस्ताव रख दिया तुम्हारे सामने। तुम्हारा रिएक्शन बहुत ही निराशाजनक था। लगा कि बात नहीं बनेगी श्रीनगर से वापस जाने की तैयारी करने लगी थी। फिर एक दिन अचानक तुमने कहा कि अभी तो हम साथ नहीं रह सकते लेकिन भविष्य में साथ रह सकते है। लगा लॉटरी लग गई। वो समय 2011 में आया। स्पेशल मैरिज एक्ट 1952 के तहत पौड़ी में अप्लाई किया। थोड़ी बहुत पारिवारिक असहमति और कानूनी अड़चनों के बाद सर्टिफिकेट मिल गया। परिवार नामक संस्थान शुरू तो कर लिया लेकिन पेट कैसे चलेगा ये सोच कर नौकरी करने लग गयी। और हम दूर हो गए। तुम्हारा जो परिवार को आगे ना बढ़ाने का फैसला था उससे सहमत ना होते हुये भी मान लिया कि भविष्य में तो कर ही लेंगे। लेकिन अब लग रहा है कि तुम्हारा फैसला सही था। पृथ्वी पर पहले ही इतना भार है एक और भार हम क्यूँ बढ़ाए।

ये भी एक तरह से समाज में हमारा योगदान ही है। इस बीच तमाम सहमति असहमतियों का दौर चलता रहा, मैं तुमसे तमाम तरह की अपेक्षाएँ करती रही और फिर खुद ही मान लिया कि तुमको तुम ही रहने दूँ। ऐसा नहीं है कि इतने सालों में किसी अन्य पुरुष के प्रति आकर्षित नहीं हुयी लेकिन जब भी परखने की बारी आई तुम उनसे कहीं ज्यादा प्रगतिशील, सामाजिक, स्त्री मुक्ति के पैरोकार, छल प्रपंच से दूर ही नजर आए। किचन के अंदर जाते ही तुम्हारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है, जैसा मेरा लिखने में डगमगा जाता है। फिर मैंने महसूस किया कि हम दोनों की जो व्यक्तिगत खूबियाँ हैं उन खूबियों को कैसे हम विकसित करके एक दूसरे के सर्वांगीण विकास में सहायक हो सकते हैं, यही पार्टनर्शिप है और यही खुश रहने का तरीका भी।

मुझे हमेशा ज्यादा चाहिए होता हैं, ज्यादा प्यार, ज्यादा इजहार, ज्यादा गुस्सा, ज्यादा परफेक्शन। लेकिन तुम्हें नहीं, तुम थोड़े में ही खुश हो जाते हो. राजनीतिक समझ तुम्हारी अल्टिमेट हैं लेकिन पारिवारिक राजनीति से तुम्हारा दूर दूर तक कोई नाता नहीं। गुना गणित तुम्हारी भी कमजोर है और मेरी भी। ये जीवन हमने खुद चुना है। इसलिए हम दोनों ही किसी से शिकायत नहीं करते और शायद इसलिए भी हम खुश रहते है। आस पड़ोस को ये समझ ही नहीं आता कि ये किस तरह के पति पत्नी हैं दोनों का सरनेम अलग अलग है दोस्त भी अलग अलग है, दोनों की ही अपनी अपनी पर्सनल लाइफ भी है।

हम दोनों ही उनकी इन दुविधाओं को और उलझाते रहते हैं। मुझे पता है जीवन इतना सरल नहीं है लेकिन इतना कठिन भी नहीं हैं कि रोके गुज़ारना पड़े। ऐसे ही उलझते, सुलझते आगे का सफर भी काट लेंगे अगर महामारी ने जीवनदान दिया तो………इसी उम्मीद के साथ शादी की सालगिरह मुबारक हो पार्टनर❣️❣️❣️❣️
प्यार जिंदाबाद❣️❣️❣️❣️

(बगैर इजाजत के फेसबुक से साभार)

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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