
देहरादून: प्यारी पहाड़न नाम को उत्तराखंड का अपमान बताने वाले उत्तराखंड की सोच वाले तो बिल्कुल नहीं हो सकते। ये लोग गुंडे कहे जा सकते हैं। समाजसेवी का चोला ओढ़ने वाले अपनी बदमाशी दिखाने पहाड़ की बेटी के रेस्टोरेंट में जा घुसे। ऐसे लोगों को तत्काल गिरफ्तार किया जाना चाहिए, लेकिन पुलिस ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है।
ऐसे लोगों को समाजसेवी और एक्टिविस्ट शशि भूषण मैठाणी ने सभी सबक सिखया है। नचे उनकी पोट लिखी है। उसे पढ़ने के बाद आपको पता चल जाएगा कि लोगों के भीतर कितना गुस्सा है। केवल शशि भूषण मैठाणी ही नहीं। सही मायनों में उत्तराखंड के लोगांे में गुस्सा है।
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प्यारी_पहाड़न पहाड़ की एक जीवट लड़की की शानदार सोच। प्यारी पहाड़न एक बेहद आत्मीयता वाला शब्द है । ऐसा लगता है कि प्यार से पहाड़ी छुटकी को शाबासी देते हुए उसके कामों की सराहना की जा रही हो। और सराहना हो भी क्यों नहीं क्योंकि यहां हमारी पहाड़न छुटकी तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजन जो परोस रही है जिसमें अन्य के अलावा पहाड़ी रसोई का भी भरपूर स्वाद का तड़का मिलेगा ।लेकिन, कुछ अकाजू टाईप के लोगों को इस नाम से एतराज हो गया है। विरोध करने वाले जरा अपनी हैसियत भी माप लें इस लड़की के सामने।
तुम लोगों को बड़ा मजा आया होगा एक पहाड़ी लड़की की मेहनत को रौंदने में, उसे धमकाने में…धमकाते रहो गुण्डागर्दी करते रहो, लेकिन तुम्हारी मौकापरस्त राजनीतिक सोच से बहुत आगे निकल पड़ी है, हमारी प्यारी पहाड़न जिसने इस कोरोनाकाल की भीषण महामारी के बीच बाधाओं से विचलित हुए बिना अपने साहस व खुद के कर्मशील होने का बखूबी परिचय दिया है। इस लड़की ने पहाड़ से मैदान में उतरकर देहरादून के कारगीचौक के निकट अपनी रचनात्मक सोच को साकार भी कर दिखाया है। जिसमें जरूर उसे कुछ लोगों का भी साथ मिला होगा।
लेकुछ तथाकथित संस्कृति के ठेकेदार लोग पहुंच गए उसे धमकाने। शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगों को, जो अपने राजनीतिक पिपासा को शांत करने के लिए उत्तराखण्ड के ऊर्जावान युवाओं के मंशूबों पर पानी फेर रहे हैं, युवाओं का उत्साह तोड़ रहे हैं। वैसे समझ तो उन्हें आती है, जो समझदार होते हैं। अक्ल पर मोटी परत चढ़ाए लोगों को तो कभी समझ आती ही नहीं है, यह भी सच है।
अगर कोई प्यारी पहाड़न पर ताने कसता तुम्हे सुनाई दिया या फब्तियां कसता दिखाई दिया तो तुम्हे इस पहाड़ी लड़की के समर्थन में उसके साथ डटकर खड़ा होना था न कि उसके प्रतिष्ठान / रेस्टोरेंट में जाकर अपनी गुंडई दिखाकर उसके सपनों को चकनाचूर करना था, आखिर ऐसे में कैसे, कोई दूर पहाड़ों में बैठी लड़की अब आगे आकर शहरों में बड़े काम करने के सपने संजोए ! जहां इस तरह से अपने ही लोग उन पर टूट पड़ेंगे।
कोई आपत्ति थी तो जाते उसके पास कोई अच्छा रचनात्मक सुझाव देते, क्या पता पहाड़ की यह मेहनती बेटी आपकी बातों में कुछ रजामंदी दिखाती, लेकिन ऐसा आप करते क्यों ! क्योंकि आपको सीधे जाकर पहले फेसबुक लाइव जो होना था, और आपकी यही लाइव की मंशा बताता है कि यहां पहाड़ की संस्कृति की चिंता कम और अपने लिए राजनीतिक सुर्खियों को बटोरना का ज्यादा बड़ा मकसद था । क्योंकि चुनाव नजदीक हैं तो कोई भी मुद्दा जाया नहीं जाना चाहिए। चलिए विरोध तक बात समझ आती है, अब आप अपने ही पहाड़ की लड़की का नाम खुलेआम अपनी जुबान पर लाकर उसकी निजता को भंग कर रहे हो और उसके साथ किसी गैर मर्द का नाम जोड़कर उसका चारित्रिक हनन भी कर रहे हो !
आखिर किसने आपको यह अधिकार दे दिया कि किसी लड़की के नाम के साथ आप खुले आम किसी का भी नाम जोड़ दें ? हो सकता है आपके लिए राजनीति ज्यादा महत्वपूर्ण हो, परन्तु माफ कीजिएगा किसी की भी बहिन बेटी के चरित्र को इस तरह नीलाम करने का आपको किसी ने अधिकार नहीं दिया है। आपकी राजनीति आपको मुबारक लेकिन अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए पहाड़ की बेटियों के चरित्र को ऐसे कलंकित न करें, इस बात को याद रखें कि ऐसा बर्ताव करने से आपसे पहाड़ी जुड़ेंगे नहीं बल्कि भिड़ेंगे इसलिए सावधान रहें। मुद्दों की राजनीति करें आरोप प्रत्यारोप करें परन्तु किसी के व्यक्तिगत अधिकारों के हनन करने का अधिकार आपको किसी ने नहीं दिया है !
और ये भी ध्यान रखो यह पहाड़ और प्यारी पहाड़न नाम किसी की बपौती नहीं है, पहाड़ की अस्मिता, सभ्यता, संस्कृति लोक परम्पराओं का संरक्षण करना हम सभी पहाड़ियों को भी खूब आता है। इसलिए दूसरों को सुधारने वाले बिना टेण्डर वाले किटगणे ठेकेदार न बनें। अच्छा होगा कि सभी ठेकेदार अपने घरों की दीवार मजबूत रखें । फिलहाल रेस्टोरेंट संचालिका
#पहाड़ी_लड़की के साहस को सल्यूट