Tuesday , 24 June 2025
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श्री राजा रघुनाथ जी और मां भीमाकाली की यात्रा डायरी (पार्ट-4), केदारनाथ यात्रा, आस्था और सबसे बड़ी चुनौतियां

  • प्रदीप रावत “रवांल्टा”

श्री राजा रघुनाथ जी और मां भीमाकाली की बदरी-केदार यात्रा का केदारनाथ धाम तक का सफर एक अनमोल अनुभव रहा। हमारे साथ दिनेश रावत जी, उनकी पत्नी ललिता भाभी, उनकी माता जी और मेरी पत्नी संतोषी ने इस पवित्र यात्रा में हिस्सा लिया। गौरीकुंड से केदारनाथ तक की चढ़ाई कुछ कठिनाइयों के बावजूद हम सभी के लिए यादगार रही। रास्ता भले ही बहुत कठिन न हो, लेकिन लंबा जरूर है। इस आस्था के पथ पर हर कदम हमें बाबा केदार के और करीब ले जाता है, लेकिन कुछ चुनौतियां ऐसी हैं, जिन्हें नजरअंदाज करना मुश्किल है।

यात्रा मार्ग की सबसे बड़ी चुनौती: घोड़े-खच्चरों का अनियंत्रित संचालन

केदारनाथ की पैदल यात्रा में सबसे बड़ी बाधा घोड़े-खच्चरों का अनियंत्रित संचालन है। यह कहना गलत नहीं होगा कि ये सुविधा यात्रियों के लिए वरदान है, खासकर उन लोगों के लिए जो पैदल चढ़ाई नहीं कर सकते। लेकिन, यही घोड़े-खच्चर कई बार यात्रियों के लिए परेशानी का सबब भी बन जाते हैं। रास्ते में घोड़े-खच्चरों की संख्या और उनके संचालकों की लापरवाही से कई बार खतरनाक स्थिति बन जाती है।

घोड़े-खच्चरों का जाम

हमने देखा कि घोड़े-खच्चरों के संचालन के लिए कोई स्पष्ट नियम नहीं हैं। एक बार में कितने घोड़े या खच्चर जा सकते हैं, यह तय नहीं है। कई बार तो रास्ते में घोड़े-खच्चरों का जाम लग जाता है, जिससे पैदल यात्रियों को रास्ता छोड़ना पड़ता है। संचालक बिना किसी सावधानी के तेजी से घोड़े-खच्चर दौड़ाते हैं, जिससे यात्रियों को चोट लगने का खतरा बना रहता है। कई बार संचालकों की ओर से असभ्य भाषा का इस्तेमाल भी यात्रियों के लिए अप्रिय अनुभव बन जाता है। मेरे साथ-साथ अन्य यात्रियों ने भी इस बात की शिकायत की कि घोड़े-खच्चरों की वजह से उनकी यात्रा में बाधा आई।

आधे रास्ते में सवारी लेने के लिए खड़े रहते हैं

इसके अलावा, कुछ संचालक बिना पंजीकरण या पर्ची के आधे रास्ते में सवारी लेने के लिए खड़े रहते हैं, जिससे अव्यवस्था और बढ़ जाती है। सरकार और बदरी-केदार मंदिर समिति को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है। घोड़े-खच्चरों की संख्या को नियंत्रित करने, उनके लिए रोटेशन व्यवस्था लागू करने और संचालकों के लिए नियम निर्धारित करने से यात्रा सुरक्षित और सुगम हो सकती है।

डंडी-कंडी वालों की चुनौती

घोड़े-खच्चरों के अलावा डंडी और कंडी वालों की वजह से भी यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। कंडी वाले भारी बोझ के साथ तेजी से नीचे उतरते हैं, जिससे सामने आने वाले यात्रियों को धक्का लगने का डर रहता है। उनकी गति इतनी तेज होती है कि वे सामने वाले को देख भी नहीं पाते। डंडी वाले भी नीचे उतरते समय तेजी से दौड़ते हैं, जिससे पैदल यात्रियों को बचना मुश्किल हो जाता है।

इसके लिए भी प्रशासन को रूट और समय निर्धारित करने की जरूरत है। डंडी और कंडी वालों के लिए अलग से व्यवस्था होनी चाहिए ताकि पैदल यात्रियों को सुरक्षित रास्ता मिल सके।

सुरक्षा और व्यवस्था की कमी

यात्रा मार्ग पर बुनियादी सुविधाएं तो मौजूद हैं, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था में कमी साफ नजर आई। पुलिसकर्मी कुछ ही जगहों पर दिखे, और घोड़े-खच्चरों या डंडी-कंडी वालों को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं थी। सरकार को इस दिशा में तत्काल कदम उठाने चाहिए। यात्रियों की समस्याओं के समाधान के लिए अधिक पुलिसकर्मियों की तैनाती और नियमित निगरानी जरूरी है।

सफाई कर्मचारियों की मेहनत को सलाम

जहां कुछ कमियां नजर आईं, वहीं सफाई कर्मचारियों की मेहनत दिल को छू गई। गौरीकुंड से केदारनाथ तक हर कुछ दूरी पर सफाई कर्मचारी तैनात थे, जो लगातार रास्तों से घोड़े-खच्चरों की लीद और अन्य गंदगी हटाने में जुटे थे। शौचालयों में भी नियमित सफाई होती दिखी, जो यात्रियों के लिए सुकून देने वाली बात थी। इन कर्मचारियों की लगन और समर्पण की जितनी सराहना की जाए, कम है।

क्लीनिक और चिकित्सा सुविधाएं: एक राहत

यात्रा मार्ग पर सरकार द्वारा स्थापित क्लीनिक भी सराहनीय कार्य कर रहे हैं। मेरी पत्नी संतोषी को स्वास्थ्य संबंधी छोटी-मोटी परेशानी हुई, तो हमने एक क्लीनिक में संपर्क किया। वहां डॉक्टरों का रवैया बेहद सहयोगी था। दवाइयां तुरंत उपलब्ध कराई गईं और क्लीनिक में गर्म हीटर की व्यवस्था भी थी। ये सुविधाएं यात्रियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं।

आस्था और प्रकृति का संगम

केदारनाथ की यह यात्रा केवल आध्यात्मिक अनुभव ही नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ एक गहरा जुड़ाव भी देती है। रास्ते में हरे-भरे पहाड़, झरनों की आवाज और बाबा केदार के प्रति श्रद्धा हर थकान को भुला देती है। लेकिन, अगर प्रशासन द्वारा घोड़े-खच्चरों, डंडी-कंडी वालों और सुरक्षा व्यवस्था को और बेहतर किया जाए, तो यह यात्रा और भी सुखद हो सकती है। हमारी यह यात्रा आस्था, धैर्य और प्राकृतिक सौंदर्य का एक अनूठा मिश्रण रही। बाबा केदार के दर्शन और इस पवित्र भूमि की ऊर्जा ने हमें नई प्रेरणा दी। उम्मीद है कि भविष्य में प्रशासन इन कमियों को दूर करेगा, ताकि हर यात्री इस आध्यात्मिक यात्रा का पूरा आनंद ले सके।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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