Friday , 22 November 2024
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डंडरियाल जी की कलम से…शिलान्यास की लहर, आप भी जानें

  • सतेंद्र डंडरियाल

उत्तराखंड में बरसात में दो ही चीजें हो रही हैं। मैदान में विकास के आंगन में जलभराव हो रहा है और पहाड़ में विकास के गांव में घर पर मलबा और पत्थर बरस रहे हैं। ऐसे मौसम में क्या मैदान क्या पहाड़। गांव-गांव में समर्थकों के साथ नेता टपक रहे हैं। इससे जनता बिदक रही है कि कहीं गांव में महानगर से टपका नेता गांव वालों में झगड़ा न करवा दे।

अच्छी खासी शांति बनी है। न कोई पंजा न कोई फूल बस गांव की धूल में सब बनफूल। नेताओं के टपकने से अचानक ही खा…बा होने लगता है। जिसने साढ़े चार साल से नहीं पी वह भी पीकर अबे, रबे, तबे करने लगता है। नई शुरुआत वाले के लिए तो यह आपदा में अवसर बन जाता है। पुरानों के लिए तो यह हर पांच साल में आने वाला आबकारी कुंभ मेला जैसा होता है। कुछ तो गाने भी लगे हैं। मय से न मीना से न साकी से, दिल बहलता है मेरा आपके आ जाने से..आप के आ जाने से। कह रहे है बहुत हुआ हिमाचल, चंडीगढ़ मार्का, अबकी बार दिल्ली मार्का भी मिलेगी।

चुनाव के सीजन में नेता महामारी की तरह फैलते हैं। सुबह यहां नाश्ता, वहां दोपहर का भोजन, कहां रात का खाना कुछ पता नहीं कहां पसर जाएं। पहली लहर में आश्वासन देते हैं। दूसरी लहर में पिछली सरकार को कोसते हैं और तीसरी लहर में वैक्सिनेशन की तर्ज पर दबाकर शिलान्यास करते है। पूरे साढ़े चार साल बाद आई तीसरी लहर में नेताओं ने शिलान्यास की ऐसी झड़ी लगा दी है कि मानसून भी शरमा जाए। वहीं विपक्षी नेता अपनी सरकार में किए गए शिलान्यास को प्लास्टर उखड़ने के कारण पहचान नहीं पा रहे हैं।

सत्तादल के लोग उसी शिलान्यास से दस मीटर दूर नया पत्थर लगा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐन चुनाव की आचार संहिता लागू होने से पहले तीसरी लहर का पीक आएगा। इसमें बड़े पैमाने पर शिलान्यास होने की संभावना है। उधर, नया टायर लगाने के बाद डबल इंजन पहाड़ से लेकर मैदान तक दौड़ रहा है। साढ़े चार साल में दो टायर फटने के बाद सारा भार नए टायर पर आ गया। वहीं, पूर्व के सत्ताधारी दल ने इस बार गजब की इंजीनियरिंग दिखाई है।

करीब तीन साल चले पुराने इंजन की नई रंगाई पुताई करके एक पुराने टायर के साथ अलग-अलग दिशाओं में चलने वाले पांच नए टायर लगा दिए। ताकि हर टायर को लगे कि इंजन तो मुझपर ही टिका है। इधर मैं निकला उधर गई भैंस पानी में। अभी कुछ दिन पहले नई सरकार के नए मुखिया ने फरमान निकाला। ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए सिफारिश की तो खैर नहीं। इधर अफसरों के अरमान निकलने लगे। फरमान में छुपे संकेत को समझा। भाषा का विश्लेषण किया और एक शब्द पकड़ा खैर नहीं। क्योंकि इसी एक शब्द पर ज्यादा वजन लग रहा था।

खैर को उल्टा किया गया तो शब्द निकला रखै। किसी बुद्धिमान अफसर ने सुझाव दिया इसमें एक मात्रा हटा दें और बिंदी लगा दें। अब यह बन गया रखें। संशोधन कर इसे बना दिया गया ट्रांसफर पोस्टिंग की सिफारिश की तो रखें नहीं तो जहां है, वहीं जमे रहें। सारे अफसरों के चेहरे पर मुस्कान तैर गई। सबने तालियां बजाकर नए मुखिया की जय जयकार की। सब जानते थे कि रखना क्या है और रखना कहां है। ऐसा कोई आदेश आज तक हुआ नहीं है, जिसमें अफसर छेद ना ढूंढ सके।

अब अफसर ट्रांसफर के लिए नगरपालिका के चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे कल्लू मल कोयले वाले से सिफारिश तो करवाएंगे नहीं। जमे जमाए मंत्री और हर बार सरकार आने पर मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार रहने वाले नेताओं से सिफारिश करवाएंगे। नए मुखिया ने सिफारिश करवाने वाले के साथ ही करने वाले के लिए भी तो संकेत किया है।

(नोट: लेखक वरिष्ट पत्रकार हैं।)

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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