कल किसी अंजान नंबर से मिस कॉल आई कॉल बैक किया तो जवाब आया सर आप पुलिस में है ना ? मैंने कहा आप कहां से बोल रहे हैं और आपको मेरा नंबर कहां से मिला तो उस भाई ने बताया सर मैं देहरादून से बोल रहा हूं और आपका नंबर मैंने व्हाट्स एप पर बने ग्रुप उत्तराखंड एसएससी से लिया सर प्लीज मेरी मदद कर दीजिए मैं कर्णप्रयाग चमोली का रहने वाला हूं और इस वक्त देहरादून में पढ़ाई करता हूं यहां बहुत परेशानी हो रही है कॉलेज बंद है शहर में सन्नाटा है और घर में आटा तक नहीं, इसलिए घर जाना चाहते हैं, यातायात का कोई साधन नहीं है, इसलिए बाइक से जाना चाहते है। पुलिस वाले परेशान करेंगे इसलिए आपको फोन कर दिया।
उसकी बातें सुन मेरे मन में कई सवालों ने जन्म लिया। फोन पर लाचारी दिखाते हुए मैंने उसे बताया, भाई मैं तो इस वक्त उत्तराखंड से बाहर हूं और मैं पुलिस में नहीं, पैरामिलिट्री फोर्स में हूंँ और इस वक्त एयरपोर्ट सुरक्षा में तैनात हूंँ। हांँ उत्तराखंड पुलिस में मेरा छोटा भाई है उससे बात करता हूँ क्या हो सकता है।
आप भी पुलिस से रिक्वेस्ट करो भुला ऐसी बात है तो, इस कन्वर्सेशन के दौरान और बाद, मैंने उस भाई की मजबूरी को काफी हद तक महसूस किया लेकिन इतनी दूर से उसे ढांढ़स बंधाने के सिवाय मैं कुछ कर भी तो नहीं सकता था। मन ही मन सोचा कि अगर मैं वहाँ पर उसकी मुसीबत से रूबरू होता तो कुछ कर पाता!
ये सोचते-सोचते गलद्यवा काकी(गाली देने वाली काकी) का विडियो क्लिप भी दिमाग में चलने लगा….गलद्यवा काकी के चलचित्र बाद उन लाचार कमअक्ली मजदूरों का विडियो भी दिमाग में कौंधने लगा जिनके बारे में कुछ देर पहले मैंने टीवी पर समाचार देखा था जो बेपरवाह चल दिए भूखे प्यासे कोरोना से लड़ने।
उन मजदूरों से ज्यादा गुस्सा उन फैक्ट्री मालिकों पर आ रहा है जहां पर वे काम करते थे और उन सभी के ठेकेदारों पर भी गुस्सा आना लाजिमी है जिनके लिए वह काम करते आए हैं। और उन मकान मालिकों के लिए भी दिल से गाली निकल रही है जो इस आपातकाल के समय उन मजदूर वर्गों को अपने घरों से निकाल रहे हैं और तो और मकान मालिकों द्वारा भाड़े में रह रहे डॉक्टरों के साथ भी ये व्यवहार हो रहा सुनने में आया है। ये सब दिमाग में चलते चलते सरकार द्वारा घोषित हालिया आपात राहत पर भी एकाएक कई प्रश्न खड़े हो गए कि जल्दी करो इसे रिलीज।
भारत की 130 करोड़ जनसंख्या को केवल और केवल लाक डाउन ही बचा सकता है भाई यह हर एक वर्ग को समझना ही होगा खासकर उच्च वर्ग को मैं तो कहूँगा।कोरोना वायरस किसी के सामाजिक स्तर, परमाणु बम या पैसे से नहीं डरता। ना ही उसको इन सब की भूख इससे बचने का एकमात्र साधन है केवल और केवल लाक डाउन।
कहीं ऐसा ना हो कि हम उस स्टेज में पहुंच जाएं जहां इटली अमेरिका स्पेन पहुंचा हुआ है। कहीं ऐसा ना हो कि दूध फल दवाई के साथ साथ हम कोरोना का सेवन भी कर रहे हों। कहीं ऐसा ना हो कि घर में आने वाली आया कुरोना का पोछा मार के चले जाए। और बर्तन भी रगड़ जाए कोरोना से। कहीं ऐसा ना हो कि हम हॉस्पिटल जाएं और कोरोना से इलाज करवाएं।
कहीं ऐसा ना हो कि वो साहब की चमचमाती गाडियां में कोरोना की डस्टिंग कर दे। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए उच्च वर्ग को आगे आना चाहिए और सभी गरीबों की मदद करनी चाहिए इसमें सभी की भलाई है कम से कम खुद के बारे में सोचिए।आप सभी समर्थ लोगों को उन मजदूरों को लाक डाउन के बारे में सिखाना चाहिए, और कम से कम उनके लिए 3 महीने की राशन रहने की व्यवस्था भी करनी चाहिए।
सभी को इस आपात स्थिति में एकजुट होकर इस मुसीबत से बाहर आने से लिए सरकार का साथ देना चाहिए। और अपने अपने ढंग से घर में रहकर परम पिता परमात्मा से , विश्वकल्याण, विश्व शांति, विश्व समृद्धि के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। इसी में सब की भलाई है। अगर किसी को मेरी बातों से ठेस पहुंची हो तो माफ करना और अगर प्रासंगिक लगे तो इन शब्दों को और को भी भेज देना। परमपिता परमात्मा से आप सभी को सपरिवार कुशल, निरोग समृद्ध रखें ।।
….सुनील भट्ट